महाराष्ट्र: 18 दिनों के संग्राम में BJP, शिवसेना, NCP, कांग्रेस को क्या मिला? पढ़ें पूरा लेखा-जोखा
Advertisement
trendingNow1596033

महाराष्ट्र: 18 दिनों के संग्राम में BJP, शिवसेना, NCP, कांग्रेस को क्या मिला? पढ़ें पूरा लेखा-जोखा

महाराष्ट्र में 18 दिनों तक एक राजनीतिक एक्शन थ्रिलर चला​, जिसमें किसी को कुछ मिला और किसी को कुछ भी नहीं, तो किसी ने हाथ में आयी बाजी गंवा दी तो किसी ने गंवाई हुई बाजी फिर मार ली. एक आंकलन-:

महाराष्ट्र में चुनाव रिजल्ट आने के बाद 18 दिनों तक सभी राजनीतिक दलों में खींचतान चलती रही, लेकिन कोई सरकार नहीं बना पाया.

मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) में राष्ट्रपति शासन लग चुका है. जो राजनीतिक ड्रामा महाराष्ट्र (Maharashtra) ने पिछले 18 दिनों में (नतीजों के बाद देखा) वह पहले कभी नहीं देखा गया. ये एक राजनीतिक एक्शन थ्रिलर था​, जिसमें किसी को कुछ मिला और किसी को कुछ भी नहीं, तो किसी ने हाथ में आयी बाजी गंवा दी तो किसी ने गंवाई हुई बाजी फिर मार ली. एक आंकलन-:

शिवसेना (Shiv Sena) : तारे जमीन पर. चुनाव में उसका परफॉरमेंस अच्छा हुआ. उपमुख्यमंत्री का पद और बराबर के मंत्रालय का बंटवारा हो रहा था उसका बीजेपी (BJP) के साथ. मगर ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ी रही शिवसेना (Shiv Sena). परंपरागत और tried & tasted साथी बीजेपी (BJP) को छोड़कर एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) से हाथ मिलाया. हिंदुत्व और कांग्रेस (Congress)-एनसीपी (NCP) विरोध की राजनीति करने वाली शिवसेना (Shiv Sena) को छवि की हानि हुई है, साथ ही आनेवाले चुनाव में वोटबैंक में भी नुकसान होने की आशंका है. बीजेपी (BJP) के समर्थन से चल रही देश की सबसे अमीर मुंबई महानगरपालिका से भी सत्ता जायेगी. उद्धव ठाकरे के लिए अब उनके राजनीतिक जीवन का ये सबसे मुश्किल दौर है. बेटे आदित्य ने चुनाव तो जीत लिए मगर टेक्निकल तौर पर अभी विधायक नहीं बन पाए हैं, क्योंकि विधायकी की शपथ ही नहीं हुई है. आदित्य का ये राजनीतिक लांच कोई असरदार लॉन्च नहीं कहा जा सकता. संजय राउत ने शिवसेना (Shiv Sena) की तरफ से जमकर बीजेपी (BJP) को कोसा है और एनसीपी (NCP) के साथ गठबंधन की कोशिश में वे सूत्रधार रहे. मगर शिवसेना (Shiv Sena) में ये मानने वालों की कमी नहीं है की संजय राउत की गलत सलाह ने ही उद्धव और शिवसेना (Shiv Sena) को इस मुकाम तक पहुंचाया है.

fallback

कांग्रेस (Congress) : 'तुम मुझे क्या खरीदोगे, मैं तो मुफ्त हूं' पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की कविता थी. कांग्रेस (Congress) का लगभग यही हाल हुआ. कांग्रेस (Congress) का पिछले 18 दिनों में कोई नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि उसका कुछ भी दांव पर खोने के लिए नहीं लगा था. दरअसल, कांग्रेस (Congress) ये चुनाव तो लड़ने से पहले ही हार मान बैठी थी. वह मानसिक रूप से तैयार थी की उसे और पांच साल विपक्ष में बैठना है. मगर आधे दिल से लड़े गए चुनाव में उसकी सीटे उसके अपने अनुमान से ज्यादा आयी तो ये उसके लिए ख़ुशी की ही बात थी. महाराष्ट्र (Maharashtra) में चौथे नंबर पर पहुंची कांग्रेस (Congress) को जब सत्ता स्थापना में प्रासंगिक होने का मौक़ा मिला तो ये भी उसके लिए फील गुड फैक्टर था. तो भले ही कांग्रेस (Congress) सत्ता बना नहीं पायी, लेकिन उसके पास पहले से ही कुछ भी खोने को नहीं था. उसकी हालत ऐसे ही हो गयी थे की जब क्रिकेट में किसी नंबर 10 के बल्लेबाज के 80 रन बन जाते हैं तो उसे सेंचुरी मिस होने का गम नहीं होता

​बीजेपी (BJP) : कभी ख़ुशी-कभी गम, फिर कभी ख़ुशी. बीजेपी (BJP) के लिए ये मिक्स अनुभव रहा मगर आखिरी ठहाका बीजेपी (BJP) के हिस्से में आया. नतीजे में बीजेपी (BJP) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, मगर नतीजे उसके दावों को मुकाबले काफी कम थे. इसे एक नुकसान के तौर पर देखा गया. अपनी जीत की ज्यादा ख़ुशी बीजेपी (BJP) मना नहीं पायी और अपनी जूनियर पार्टनर शिवसेना (Shiv Sena) के कटाक्षों को चुपचाप सुनती रही ताकि सरकार बन जाए. शिवसेना (Shiv Sena) के साथ CM का पद नहीं बांटना था, लिहाजा उसके फ़ोन और मुलाकातों के लिए शिवसेना (Shiv Sena) ने अपने दरवाजे बंद किये और बीजेपी (BJP) को जलील भी किया. मगर अब जब कांग्रेस (Congress) एनसीपी (NCP) शिवसेना (Shiv Sena) मिलकर सरकार नहीं बना पायी है तो लगता है की आखिरी राउंड में बीजेपी (BJP) ने रेस जीत ली है. अब वह दोगुने जोश और नए स्थाईत्व के मुद्दे के साथ अपनी छवि को चमका चुकी है. तमाम घटनाक्रम के बाद किसी एक पार्टी की अगली चुनाव में सीटे बढ़ने के आसार है तो वह है बीजेपी (BJP). मगर देवन्द्र फडणवीस का कद मनमाफिक नतीजे न दे पाने की वजह से पार्टी के अंदर कम हुआ है और पार्टी के अंदर उनके दुश्मन इस मौके को भुना रहे हैं. मगर ऊपर परमात्मा और नीचे मौजूदा बीजेपी (BJP) में मोदी-शाह का हाथ, जिसके सर पर हो उसे ज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती.

fallback

​NCP : पवार का बिगड़ा खेल ​​बढ़ती उम्र और खराब सेहत के चलते इसे पवार का आखिरी चुनाव माना जा रहा था और उन्होंने अकेले के बल पर जमकर लड़ाई लड़ी.​ ​जब चुनावी नतीजे आये तो उसने पवार और उनकी पार्टी को राजनीतिक पुनर्जन्म दे दिया​. पवार का कद बढ़ा. एनसीपी (NCP) तीसरे नंबर की पार्टी बनी, मगर किसी एक नेता का लोहा मना गया था तो वे थे शरद पवार. उन्होंने गैर बीजेपी (BJP) सरकार बनाने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) और कांग्रेस (Congress) जैसे दो विपरीत ध्रुवों को साथ लाने का काम किया. मगर जोड़तोड़ की राजनीति में माहिर पवार इस बार कहीं चूक गए. शरद पवार के बारे में ये विख्यात है की वह जितना खुद का खेल बनाने के लिए जाने जाते हैं, उससे ज्यादा वह दुसरों का खेल बिगाड़ने के लिए जाने जाते हैं. मगर अब ऐसा हुआ है की पवार ने खुद का खेल संवारने के चक्कर में ना सिर्फ खुद का खेल बिगाड़ दिया, बल्कि साथ ही अपनी सहयोगी कांग्रेस (Congress) और हालिया भरोसेमंद हुई शिवसेना (Shiv Sena) का भी बंटाधार कर दिया​. वे एक अच्छे बल्लेबाज की तरह मैच को आखिरी बाल तक तो ले गए, मगर आखिरी बॉल पर जीत नहीं दिला पाए. ​अब शिवसेना (Shiv Sena) और कांग्रेस (Congress) दोनों नज़र से देख रहे हैं. अपनी पार्टी में उनका कंट्रोल बढ़ा. आगे उनकी महाराष्ट्र (Maharashtra) में सरकार बनाने के लिए एक तरह शिवसेना (Shiv Sena)-कांग्रेस (Congress) से हाथ मिलाने का ऑप्शन खुला है तो दूसरी तरफ बीजेपी (BJP) के लिए भी दरवाजे खुले हैं. 

नोट: यह लेखक की निजी राय है. इस आलेख में प्रयुक्त समस्त बातों के लिए लेखक खुद जिम्मेदार हैं.

ये भी देखें-:

Trending news