Holi 2023: इस गांव में मनाई जाती है ‘ढेला मार’ होली, वर्षों पुरानी इस परंपरा को देखने दूर-दूर से आते हैं लोग
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Holi 2023: इस गांव में मनाई जाती है ‘ढेला मार’ होली, वर्षों पुरानी इस परंपरा को देखने दूर-दूर से आते हैं लोग

Holi Celebration 2023: गांव के लोगों को कहना है कि इस ढेला मार होली में आज तक कोई गंभीर रूप से जख्मी नहीं हुआ. खास बात यह है कि इस खेल में गांव के मुस्लिम भी भाग लेते हैं. 

Holi 2023: इस गांव में मनाई जाती है ‘ढेला मार’ होली, वर्षों पुरानी इस परंपरा को देखने दूर-दूर से आते हैं लोग

Holi Celebration 2023: होलिका दहन के साथ ही झारखंड में भी पूरा माहौल होलीमय हो गया है. लेकिन लोहरदगा जिला अंतर्गत बरही चटकपुर गांव में सालों पुरानी परंपरा के अनुसार ऐसी होली मनाई जा रही है जिसकी चर्चा अब दूर-दूर तक होती है. सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार गांव के मैदान में गाड़े गए एक विशेष खंभे को छूने-उखाड़ने की होड़ के बीच मिट्टी के ढेलों की बारिश की जाती है.

गांव के पुजारी मैदान में खंभा गाड़ देते हैं
परंपरा यह है कि होलिका दहन के दिन पूजा के बाद गांव के पुजारी मैदान में खंभा गाड़ देते हैं और अगले दिन इसे उखाड़ने और पत्थर (ढेला) मारने के उपक्रम में भाग लेने के लिए गांव के तमाम लोग इकट्ठा होते हैं. मान्यता यह है कि कि जो लोग पत्थरों से चोट खाने का डर छोड़कर खूंटा उखाड़ने बढ़ते हैं, उन्हें सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है. ये लोग सत्य के मार्ग पर चलने वाले माने जाते हैं.

गांव के लोगों को कहना है कि इस पत्थर मार होली में आज तक कोई गंभीर रूप से जख्मी नहीं हुआ. खास बात यह है कि इस खेल में गांव के मुस्लिम भी भाग लेते हैं. अब ढेला मार होली को देखने के लिए दूसरे जिलों के लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचने लगे हैं. खूंटा उखाड़ने और ढेला फेंकने की इस परंपरा के पीछे कोई रंजिश नहीं होती, बल्कि लोग खेल की तरह भाईचारा की भावना के साथ इस परंपरा का निर्वाह करते हैं.

बड़ी संख्या में लोग होली देखने आते हैं
लोहरदगा के एक बुजुर्ग मनोरंजन प्रसाद बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में बरही चटकपुर की इस होली को देखने के लिए लोहरदगा के अलावा आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं, लेकिन इसमें सिर्फ इसी गांव के लोगों को भागीदारी की इजाजत होती है. यह परंपरा सैकड़ों वर्षो से चली आ रही है.

वह बताते हैं कि इस परंपरा की शुरूआत होली पर गांव आने वाले दामादों से चुहलबाजी के तौर पर शुरू हुई थी. गांव के लोग दामादों को खंभा उखाड़ने को कहते थे और मजाक के तौर पर उनपर ढेला फेंका जाता था. बाद में गांव के तमाम लोग इस खेल का हिस्सा बन गए.

(इनपुट - आईएएनएस)

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