Maihar Sharda Mata Mandir: मध्य प्रदेश के मैहर जिले में स्थित शारदा माता मंदिर, जिन्हें मैहर वाली माता के नाम से जाना जाता है दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां हर रोज चमत्कार होता है. आज भी जब पुजारी सुबह की पूजा के लिए पट (दरवाजा) खोलते खोलते हैं तो हैरान रह जाते हैं. ऐसा हजारों सालों से होता आ रहा है. आइए जानते हैं क्या है मां शारदा मंदिर की अद्भुत कहानी....
भारत में ऐसे कई सारे मंदिर हैं, जिनके चमत्कार के आगे विज्ञान भी नाकाम हो गया है. भारत की प्राचीन संस्कृति इतिहास के साथ यहां के चमत्कारी मंदिर भी दुनियाभर में अपनी पहचान के लिए जाने जाते हैं आज हम लेकर आए हैं ऐसे मंदिर की कहानी, जहां रोजाना मंदिर के कपाट खुलने से पहले चमत्कार देखने को मिलता है.
एमपी के नवगठित जिला मैहर में स्थित शारदा मां का यह मंदिर चमत्कारों से भरा हुआ है. इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त माता शारदा के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर के चमत्कारों के चर्चा हर तरफ रहती है. मैहर में त्रिकूट पर्वत पर 600 फीट की ऊंचाई पर बना ये मंदिर काफी भव्य है. माता शारदा के मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 1065 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है.
मान्यता है कि जब शिव जी के हाथ में सती माता का शव का था, तो विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती माता के शरीर के कई हिस्से कर दिए थे. माता सती के अंग के हिस्से कई स्थानों पर गिरे , जो बाद में शक्तिपीठ बने. मैहर में माता सती का हार गिरने के कारण इस जगह का नाम मैहर पड़ा. स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजाना शाम की आरती के बाद पुजारी मंदिर के कपाट बंद करके चले जाते हैं. मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा अर्चना की आवाजें आती हैं.
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि ब्रह्म मुहूर्त में जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तो यहां माता की पूजा की हुई मिलती है. यहां पहले से ही माता रानी के आगे फूल चढ़े होते हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक यह पूजा हजारों साल से योद्धा आल्हा करते आ रहे हैं, जो अक्सर मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही माता शारदा की आरती करके चले जाते हैं.
जब मंदिर के पुजारी से इस चमत्कार के विषय में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मंदिर में माता रानी का पहला श्रृंगार आल्हा करते हैं. हर रोज जब ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो यहां पहले से ही पूजा हुई मिलती है. इस रहस्य का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक की टीम भी पहुंची थी, लेकिन वैज्ञानिकों को खाली हाथ लौटना पड़ा.
बुंदेलखंड महोबा में परमार रियासत के दो योद्धा थे, जिनका नाम आल्हा और ऊदल था. रिश्ते में ये दोनों भाई वीर और प्रतापी योद्धा थे. परमार रियासत के कालिंजर नाम के राजा के दरबार में जगनिक कवि नाम का एक कवि था, जिसने आल्हा और ऊदल की वीरता पर 52 कहानियां लिखी. कहानियों के अनुसार दोनों ने अपनी आखिरी लड़ाई पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ी थी.
माना जाता है कि पृथ्वीराज को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा था, किंतु अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर आल्हा ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को छोड़ दिया. इसके बाद से दोनों भाइयों ने वैराग्य जीवन अपनाकर संन्यास ले लिया. माता शारदा के इस मंदिर में ये चमत्कार इस बात की गवाही देते हैं कि इस मंदिर में जाने वाले भक्तों की मुराद माता रानी पूरी करती है.
मैहर के ठीक पहाड़ी के नीचे आल्हा का तालाब स्थित है. मान्यता है कि आल्हा इसी तालाब में नहा कर मां की पूजा करने जाते थे. वहां रहने वाले पुजारी बताते हैं कि अब भी सुबह ऐसा आभास होता है कि तालाब से नहा कर कोई घोड़े पर सवार होकर मां के दर्शन के लिए जा रहा है. इस तालाब में लगने वाले कमल के फूल कभी कभी मां के दरबार में मिलते हैं. इन सभी चीजों की पड़ताल के बाद ऐसा माना जाता है कि हजारो सालों बाद आज भी मां के परम भक्त आल्हा जिंदा हैं. पुजारी से पहले ब्रह्म मुहूर्त में मां की पहली आरती करते हैं.
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