कांग्रेस ने हमेशा एक ही बात कही है कि कांग्रेस के नेतृत्व के बिना विपक्षी एकता की बात अधूरी है. वहीं, अखिलेश यादव राज्यों में वहां के सबसे मजबूत पार्टी को नेतृत्व देने की बात कह रहे हैं. ममता बनर्जी की भी यही मांग है.
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2024 के लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए विपक्षी पार्टियां एक मंच पर आती दिख रही हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मिशन भी सफल होता नजर आ रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाली की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बातों ने कांग्रेस समेत विपक्ष के सामने एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है. दरअसल, कांग्रेस ने हमेशा एक ही बात कही है कि कांग्रेस के नेतृत्व के बिना विपक्षी एकता की बात अधूरी है. वहीं, अखिलेश यादव राज्यों में वहां के सबसे मजबूत पार्टी को नेतृत्व देने की बात कह रहे हैं. ममता बनर्जी की भी यही मांग है.
लोकसभा चुनाव में एक साल का समय ही बचा है. ऐसे में विपक्ष को एक करने के लिए अखिलेश यादव ने नया फॉर्मूला दिया है. उन्होंने कहा, 'नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और केसीआर समेत, ऐसे नेताओं और उनके दलों को संबंधित राज्यों में नेतृत्व करने का मौका दिया जाना चाहिए.' उन्होंने कहा कि जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत होगी, वहां उसके नेतृत्व में विपक्ष चुनावी रणनीति तैयार करेगा और चुनाव लड़ेगा.
वहीं, ममता बनर्जी ने भी यही बात की और कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस को समर्थन दिया तो पश्चिम बंगाल में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस उन्हें ही आंख दिखाने लगे. कांग्रेस को भी बंगाल में उन्हें समर्थन देना होगा. ममता बनर्जी ने कहा, 'मैं शुरू से ये बात कह रही हूं कि संबंधित राज्यों में मजबूत दलों को वहां सीधे बीजेपी से टक्कर लेना चाहिए. जैसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी, बिहार में महागठबंधन, यूपी में सपा, तमिलनाडु में गठबंधन और बंगाल में टीएमसी.'
ममता बनर्जी ने कहा, 'हमने कर्नाटक में कांग्रेस को जैसा सहयोग दिया, उन्हें भी बंगाल में हमें वैसा ही सहयोग करना चाहिए. ये ठीक नहीं कि वो हमारे समर्थन का आनंद उठाएं और बंगाल में हमारा विरोध करें.'
ममता बनर्जी और अखिलेश यादव को देश के दो बड़े राज्यों में जबरदस्त जनसमर्थन मिलता रहा है. लेकिन कांग्रेस के लिए उनके फॉर्मूले को अपनाने में दिक्कत होगी. क्योंकि कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि उसके अलावा विपक्ष के चेहरे के तौर पर किसी और पार्टी को केंद्र में जगह मिले. कांग्रेसी नेताओं ने हमेशा से ये बात आगे रखी है कि कांग्रेस के नेतृत्व के बिना विपक्षी एकता की बात अधूरी है. वर्तमान में कांग्रेस को कर्नाटक में मिली बंपर जीत के बाद पार्टी के हौसले बुलंद हैं. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि वो ममता व अखिलेश की बात को आगे रखकर उनके साथ चलते हैं या फिर अपनी पुरानी जिद को लेकर विपक्षी एकता के अभियान को ठेस पहुंचाते हैं.