हीरे-जवाहरात, सोने की प्लेटिंग, कहानी शाही बग्घी की, जिसे सिक्का उछालकर भारत ने PAK से जीता था
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हीरे-जवाहरात, सोने की प्लेटिंग, कहानी शाही बग्घी की, जिसे सिक्का उछालकर भारत ने PAK से जीता था

Republic Day : 26 जनवरी पर पूरे देश की नजरें होने वाली परेड पर होती हैं. सभी जानना चाहते हैं, कि आखिर इस बार क्या नया होगा. बता दें, हर बार की तरह इस 75वें गणतंत्र दिवस पर भी काफी कुछ अलग हुआ है. इन्हीं में से एक है राष्ट्रपति की बग्गी. 

 

 Republic Day

Republic Day 2024:  75वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पारंपरिक बग्घी में बैठकर राष्ट्रपति भवन से कर्तव्य पथ पर पहुंची थी.  बता दें, राष्ट्रपति मुर्मू के साथ चीफ गेस्ट फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी बग्घी में सवार थे.  यह बग्घी पाकिस्तान से टॉस जीतकर भारत को मिली थी. इस 75वें गणतंत्र दिवस पर मुर्मू ने 250 साल पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया है. बग्गी के इतिहास की बात करें तो ये परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है. 

 

पहले गणतंत्र दिवस पर किया था बग्घी का इस्तेमाल

1950 में पहले गणतंत्र दिवस पर इस बग्घी का इस्तेमाल किया गया था. तब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस बग्घी में बैठे थे. 1984 तक यह परंपरा जारी रही. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इस बग्घी की जगह हाई सिक्योरिटी वाली कार ने ले लिया.

 

पाकिस्तान से टॉस जीतकर भारत को मिली बग्घी

15 अगस्त 1947 को जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो दो भाइयों के बीच बंटवारे की तरह हर सामान का बंटवारा होने लगा. हर चीज का बंटवारा करने के लिए भारत की तरफ से एचएम पटेल और पाकिस्तान की तरफ से चौधरी मोहम्मद अली को प्रतिनिधि बनाया गया. सभी चीजों को 2-1 के अनुपात में बांटा जा रहा था. जब बारी राष्ट्रपति के बग्घी की आई तो मामला फंस गया, क्योंकि बग्घी तो एक ही थी. मामला फंसता देख एक कमांडेंट ने आइडिया दिया कि टॉस के सहारे इसका फैसला किया जाए, फिर क्या था सिक्का उछाला गया और भारत ने टॉस से यह बग्घी जीत ली, लेकिन बाद में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो बग्घी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था.

 

कई मायनों में खास 75वां गणतंत्र

देश का 75वां गणतंत्र इस बार कई मायनों में खास है. इस साल कर्तव्य पथ पर परेड और झांकियों में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा दिखी. सुबह साढ़े 10 बजे परेड शुरू हुआ तो 100 महिलाओं ने शंख और नगाड़ा बजाकर इसका आगाज किया. ये गणतंत्र दिवस के इतिहास में पहली बार हुआ है. 

 

वायसराय करते थे बग्घी का इस्तेमाल

ब्रिटिश शासन के दौरान वायसराय इस बग्घी का इस्तेमाल करते थे, लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रपति ने इसका प्रयोग करना शुरू की. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बग्घी की पहली सवारी की थी. इसके बाद कई राष्ट्रपतियों ने इस ऐतिहासिक बग्घी की सवारी की.

 

बग्गी है बेहद शाही

राष्ट्रपति की बग्गी बेहद शाही है. इसकी खासियत यह है कि इसे घोड़े ही खींचते हैं और इस पर कई तरह से हीरे जवाहरात जड़े हैं. सोने की प्लेटिंग की गई है. आजादी से पहले इसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े खींचते थे, लेकिन बाद में सिर्फ 4 घोड़े ही इसे खींचते हैं. 

 

प्रणब मुखर्जी ने भी की बग्घी पर सवारी

2014 में बीटिंग रिट्रीट के दौरान प्रणब मुखर्जी ने बग्घी की सवारी की थी. इसके बाद रामनाथ कोविंद ने भी सवारी की लेकिन गणतंत्र दिवस परेड में 40 साल बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बग्घी की सवारी की.

 

सुरक्षा कारणों से हटाई थी बग्गी  

दरअसल, सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक समारोहों में बग्गी की परंपरा को बंद कर दिया गया था. लेकिन अब एक बार फिर से इसे पुनर्जीवित कर दिया गया है. 

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