औरंगजेब भी नहीं कर पाया था माता के इस मंदिर को खंडित, जानिए ''पवाई वाली माता'' की महिमा...
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औरंगजेब भी नहीं कर पाया था माता के इस मंदिर को खंडित, जानिए ''पवाई वाली माता'' की महिमा...

भिंड के इस मंदिर का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने करवाया था. पावई गांव में बनी विशाल परिसर में माता की मूर्ति कुएं में विराजमान है. 

औरंगजेब भी नहीं कर पाया था माता के इस मंदिर को खंडित, जानिए ''पवाई वाली माता'' की महिमा...

प्रदीप शर्मा/ भिंड:  इस नवरात्रि में हम हम आपको ले चल रहे हैं भिंड जिले के बीहड़ों में स्थित आस्था के एक बड़े केंद्र पर जहां एक ऐसा मंदिर है, जिसका इतिहास और मान्यताए निराली है. दरअसल भिंड जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर कुंवारी नदी के बीहड़ों के बीच पावई गांव में स्थित है. यहां मां भगवती का ऐतिहासिक मंदिर पावई वाली माता के नाम से प्रसिद्ध है.

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मंदिर का एक हजार साल पुराना है इतिहास
इस मंदिर का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने करवाया था. पावई गांव में बनी विशाल परिसर में माता की मूर्ति कुएं में विराजमान है. जिनके दर्शन के लिए चैत्र और शारदेय दोनों ही नवरात्रि के समय भक्तों तांता लगता है. नवमी और दशहरे के दिन यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए पुलिस और प्रशासन भी यहां पर विशेष इंतजाम करता है. जिससे भक्तों को किसी प्रकार की समस्या ना हो. नवरात्र के 9 दिन यहां पर हजारों की संख्या में भक्त सिर पर जवारे रखकर और नेजा लेकर दूर दूर से माता रानी के दरबार में चढ़ाने के लिए आते हैं. मान्यता है कि पावई माता को भक्तगण राजस्थान में स्थित करौली में विराजी मां कैला देवी की छोटी बहन के रूप में पूजते हैं.

राजस्थान की करौली में स्थित कैला देवी की छोटी बहन है पावई वाली माता
पावई माता मंदिर के पुजारी किशन दास महाराज कहते है कि पूर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी ये बताया था कि ये दोनों देवियां बहने हैं. देश के इन दोनों ही मंदिरों पर बालक देवता आहुत होते हैं. पुजारी ने यह भी बताया कि लगभग सभी जगह देवियों की प्रतिमाओं का मुख पूर्व की ओर होता है. करौली वाली माता का मुख भी पूर्व दिशा में है जबकि उनकी बहन पावई वाली माता का मुख पश्चिम की ओर है. जिस तरह करौली में मंदिर के नीचे काली सिंध बहती है, ठीक उसी तरह पावई मंदिर के नीचे भी बारह मास झरना चलता है. और पास में ही क्वारी नदी बहती है. कहा जाता है कि माता कैला देवी के दर्शन के बाद अगर पावई वाली माता रानी के दर्शन न किए जाएं तो श्रद्धालुओं की यात्रा भी अधूरी रह जाती है.

जिस भाव में भक्त दर्शन करता है उसी भाव में माता देती हैं दर्शन
पावई वाली माता को लेकर एक और बात भी प्रसिद्ध है कि श्रद्धालुओं को वह अलग-अलग रूपों में नजर आती हैं. माता का स्वरूप बेहद शांत और शीतल है. किसी को शीतला देवी नजर आती हैं, तो कोई उन्हें पद्मादेवी कहता हैं. गांव के ही कुछ लोग उन्हें मां अन्नपूर्णा का रूप मानते हैं. इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से मनोकामना लेकर आता है और अर्जी लगाता है तो माता रानी उसकी मनोकामना जरूर पूरा करती हैं.

भक्त ने काटकर चडाई थी जीभ, मां ने चमत्कार दिखाकर जोड़ा था जीभ को
मंदिर के पुजारी किशन दास पुजारी ने माता की महिमा से जुड़ा एक और किस्सा बताते हुए कहा कि पूर्वजों द्वारा बताया गया था कि जब माता की महिमा के साथ भक्तों का प्रेम भी अपार होता है. भक्त मां की सेवा में अपना जीवन न्योछावर कर देते हैं. ऐसा ही किस्सा गांव में रहने वाले श्यामलाल का है. सालों पहले अपनी किसी मनोकामना के लिए श्याम लाल ने माता के सामने अपनी जीभ काटकर चढ़ा दी थी. मंदिर के पुजारी किशन दास के अलावा गांव में रहने वाले बुजुर्ग ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया के वह श्यामलाल के भतीजे हैं,.जिन्होंने अपनी जीभ काटकर माता पर चढ़ा दी थी. माता रानी का चमत्कार था कि नवमी के दिन श्यामलाल माता का जयकारा लगाते हुए खड़े हो गए थे उनकी जीभ अपने आप आ गई थी और तब से आज तक में अच्छी तरह बात करते और स्वस्थ हैं. पावई में विराजी मां भगवती की महिमा के न जाने कितने ही और कितने इस क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं, और भक्तों मां के आस्था में लीन हैं. यही वजह है के प्रति सोमवार मंदिर में भक्तों की भीड़ दर्शन को पहुंचती है, और हर नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है, प्रसादी भंडारों का आयोजन होता है, पूरे नवरात्र यहां का माहौल देखने लायक होता है.

औरंगजेब भी नहीं खंडित कर सका था मां की मूर्ति
मंदिर के पुजारी किशन दास पुजारी ने माता की महिमा से जुड़ा एक और किस्सा बताते हुए कहा कि पूर्वजों द्वारा बताया गया था कि जब देश में मुगल शासक औरंगजेब मंदिरों मठों से हिंदू धर्म की मूर्तियां तोड़ते हुए भिंड के इस मंदिर में आया तो माता रानी खुद अपने मठ से उठकर पास बने कुएं में विराजमान हो गई थी, और वहीं से उन्होंने मुगलों को ललकारते हुए कहा था कि तुम मुझे खंडित नहीं कर पाओगे. काफी कोशिशों के बाद मुगल शासक हार मान कर यहां से चले गए थे. आज भी मंदिर परिसर में मुगलों द्वारा खंडित किए गए प्राचीन मूर्तियों और पाषाण कला के अवशेष मौजूद हैं. माता आज भी उस कुएं में विराजमान हैं, हालांकि उनकी एक प्रतिमा की प्रतिष्ठा कुएं के पास ही कराई गई है, जहां भक्त मां के दर्शन लाभ लेते हैं.

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मंदिर में घंटा चढ़ाने पहुंचते थे डकैत, डकैतों का मूवमेंट रोकने स्थापित कराई थी पुलिस चौकी
चंबल क्षेत्र काफी समय तक डकैतों का गढ़ रहा था और सभी जानते हैं कि मां भगवती डकैतों की आराध्य रही हैं. वह माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. पावई वाली माता के मंदिर में भी डकैतों का आवागमन रहा करता था. नवरात्रि में डकैत यहां घंटा चढ़ाने आते थे, लगातार डकैत मूवमेंट को देखते हुए मंदिर परिसर में ही एक पुलिस चौकी का निर्माण कराया गया था. जिससे कि उन्हें मंदिर में और इस क्षेत्र में आने से रोका जा सके.

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