DNA With Sudhir Chaudhary: विरोध प्रदर्शन और दंगों में क्या फर्क होता है?
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DNA With Sudhir Chaudhary: विरोध प्रदर्शन और दंगों में क्या फर्क होता है?

DNA With Sudhir Chaudhary: लोग ये भूल चुके हैं कि विरोध प्रदर्शन और दंगों में क्या फर्क होता है. आज हम आपको बताएंगे कि विरोध के नाम पर दंगे करने वालों के साथ दूसरे देशों में क्या होता है.  

DNA With Sudhir Chaudhary: विरोध प्रदर्शन और दंगों में क्या फर्क होता है?

DNA With Sudhir Chaudhary: अब हम आपको ये बताएंगे कि विरोध प्रदर्शन और दंगों में क्या फर्क होता है? हमारे देश में एक खास वर्ग के लोग अब ये आरोप लगा रहे हैं कि 10 जून को शुक्रवार की नमाज के बाद दंगे फैलाने वाले आरोपियों को परेशान किया जा रहा है. और लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन का अधिकार सबको होना चाहिए. आज ऐसे तमाम लोगों को हम ये बताएंगे कि विरोध प्रदर्शन और दंगों में क्या फर्क होता है. कुवैत जैसे देश में नुपूर शर्मा के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले तमाम लोगों को अब वहां से डिपोर्ट कर दिया गया है यानी देश से निकाल दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट में कैसे याचिका हुई दायर 

लेकिन उससे पहले आपको उस याचिका के बारे में बताते हैं, जो हमारे देश के रिटायर्ड Judges और वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की है. इसमें लिखा है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों को निशाना बना रही है, उनके खिलाफ गलत तरीके से मुकदमें दर्ज कर रही है. कई मामलों में आरोपियों का धर्म देख कर उनके घरों को बुलडोजर से गिराया जा रहा है. और जो प्रदर्शनकारी, एक खास धर्म से आते हैं, उनके साथ पुलिस थानों में मारपीट की जा रही है. इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से स्वत संज्ञान लेने के लिए कहा गया है और इसमें ये भी लिखा है कि अदालत उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को प्रदर्शनकारियों पर ऐसी कोई भी कार्रवाई करने से रोके. इस याचिका को दायर करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के तीन रिटायर्ड Judges के अलावा हाई कोर्ट के भी कुछ रिटार्यड जज हैं. इसके अलावा शांति भूषण, प्रशांत भूषण, इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर जैसे सुप्रीम कोर्ट के वकील भी इस याचिका का हिस्सा हैं.

क्यों हो रहा दंगा करने वालों का बचाव 

अब आप सोचिए, ये लोग हमारे देश में दंगा करने वालों का बचाव कर रहे हैं. और जिन हिंसक विरोध प्रदर्शनों में भारत के लोकतंत्र और संविधान को चुनौती दी गई, उन प्रदर्शनों को ये शांतिपूर्ण बता रहे हैं. जानिए इस चिट्ठी में और क्या लिखा है? सोचिए ये तमाम Judges जब भारत की न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा रहे होंगे तो इन्होंने कैसे फैसले दिए होंगे और उन फैसलों के पीछे क्या मंशा रही होगी. आज यहां आपको ये बात भी समझनी होगा कि विरोध प्रदर्शनों और दंगों में फर्क होता है. भारत का संविधान देश के सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार देता है. लेकिन संविधान में कहीं भी दंगा करने की छूट नहीं दी गई है. 10 जून को शुक्रवार की नमाज के बाद इस देश में जो कुछ भी हुआ, उसे विरोध प्रदर्शन कहना बिल्कुल भी उचित नहीं होगा. उस दिन हमारे देश के 14 राज्यों में एक साथ और एक ही समय पर दंगे हुए थे और इन दंगों के दौरान गाड़ियों को आग लगाई गई, पत्थरबाजी हुई और पुलिस को निशाना बनाया गया.

मन्दिर पर हमले पर लोगों की चुप्पी 

आज हमें रांची में भड़की हिंसा के भी कुछ नए Videos मिले हैं, जिनमें हजारों लोगों की हिंसक भीड़ पुलिस को पीटते हुए नजर आ रही है. लेकिन सोचिए, क्या इन पुलिसवालों की सुरक्षा के लिए कोई सुप्रीम कोर्ट गया? रांची में उस दिन इस भीड़ ने एक मन्दिर पर भी हमला किया था, जिसके कुछ Videos भी हमें मिले हैं. इनमें एक व्यक्ति मन्दिर पर देसी बम से हमला करते हुए दिख रहा है. ये कितने दुर्भाग्य की बात है कि, इस देश में धार्मिक अपमान के मुद्दे पर एक खास वर्ग के लोगों ने जबरदस्त हिंसा की. लेकिन जब इसी हिंसा में एक मन्दिर को निशाना बनाया गया तो इस पर किसी ने कुछ नहीं कहा.

दोहरे मापदंड समझने होंगे

ऐसा कैसे हो सकता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी करना धार्मिक अपमान है और मन्दिर पर हमला करना और हिन्दुओं की आस्था को ठेस पहुंचाना धार्मिक अपमान नहीं है. ये दोहरे मापदंड आज आपको समझने होंगे. इस समय हमारे देश के बुद्धिजीवी, लिबरल्स और विपक्षी नेता प्रयागराज में बुलडोजर चलाने का ये कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि ये कार्रवाई एक निर्दोष व्यक्ति पर हुई है. जबकि सच ये है कि, ये बुलडोजर जिस व्यक्ति के घर पर चलाया गया, उसका नाम जावेद मोहम्मद उर्फ जावेद पंप है और वो प्रयागराज में भड़की हिंसा का मुख्य आरोपी है. 

बीते महीने दिया गया जावेद को नोटिस 

Prayagraj Development Authority ने 12 जून को ही उसके घर पर बुलडोजर चलाया है. और उसका कहना है कि इस घर का निर्माण नियमों के खिलाफ किया गया था और इस मामले में प्रशासन की तरफ से 10 मई को एक कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था, जिस पर 24 मई तक जवाब देना था. यानी इस घर पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई हिंसा के बाद शुरू नहीं हुई. बल्कि इस मामले में हिंसा से एक महीने पहले ही नोटिस जारी हो गया था. जब जावेद मोहम्मद ने इस नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया तो 25 मई को Prayagraj Development Authority ने ये आदेश जारी किया कि जावेद मोहम्मद को 9 जून तक अपना घर गिराना होगा. ये बात हिंसा से एक दिन पहले की है. लेकिन जब इस आरोपी ने इस आदेश को भी नहीं माना तो अथॉरिटी ने 12 जून को इस घर पर बुलडोजर चला दिया. 

अब पत्नी का बताया जा रहा घर 

हालांकि ये मामला अब इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गया है, जहां इस कार्रवाई को ये कहते हुए चुनौती दी गई है कि इस घर के मालिक जावेद मोहम्मद नहीं बल्कि उनकी पत्नी परवीन फातिमा हैं. उन्हें ये घर उनके माता-पिता से तोहफे के रूप में मिला था. इसलिए जावेद मोहम्मद के नाम पर नोटिस जारी करके घर पर बुलडोजर चलाना न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है. फिलहाल जावेद मोहम्मद की पत्नी ने अदालत से ये मांग की है कि सरकार उनका घर फिर से बना कर दे. हालांकि पुलिस का कहना है कि उसे इस घर से अवैध हथियार और आपत्तिजनक पोस्टर बरामद हुए हैं, जिनका कनेक्शन इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों और आतंकवादी संगठनों से हो सकता है. प्रयागराज के अलावा सहारनपुर में भी हिंसा के आरोपियों के घर बुलडोजर से गिराए गए हैं.

 

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