Indore Temple Collapse: इंदौर हादसे का जिम्मेदार कौन? कैसे प्रशासन की लापरवाही ने ले ली 35 श्रद्धालुओं की जान!
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Indore Temple Collapse: इंदौर हादसे का जिम्मेदार कौन? कैसे प्रशासन की लापरवाही ने ले ली 35 श्रद्धालुओं की जान!

Indore Temple News: इंदौर (Indore) के मंदिर में हुए हादसे में मृतकों की संख्या बढ़कर 35 हो गई है. इन मौतों पर भगवान की मर्जी कहकर संतोष नहीं किया जा सकता है. प्रशासन की लापरवाही का कच्चा-चिट्ठा खुल चुका है.

Indore Temple Collapse: इंदौर हादसे का जिम्मेदार कौन? कैसे प्रशासन की लापरवाही ने ले ली 35 श्रद्धालुओं की जान!

Indore Temple Accident: क्या आपने कभी सोचा है कि जब भी कोई त्यौहार होता है जिसमें लोगों की भीड़ मंदिरों में बढ़ जाती है तो कहीं ना कहीं से ऐसे हादसों की खबर आ जाती है जिसमें श्रद्धालुओं की जानें चली जाती हैं और त्यौहार में मातम हो जाता है. और ऐसा हमेशा से ही होता आया है. ऐसे हादसों को लोग भगवान की मर्जी कहकर संतोष कर लेते हैं और हमारे देश की सरकारें और सिस्टम इसे एक्ट ऑफ गॉड कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं. गुरुवार को एक बार फिर ऐसा ही हुआ. रामनवमी (Ram Navami) के पावन पर्व पर इंदौर (Indore) के प्राचीन बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में पूजा-आरती चल रही थी. पूरा माहौल राममय था. अचानक तेज आवाज के साथ धरती फट गई और कई लोग उसमें समा गए. इनमें कई बच्चे और महिलाएं भी थीं. और जो लोग बच गए उन्हें समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या है? पूरे मंदिर में बड़ा सा गड्ढा हो गया जिसे देखकर वहां अफरा-तफरी मच गई. थोड़ी देर में बदहवास लोगों को समझ में आया कि मंदिर में बावड़ी की छत धंस गई है. हादसा हवन के दौरान हुआ. 25 से ज्यादा लोग बावड़ी की छत पर बैठे थे. तभी ज्यादा वजन होने की वजह से उसकी छत टूट गई और लोग नीचे गिर गए.

कई श्रद्धालुओं को निकाला गया बाहर

कुछ ही देर में राज्य आपदा प्रबंधन और पुलिस की टीमें रस्सियों की मदद से लोगों को निकालने में जुट गईं. रस्सी की सीढ़ियों को नीचे गिराकर एक-एक करके लोगों को निकाला जाने लगा. बचाव के काम में स्थानीय लोग भी रेस्क्यू टीमों की मदद कर रहे थे. जैसे-जैसे रेस्क्यू ऑपरेशन आगे बढ़ रहा था. वहां मौजूद बदहवास लोगों की धड़कनें भी बढ़ रही थीं. ये वो लोग थे, जिनका कोई न कोई बावड़ी में गिरा हुआ था. जैसे ही रेस्क्यू टीम कुएं से किसी श्रद्धालु को सकुशल निकालती, माहौल में जय श्रीराम के नारे गूंजने लगते. एक 10-12 साल की बच्ची को निकालकर जब बचाव टीम बाहर निकली तो लोग भगवान का शुक्रिया अदा करने के लिए जय माता दी के नारे गूंज लगाने लगे.

हादसे में चली गई 35 की जान

जो बच गए वो खुशनसीब थे लेकिन 35 बदनसीब लोगों की इस हादसे में जान चली गई, जिसमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं. इस हादसे में जान गंवाने वाले कई लोगों के परिवार वाले ये सोचकर संतोष कर लेंगे कि ये तो भगवान की मर्जी थी. इसे कौन टाल सकता था. भगवान की मर्जी के आगे किसकी चली है? अब अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो आप अपने आप को ही धोखा दे रहे हैं क्योंकि इंदौर के मंदिर में जो हादसा हुआ है उसमें भगवान की मर्जी शामिल नहीं है. बल्कि सिस्टम और सरकार की खुदगर्जी शामिल है. वो सिस्टम जो खुद को भगवान से भी ऊपर समझता है. जिसे लगता है कि वो ऐसे हादसों को Act Of God बताकर अपनी जिम्मेदारियों से बच जाएगा.

35 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन?

लेकिन कोई पूछे ना पूछे हम तो मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार और इंदौर के प्रशासन से ये जरूर पूछेंगे कि 35 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है? रामनवमी के पावन पर्व पर इंदौर के मंदिर में हुआ हादसा एक्ट ऑफ गॉड था या सिस्टम का एक्ट ऑफ फ्रॉड? घटनास्थल पर मौजूद ज़ी न्यूज़ संवाददाता पुष्पेंद्र वैद्य ने इस सवाल की On The Spot इंवेस्टिगेशन की है.

बदहवासी, अफरा-तफरी, चीख-पुकार, मातम क्या ये एक्ट ऑफ गॉड हो सकता है? क्या भगवान अपने भक्तों को इतना बड़ा दुख दे सकते हैं? वो भी तब जब श्रद्धालु प्रभुभक्ति में लीन थे. इंदौर के मंदिर में बावड़ी की छत धंसना एक्ट ऑफ गॉड नहीं हो सकता क्योंकि ना तो बावड़ी के ऊपर मंदिर बना देना भगवान की मर्जी थी और ना ही बावड़ी की छत पर भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी भगवान की थी. ये हादसा भीड़ का एक्ट ऑफ नॉनसेंस तो हो सकता है. जो अपनी जान को भगवान के भरोसे छोड़कर बावड़ी की छत पर टूट पड़े. लेकिन एक्ट ऑफ गॉड नहीं हो सकता.

मंदिर में क्षमता से ज्यादा लोग जुट गए. प्रशासन को मंदिर में बावड़ी का पता नहीं था. मंदिर में इतनी भीड़ थी तो सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं थे? ये लापरवाहियां भगवान ने तो नहीं की थीं. तो फिर ये हादसा एक्ट ऑफ गॉड तो नहीं ही हो सकता. लेकिन सिस्टम और सरकार का एक्ट ऑफ फ्रॉड हो सकता है. प्रशासन ने मंदिर में लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जरा सा भी एफर्ट किया होता तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता.

इंदौर के इस मंदिर में जो हादसा हुआ वो भीड़ के एक्ट ऑफ नॉनसेंस और सिस्टम के एक्ट ऑफ फ्रॉड का नतीजा है. जिसने निर्दोष लोगों की जान ले ली जिसमें कई मासूम बच्चे भी शामिल हैं. ये भगवान की मर्जी से नहीं हुआ है ये सिस्टम की खुदगर्जी की वजह से हुआ है. स्थानीय लोग खुद कह रहे हैं कि ये मंदिर काफी पुरानी बावड़ी के ऊपर बना हुआ है. फिर भी लोगों की भीड़ बावड़ी की छत पर जुट गई, ये लोगों की नादानी थी. मंदिर में बावड़ी के ऊपर स्लैप डालकर उसके ऊपर भक्तों को पूजा-पाठ करने की इजाजत ने दे दी गई. ये प्रशासन की मर्जी थी. और फिर ये हादसा हो गया तो फिर इसमें भगवान की मर्जी कहां शामिल थी.

जो भी कुछ गलत हो सब भगवान के ऊपर डाल दो क्योंकि भगवान पर तो कोई सवाल उठा नहीं सकता. लेकिन याद रखिए हमारे सिस्टम और सरकारों में ऐसे हादसों को भगवान की मर्जी कहकर जिम्मेदारियों से बच निकलने का हुनर इस मंदिर से भी ज्यादा प्राचीन है. जब कोई काम अच्छा हो जाए तो सारी वाह-वाही लूट लो और जब कोई काम बिगड़ जाए तो उसका ठीकरा भगवान के सिर फोड़ दो. हमारे देश में सिस्टम और सरकारें इसी फॉर्मूले पर चलती हैं. इंदौर में बावड़ी के ऊपर मंदिर बनाकर तैयार कर दिया गया. क्या इसके लिए भी भगवान जिम्मेदार हैं?

स्थानीय लोगों ने बताया है कि पहले मंदिर परिसर में बावड़ी थी. लेकिन 10 साल पहले मंदिर का विस्तार कार्य हुआ तो बावड़ी पर छत डालकर ढंक दिया गया और वहीं पर मूर्तियों की स्थापना कर दी गई. साफ-साफ शब्दों में कहें तो ये मंदिर बावड़ी पर अतिक्रमण करके बनाया गया था और वहां अतिक्रमण का खेल अभी तक जारी है. जिसका सबूत इस वक्त मेरे हाथ में है. ये एक शिकायती पत्र है जो इंदौर के स्नेह नगर विकास मंडल की तरफ से इंदौर नगर पालिका परिषद की आयुक्त प्रतिभा पॉल को 11 मई 2022 को लिखा गया था.

इस पत्र में स्नेह नगर उद्यान की जमीन पर चल रहे निर्माण पर तत्काल कार्यवाही की मांग की गई थी. यहां गौर करने वाली बात ये है कि आज जिस मंदिर की बावड़ी की छत गिरने से 35 लोगों की मौत हुई है वो स्नेह नगर के इसी उद्यान में बना हुआ है. इस पत्र में इंदौर नगर पालिका से आग्रह किया गया है कि उद्यान में जो कार्य किए जा रहे हैं उन्हें रोका जाए और बगीचे को आम लोगों के इस्तेमाल के लिए विकसित किया जाए. इसी पत्र में ये भी लिखा गया है कि उद्यान में जो मंदिर निर्मित है. उनका सीमांकन किया जाए और इन मंदिरों का विस्तार करने के प्रयासों को रोका जाए.

ये लेटर इस बात का सबूत है कि स्नेह नगर के जिस उद्यान में बेलेश्वर महादेव मंदिर बना है. उस पर अवैध अतिक्रमण हुआ है और ये बात प्रशासन को भी पता है. जिसने दो महीने पहले ही बेलेश्वर मंदिर समिति को आदेश दिया था कि मंदिर में किए गए अवैध निर्माण को सात दिन के अंदर हटाया जाए. ये लेटर 30 जनवरी 2023 को जारी किया गया था और दो महीने बाद इतना बड़ा हादसा हो गया.

सोचने वाली बात ये है कि सदियों पुरानी किसी बावड़ी पर छत डालकर मंदिर बना दिया गया और प्रशासन को पता तक नहीं चला. या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि ये सब प्रशासन की मूक सहमति से हुआ? इसलिए तो हम कह रहे हैं कि इंदौर के मंदिर में जो हादसा हुआ है वो एक्ट ऑफ गॉड नहीं, बल्कि सिस्टम का एक्ट ऑफ फ्रॉड है और ये बात सिर्फ हम नहीं बल्कि वहां के लोग भी यही आरोप लगा रहे हैं.

आपको याद होगा कि मोरबी में पुल गिरने से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी तो सिस्टम और सरकार ने कैसे इसे एक्ट ऑफ गॉड घोषित करके लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की थी. लेकिन जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया था. भगवान को क्लीन चिट मिल गई थी और सिस्टम और सरकार का एक्ट ऑफ फ्रॉड पूरे देश के सामने आ गया था और अब इंदौर के हादसे को भी एक्ट ऑफ गॉड बताकर बचने की कोशिशें की जा रही हैं. लेकिन ये हादसा कैसे सिस्टम का एक्ट ऑफ फ्रॉड है. इसकी पूरी क्रोनोलॉजी आपको समझाते हैं.

जिस जमीन पर ये मंदिर स्थित है वहां पहले बावड़ी हुआ करती थी. बावड़ी के आसपास ही एक उद्यान है जो इंदौर नगर निगम के अंतर्गत आता है. यानी ये मंदिर उद्यान की जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया है. लोग बताते हैं कि दस साल पहले बावड़ी के ऊपर सिल्लियां डालकर मंदिर का विस्तार किया गया था. अब सोचिए प्रशासन तब भी सोचता रहा जब नगर निगम के उद्यान में मंदिर के नाम पर अतिक्रमण हुआ. प्रशासन तब भी सोता रहा जब बावड़ी पर ही कब्जा करके मंदिर का विस्तार कर दिया गया. और अब इतना बड़ा हादसा हो गया तो प्रशासन कह रहा है कि उसे तो कुछ पता ही नहीं चला. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सीधे-सीधे तो नहीं कह रहे लेकिन उनकी बातों से लग रहा है कि जैसे वो ये बताना चाह रहे हैं कि हादसा भी भगवान की मर्जी से हुआ और बचाव कार्य भी भगवान की कृपा से चल रहा है.

इंदौर के मंदिर में जो हुआ वो बेहद दुखद है. घायलों और मृतकों के साथ हमारी संवेदनाएं हैं. लेकिन दुख की बात तो ये भी है कि हमारे देश में धार्मिक स्थानों पर भगदड़ मचना और लोगों का मरना एक सामान्य सी बात हो चुकी है. ऐसी घटनाओं में अभी तक हजारों लोगों की जानें जा चुकी हैं. लेकिन ऐसी घटनाओं के बाद सरकारों के पास पीड़ितों को देने के लिए सिर्फ मुआवजे की राशि और संवेदना के दो बोल होते हैं और सिस्टम के पास अपनी लापरवाहियों को छिपाने के हजारों बहाने. इस हादसे के बाद भी यही हुआ है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ितों को मुआवजे का ऐलान कर दिया है और सिस्टम ने इस हादसे को एक्ट ऑफ गॉड साबित करने के हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए हैं. लेकिन बात सिर्फ इसी हादसे की नहीं है.

मंदिरों में भीड़ जुटना और व्यवस्था की कमी से भगदड़ मचने की हर साल कई घटनाएं होती हैं. हमारे देश में भगदड़ की 79 प्रतिशत घटनाएं धार्मिक स्थलों और धार्मिक समारोहों में होती हैं. आपको याद होगा कि पिछले वर्ष एक जनवरी को माता वैष्णो देवी भवन में भगदड़ मचने से 12 लोगों की मौत हो गई थी क्योंकि नए साल का पहला दिन था और श्रद्धालुओँ की भारी भीड़ थी जिसे कंट्रोल करने में प्रशासन फेल हो गया. ये तो हाल-फिलहाल की घटना है. धार्मिक स्थलों पर सिस्टम के एक्ट ऑफ फ्रॉड की ऐसी घटनाएं हर साल, हर राज्य में होती रहती हैं. जिनके सामने आपको इंदौर के मंदिर की घटना तो बेहद छोटी सी लगेगी.

जुलाई 2015 में आंध्र प्रदेश में पुष्करालू उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 27 लोगों की मौत हुई थी. जनवरी 2011 में केरल के सबरीमाला मंदिर के पास मची भगदड़ में कम से कम 109 लोगों की मौत हो गई थी. वर्ष 2013 में मध्यप्रदेश के रतनगढ़ माता मंदिर में नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 100 से ज्यादा श्रद्धालुओं की जान चली गई थी. सितम्बर 2008 में राजस्थान के जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में अफवाह की वजह से मची भगदड़ में 250 लोगों की मौत हो गई थी. अगस्त 2008 में हिमाचल प्रदेश में स्थित नैना देवी मंदिर में नवरात्रि उत्सव में मची भगदड़ में 146 लोगों की डेथ हो गई थी. जून 2005 को महाराष्ट्र के मंधार देवी मंदिर में भगदड़ मच गई थी. इसमें 350 लोगों की मौत हो गई थी. अगस्त 2003 में महाराष्ट्र के नासिक में कुम्भ मेले में भगदड़ मच गई थी . इसमें125 लोगों की जान चली गई थी. 1954 में इलाहाबाद में कुंभ मेले में भगदड़ मच गई थी. इसमें करीब 800 लोगों की मौत हो गई थी.

तो क्या ये सारी घटनाएं एक्ट ऑफ गॉड थीं? क्या मंदिरों में भीड़ का मैनेजमेंट भगवान संभालते हैं? जाहिर है ये सारी घटनाएं सिस्टम के एक्ट ऑफ फ्रॉड की वजह से होती हैं क्योंकि अगर सिस्टम और सरकारें लापरवाही और भ्रष्टाचार के समंदर में गोते लगाने से फुर्सत पा लें तो फिर भीड़ का मैनेजमेंट करना कोई बड़ा काम नहीं है. और इंदौर के मंदिर में हुआ हादसा तो सिस्टम की लापरवाही और भ्रष्टतंत्र का मास्टर पीस है क्योंकि बिना सिस्टम की मंजूरी के एक प्राचीन बावड़ी पर अस्थाई छत डालकर मंदिर बना दिया जाए ऐसा मुमकिन नहीं है. इसलिए हम कह रहे हैं कि इंदौर के मंदिर में 35 लोगों की मौत एक्ट ऑफ गॉड नहीं बल्कि सिस्टम का एक्ट ऑफ फ्रॉड है.

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