Narendra Modi Govt: कानून और न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा, विभाग से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने भारत के चुनाव आयोग सहित विभिन्न हितधारकों के परामर्श से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे की जांच की थी.
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Lok Sabha-Assembly Elections: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने को लेकर मोदी सरकार ने शुक्रवार को बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा व्यावहारिक रोड मैप और रूपरेखा तैयार करने के लिए आगे की जांच के लिए विधि आयोग के पास है.
कानून और न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा, विभाग से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने भारत के चुनाव आयोग सहित विभिन्न हितधारकों के परामर्श से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे की जांच की थी. समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में इस संबंध में कुछ सिफारिशें की हैं. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यावहारिक रोड मैप और रूपरेखा तैयार करने के लिए आगे की जांच के लिए यह मामला अब विधि आयोग के पास भेजा गया है.
खर्च में होगी बचत
मंत्री ने बताया कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने में भारी बचत होगी, बार-बार चुनाव कराने में प्रशासनिक और कानून व्यवस्था तंत्र के प्रयास के दोहराव से बचा जा सकेगा और राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को उनके चुनाव अभियानों में काफी बचत होगी.
इसके अलावा, अतुल्यकालिक लोकसभा और विधान सभा चुनाव (उपचुनाव सहित) के परिणामस्वरूप विकासात्मक और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर सहवर्ती प्रतिकूल प्रभाव के साथ आदर्श आचार संहिता का लंबे समय तक प्रवर्तन होता है.
पांच अनुच्छेदों में होंगे संशोधन
हालांकि, लोकसभा और विधान सभा चुनावों के लिए एक साथ होने के लिए प्रमुख बाधाओं या अनिवार्यताओं में संविधान के कम से कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन शामिल हैं, यानी संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, राष्ट्रपति की ओर से लोक सभा के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानसभाओं की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174 और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित अनुच्छेद 356.
इसमें सभी राजनीतिक दलों की सहमति हासिल करना भी शामिल है और हमारी शासन प्रणाली के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए यह अनिवार्य है कि सभी राज्य सरकारों की भी सहमति हासिल की जाए. इसमें अतिरिक्त संख्या में ईवीएम/वीवीपीएटी की जरूरत भी शामिल है, जिसकी कीमत हजारों करोड़ रुपये हो सकती है.
यह देखते हुए कि मशीन का जीवन केवल 15 साल है, इसका मतलब यह होगा कि मशीन का उपयोग उसके जीवन काल में लगभग तीन या चार बार किया जाएगा, हर 15 साल के बाद इसके प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और अतिरिक्त मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की भी जरूरत होगी.
(एजेंसी-IANS)
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