Muscular Dystrophy : मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी जानलेवा बीमारी है. चिकित्सकों की मानें तो यह बीमारी किसी भी आयु वर्ग के लोगों के हो सकती है. इसका कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है. हालांकि इसपर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. आज हम यहां इसी के बारे में बताने जा रहे हैं.
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Muscular Dystrophy : मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी को धीरे-धीरे शरीर में फैलने वाली बीमारी के नाम से जाना जाता है. इसमें रोगी की शक्ति क्षीण हो जाती है. व्यक्ति की मसल्स कमजोर होने लगती हैं और धीरे-धीरे वो सिकुड़ जाती है. दरअसल 'मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' मांसपेशियों के 80 प्रकार के रोगों का एक ऐसा समूह है, जो व्यक्ति की मांसपेशियों का विकास रोक देती है. आइये इस बीमारी के लक्षण और इलाज के बारे में जानते हैं.
क्या है 'मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' ( Muscular Dystrophy )
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी को जन्मजात यानी जेनेटिक बीमारी माना जाता है. इसमें व्यक्ति की मांसपेशियां सिकुड़ने के साथ बेहद कमजोर हो जाती हैं. इसमें रोगी को उठने-बैठने और चलने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी मांसपेशियों का रोग है. इसलिए सबसे पहले ये रोगी के कूल्हों को अपना निशाना बनाता है. फिर मांसपेशियों और पिंडलियों को ये धीरे-धीरे कमजोर करना शुरु कर देता है. अगर समय से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज न किया जाए, तो इससे रोगी की जान भी जा सकती है.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण ( Symptoms of Muscular Dystrophy )
. चलने और सीढ़ियां चढ़ने में मुश्किल आना
. पैर की पिंडलियां मोटी होना और मांसपेशियों का फूल जाना
. तेज चलने पर बच्चे का कांप कर गिर जाना
. चलने और दौड़ने पर थकावट महसूस करना
. उठने के समय हाथ, घुटने या फिर किसी सदस्य के सहारे की जरूरत पड़ना
. भारी सामान न उठा पाना
. सांस लेने में तकलीफ होना
. पीठ का पीछे की तरफ ज्यादा लचक जाना.
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मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के प्रकार ( types of muscular dystrophy )
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी कई प्रकार की होती है. जैसे- डीएमडी, बीएमडी, ईडीएमडी, एलजीएमडी, और एफएसएचडी आइये इनको विस्तार से समझते हैं.
1. डीएमडी- ये मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का सबसे आम रुप है. जो रोगी में उसके बचपन से ही दिखाई देने लगता हैं. जैसे बच्चों का पैर की उंगलियों पर चलना, किसी भी नए काम को सीखने में कठिनाई आना, दौड़ने कूदने में परेशानी, और बार बार गिरना आदि शामिल हैं
2. बीएमडी- बेकर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण भी सामान्य ही होते है. लेकिन अगर समय पर इन लक्षणों पर ध्यान न दिया जाए, तो तेजी से बढने लगते हैं.
3. ईडीएमडी- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का ये प्रकार ज्यादातर लड़कों को अपनी चपेट में लेता है. इसके लक्षण शुरुआत में नहीं दिखाई देते हैं, बल्कि बाल्यावस्था खत्म होने के बाद नजर आते हैं.
4. एलजीएमडी- ये स्त्री और पुरुष दोनों को अपनी चपेट में लेता है. धीरे-धीरे इसका असर बढ़ता है. इसमें कंधे, जांघ, कूल्हों और बांहों की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं.
5. एफएसएचडी- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का ये प्रकार चेहरे, कंधे और पैरों की मांसपेशियों को अपनी चपेट में लेता है. इसमें रोगी को हाथ और पैर उठाने में परेशानी होती है. साथ ही आंख बंद करने में भी रोगी को समस्या आती है.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज ( Muscular dystrophy treatment )
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी अनुवांशिक बीमारी है. इसलिए इसका स्थाई इलाज अभी तक खोजा नहीं जा सका है. हां लेकिन डॉक्टर मांसपेशियों को सिकुड़ने से रोकने के लिए कुछ दवाइयां जरूर देते हैं. डॉक्टरों का मानना है, कि सेल थैरेपी के जरिए इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकाता है, लेकिन इस थैरेपी की सुविधा देश के कुछ बड़े शहरों ( मुंबई, चेन्नई, पूना, बेंगलूर ) में ही उपलब्ध है. बता दें कि सेल थैरेपी को करने के लिए करोड़ों रुपये का खर्च आता है. जो आम इंसान की पहुंच से कोसों दूर है.
व्यायाम से किया जा सकता है काबू
डॉक्टरों का मानना है कि कुछ व्यायामों को अगर मरीज नियमित रूप से करे तो उसकी मसल्स सिकुड़ना कम हो जाएंगी. जिससे इस बीमारी को बढ़ने से कुछ हद तक रोका जा सकता है.
अनुवांशिक होती है ये बिमारी
बता दें कि ये बीमारी अनुवांशिक है, इसकी वजह से ये बचपन में ही रोगी में नजर आने लगती है, और उम्र बढ़ने के साथ साथ घातक भी होती जाती है. अगर समस पर रोगी को इलाज न मिले तो उसकी मौत भी हो सकती है.
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