घर में रोजाना इकट्ठा होने वाला सूखा कचरा और थोड़े से कागज के टुकड़ों का इस्तेमाल कर जुगाड़ के गीजर से 2 मिनट में 25 से 30 लीटर गरम पानी किया जा रहा है. यह जुगाड़ का गीजर मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक टीचर ने बनाया है.
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सचिन गुप्ता/ छिंंदवाड़ा: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में इन दिनों पड़ रही तेज सर्दी में पानी गर्म करने के लिए एक शिक्षक ने जुगाड़ से देसी गीजर बनाया है. सर्दी में गर्म पानी करने के लिए किसी हीटर से कम नहीं है. सिर्फ दो मिनट में ही 25 से 30 लीटर पानी इस देसी जुगाड़ के गीजर के जरिए गर्म किया जा रहा है. खास बात यह है कि इसमें पानी गर्म करने के लिए गैस या तेल की जरूरत नहीं है और ना ही इसके लिए बिजली का कनेक्शन चाहिए.
इसमें कचरे का इस्तेमाल होता है और वह भी आपको बाहर ढूंढने की जरूरत नहीं है. घर में रोजाना इकट्ठा होने वाला सूखा कचरा और थोड़े से कागज के टुकड़े इसके लिए खूब हैं. इस देसी जुगाड़ को क्षमता के अनुसार पहले पानी से भर दिया जाता है और फिर इसमें कचरा डालकर इसे जलाया जाता है. कचरे में आग लगाने के महज दो मिनट बाद ही इसमें लगे नल से गर्म पानी आना शुरू हो जाता है जो न केवल नहाने-धोने के लिए, बल्कि कपड़े और बर्तन धोने में भी काम में लिया जा सकता है. बाजार में गर्म पानी करने के लिए मिलने वाले गीजर की तुलना में यह काफी सस्ता भी है. वहीं, सर्दी के सीजन में रोजाना इस्तेमाल करने के बावजूद आपको बिजली का खर्च भी वहन नहीं करना पड़ेगा.
भंडारकुंड छात्रावास में पदस्थ शिक्षक लाखाजी माटे ने कबाड़ से दो पुराने सिलेंडर खरीदकर जुगाड़ से देसी गीजर बनाया है. यह वजन में काफी हल्के हैं और आसानी से इन्हें उठाकर कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है. इस जुगाड़ को किसी मशीन से नहीं, बल्कि हाथों से ही बनाया गया है. इसके निर्माण के लिए दो पुराने कबाड़ के सिलेंडर और एंगल का उपयोग किया गया है.
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इस जुगाड़ के गीजर में ऊपर की तरफ ठंडा पानी डालने के लिए पाइप दे रखा है. वहीं दूसरी ओर नल लगा हुआ है. ठंडा पानी डालने के बाद कचरे को जलाया जाता है और दो मिनट में ही दूसरी ओर लगे नल से गर्म पानी आना शुरू हो जाता है. छात्रावास के शिक्षक द्वारा बनाए गए इस जुगाड़ के गीजर का उपयोग वर्तमान में छात्रावास के बच्चे आसानी से कर रहे हैं.
देखा जाए तो पानी गर्म करने के लिए बिजली से चलने वाले गीजर और हीटर के मुकाबले ये देसी गीजर काफी सस्ता और सुरक्षित भी है. इन्हें शुरू करने के लिए न तो बिजली का कनेक्शन चाहिए और न ही तेल. चाहिए तो सिर्फ सूखा कचरा जबकि बिजली चलित उपकरणों में अक्सर फाल्ट और करंट लगने का भी डर लगा रहता है.
भंडारकुंड आदिवासी सीनियर छात्रावास/आश्रम में पदस्थ शिक्षक लाखाजी माटे ने बताया कि परिसर का कचरा बाहर सड़क पर फेंकते हैं जो उड़कर आसपास फैल जाता है. इस जुगाड़ की सहायता से न केवल कचरा नष्ट किया जा सकता है, बल्कि इससे गर्म पानी भी किया जा सकता है.
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