मनमोहन सिंह की एक आदत ने सुनामी की त्रासदी से देश को किया था अलर्ट, याद आया वो किस्सा
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मनमोहन सिंह की एक आदत ने सुनामी की त्रासदी से देश को किया था अलर्ट, याद आया वो किस्सा

Manmohan Singh Death: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गुरुवार को इस दुनिया से अलविदा कह गए. उन्होंने दिल्ली के एम्स में 92 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली. इस मौके पर हम आपको मनमोहन सिंह की खास आदत के बारे में बताने जा रहे हैं. 

मनमोहन सिंह की एक आदत ने सुनामी की त्रासदी से देश को किया था अलर्ट, याद आया वो किस्सा

Manmohan Singh Death: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के देहांत के बाद लोग उनसे जुड़ी घटनाओं और किस्सों को याद कर रहे हैं. इस मौके पर हम भी आपको मनमोहन सिंह की आदत के बारे में बताने जा रहे हैं, बाद में उनकी इसी आदत ने उन्हें समय रहते अलर्ट कर दिया था. संजय बारू के ज़रिए लिखी गई किताब 'द एक्सिटेंडल प्राइम मिनिस्टर' में उनको लेकर कई तरह के खुलासे किए गए हैं. इसी किताब में उन्होंने 2004 की सूनामी की भी जिक्र किया है.

सुबह उठकर सुनते थे बीबीसी

'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' के मुताबिक प्रधानमंत्री दफ्तर (PMO) में सभी लोग जानते थे कि मनमोहन सिंह सुबह जल्दी उठते हैं साथ ही BBC न्यूज सुनते हैं. मनमोहन सिंह की इसी आदत ने उन्हें 2004 की सुनामी को लेकर काफी पहले अलर्ट कर दिया था. किताब के मुताबिक डिजास्टर मैनेजमेंट और नेशनल सिक्योरिटी से जुड़ी संस्थाओं के बताने से पहले ही मनमोहन सिंह को सुनामी से जुड़ी पता थी. क्योंकि उन्हें बीबीसी न्यूज से पहले इस बात की सूचना मिल गई थी. कहा जाता है कि न्यूज सुनते ही मनमोहन सिंह ने कैबिनेट सेक्रेट्री बीके चतुर्वेदी को नींद सुबह-सुबह नींद से जगाया और अहम तुरंत अहम मीटिंग बुलाकर सुनामी से निपटने के लिए रणनीति बनाई. 

बता दें कि मनमोहन सिंह अपने आर्थिक सुधारों के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने वाले पूर्व वित्त मंत्री और दो बार प्रधानमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं. जब सिंह ने 1991 में पीवी नरसिम्ह राव की सरकार में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभाली थी, तब भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 8.5 फीसद के करीब था, भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी जीडीपी के 3.5 फीसद के आसपास था.

इसके अलावा देश के पास जरूरी आयात के भुगतान के लिए भी सिर्फ दो सप्ताह लायक विदेशी मुद्रा ही मौजूद थी. इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था बहुत गहरे संकट में थी. ऐसी परिस्थिति में डॉ सिंह ने केंद्रीय बजट 1991-92 के माध्यम से देश में नए आर्थिक युग की शुरुआत कर दी. यह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें साहसिक आर्थिक सुधार, लाइसेंस राज का खात्मा और कई क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जैसे कदम शामिल थे. इन सभी उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का था. भारत को नई आर्थिक नीति की राह पर लाने का श्रेय डॉ सिंह को दिया जाता है.

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