Dhanteras 2022: महाकाल की नगरी में है यक्ष कुबेर का मंदिर, जानिए क्या है मान्यता
Advertisement

Dhanteras 2022: महाकाल की नगरी में है यक्ष कुबेर का मंदिर, जानिए क्या है मान्यता

Yaksha Kubera Puja Dhanteras 2022: धार्मिक नगरी उज्जैन के सांदीपनी आश्रम में यक्ष कुबरे की मूर्ति स्थापित है. ऐसी मान्याता है कि इनके नाभि में इत्र लगाने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.

 

Dhanteras 2022: महाकाल की नगरी में है यक्ष कुबेर का मंदिर, जानिए क्या है मान्यता

राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: धार्मिक नगरी उज्जैनी अवंतिका जहां हर एक पर्व का अपना अलग महत्व है, मान्यतानुसार दीपावली पर्व की शुरुआत धनतेरस पर्व से शुरू हो जाती है. धनतेरस पर्व शनिवार को बड़े हर उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. बड़ी संख्या में लोग बाजार खरीदारी करने पहुंचे है. लेकिन धनतेरस पर जिन देवता को पूजा जाता है उनका उज्जैन नगरी से क्या नाता है और क्या कुछ श्री कृष्ण से जुड़ी खास कहानी है इसके बारे में आपको बताते है.

सांदीपनी आश्रम में है यक्ष कुबेर की प्रतिमा
दरअसल बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में श्री कृष्ण की शिक्षास्थली सांदीपनि आश्रम में यक्ष कुबेर की शुंग काल में बनी एक अद्भुत प्रतिमा श्री कृष्ण, बलराम व सुदामा के साथ स्थापित है, मान्यता है यक्ष कुबेर की नाभि पर इत्र लगाने से समृद्धि की प्राप्ति होती है. वहीं मंदिर के पुजारी का कहना है धनतेरस पर्व पर बड़ी संख्या में भक्त यक्ष कुबेर के दर्शन करने पहुंचते हैं. यक्ष कुबेर को धनतेरस पर विशेष श्रृंगार कर, सूखे मेवे की मिठाई और फलों का भोग लगाया गया है.

जानिए क्या है मान्यता
मंदिर के पुजारी शैलेंद्र व्यास बताते हैं कि पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण आश्रम से शिक्षा प्राप्त कर लौट रहे थे. तब गुरू सांदीपनि को गुरू दक्षिणा देने के लिए वे यक्ष कुबेर को साथ लेकर आये थे. तब श्री कृष्ण से गुरू माता ने कहा मेरे पुत्र का राक्षस शंखासुर ने हरण कर लिया है. उसे मुक्त करवा देवे यही हमारी गुरु दक्षिणा होगी, तब श्री कृष्ण राक्षक से गुरू के पुत्र को छुड़ाने गए और यक्ष कुबेर वहीं आश्रम में रह गए. वहीं गुरू माता ने प्रसन्न होकर कृष्ण को "श्री" दिया ऐसा कहते है तब से ही भगवान कृष्ण श्री कृष्ण के नाम से जाने जाने लगे. यहां आश्रम में यक्ष कुबेर की बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा है. साथ ही ऊपर श्री यंत्र लगा हुआ है.

जानिए क्या कहा पुजारी ने
पुजारी शैलेन्द्र व्यास ने बताया कि जब द्वारका नगरी को बनाने के लिए धन की आवश्यकता हुई, तब श्री कृष्ण वापस अपनी शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम में आये और जहां यक्ष कुबेर को बैठा कर गए थे. वहीं से उन्हें वापस ले जाने के लिए आग्रह किया, जिसके बाद वे द्वारका गए और द्वारका की स्थापना हुई. कुबेर की प्रतिमा यक्ष कुबेर के नाम से 84 महादेव में से 40वें क्रम के कुण्डेश्वर महादेव के गर्भ गृह में है जो कि सांदीपनि आश्रम में ही है.

उत्तर दिशा के स्वामी हैं कुबेर
आपको बता दें कुबेर किन्नरों के अधिपति माने गए है, वे भगवान नहीं यक्ष हैं, दिक्पाल उत्तर दिशा के रक्षक कहे जाते है, यक्ष धन को नहीं भोग सकते सिर्फ रक्षा कर सकते है, भगवन शिव ने कुबेर को उत्तर दिशा का स्वामी बनाया था, कुबेर 9निधियों के स्वामी होते हैं जिन्हें ब्रह्मा ने अक्षय निधियों का स्वामी बनाया और सभी दिशाओं में यक्ष की मूर्तियां बनी होती है.

ये भी पढ़ेंः Dhanteras 2022: धनतेरस पर इन चीजों की करें खरीददारी, पूरे वर्ष नहीं होगी धन की कमी

Trending news