Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 ने चांद की पहली तस्वीरें भेजीं हैं. जिसमें चंद्रमा की सतह पर ढेर सारे गड्ढे दिखाई दे रहे हैं. अब आपके मन में सवाल ये उठ रहा होगा कि आखिर चांद पर गड्ढे क्यों है? तो जानिए
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Chandrayaan-3: किसी की खूबसूरती की तारीफ हो और चांद का जिक्र ना हो ऐसा कभी हो ही नहीं सकता. लेकिन चंद्रयान-3 द्वारा भेजी तस्वीरों को देखकर आप थोड़ा सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. क्योंकि चांद पर हजारों गड्ढे तो है ही और वहां पर रोशनी भी नहीं है. पर ऐसा क्यों है? तो चलिए जानते हैं कि क्या आखिर चांद पर इतने गड्ढे क्यों हैं?
गड्ढे कैसे होते है?
दरअसल चांद और पृथ्वी दोनों पर ही अंतरिक्ष से आने वाले पत्थर गिरते रहते हैं. इनके गिरने से ही गड्ढे बनते हैं. इन्हें इम्पैक्ट क्रेटर भी कहा जाता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चांद पर करीब 14 लाख से ज्यादा गड्ढे है. जिसमें करीब 9137 की पहचान की गई है. ऐसा नहीं है कि चांद की सतह पर जो गड्ढे है वो सिर्फ इम्पैक्ट क्रेटर है. दरअसल वहां कुछ ज्वालामुखी विस्फोट से भी बने हैं.
नासा ने देखा सबसे बड़ा गड्ढा
बता दें कि नासा ने चंद्रमा पर सबसे बड़ा गड्ढा 17 मार्च 2013 को देखा था. ये गड्ढा 40 किलो के पत्थर से बना था. जो करीब 90 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से टकराया था. ये इतना बड़ा गड्ढा है, जिसे हम टेलिस्कोप की मदद से जमीन से भी देख सकते हैं.
चांद के गड्ढे भरते क्यों नहीं?
दरअसल इसका कारण चांद पर न तो पानी का होना है, और ना ही वहां हवा चलती है. इसलिए वहां पर मिट्टी कटती नहीं है. इसलिए ये क्रेटर भरते नहीं है. वैसे ही बने रहते हैं. जबकि आमतौर पर पृथ्वी पर गड्ढों में पानी भर जाता है, और मिट्टी जम जाती है. यहां तक की उसपर पौधे भी उग जाते हैं. आपको जानकार हैरानी होगी की चंद्रमा पर ज्यादातर गड्ढे 200 साल पुराने हैं.
इस समय चंद्रयान-3 कहां पर है?
ताजा जानकारी के मुताबिक चंद्रयान-3 इस समय चांद के चारों तरफ 170Km 4313Km वाली अंडाकार ऑर्बिड में घूम रहा है. 9 अगस्त के बाद 14 तारीख की दोपहर 12.04 बजे इसका ऑर्बिट बदलेगा. फिर 16 अगस्त को यही काम होगा. हर बाद चांद से दूरी को घटाया जाएगा. 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे. 18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी. इसके बाद 23 अगस्त की शाम 5.47 बजे चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी