Supreme Court: दल-बदल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, हम MP, MLA पर नहीं लगा सकते चिप
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Supreme Court: दल-बदल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, हम MP, MLA पर नहीं लगा सकते चिप

चीफ जस्टिस ने इस अजीबोगरीब दलील पर सवाल उठाते हुए कहा कि कोई शख्स ऐसे कैसे कानून बना सकता है. लोकतांत्रिक देशों में  कानून बनाने का काम संसद में जनप्रतिनिधियों का है. अगर आपकी बात मान ली जाए तो लोग कहेंगे कि हमें जजों की जरूरत नहीं है. हम सड़कों पर इंसाफ करेंगे.

Supreme Court: दल-बदल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, हम MP, MLA पर नहीं लगा सकते चिप

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक अजीबो गरीब याचिका में मांग की गई. जिसमें सभी  विधायकों और सांसदों पर इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिए नजर रखी जाने की बात कहीं. याचिकाकर्ता का तर्क था कि डिजिटल मॉनिटरिंग के जरिये जनप्रतिनिधियों के करप्शन और दल बदल पर रोक लग सकेगी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वो अपनी ओर से सांसदों और विधायकों  पर चिप लगाने का आदेश नहीं दे सकता. ये तो उन गुनहगारों के लिए किया जाता है. जिनके कानून से भागने की आशंका होती है. कोर्ट ने कहा कि जनप्रतिनिधियों की अपनी निजता है. कोर्ट उन पर नजर रखने के लिए कैसे उनके हाथ और टांग पर चिप लगाने का आदेश दे सकता है.

कोर्ट ने जुर्माना लगाने की चेतावनी दी
सुप्रीम कोर्ट में याचिका सुरेंद्र नाथ कुंद्रा नाम के शख्स की ओर से दायर की गई थी. कुंद्रा ने कोर्ट में खुद ही जिरह करना शुरू किया और कोर्ट से अपना केस रखने की इजाजत मांगी. बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़  ने कहा कि वो अपना केस रख सकते है. पर ध्यान रहे कि वो अदालत का कीमती वक्त इस्तेमाल कर रहे है. अगर कोर्ट को लगेगा कि याचिका निरर्थक है. तो कोर्ट उन पर 5 लाख का जुर्माना लग सकता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि ये कोर्ट का ईगो नहीं है. ये पब्लिक टाइम है और कोर्ट को दूसरे मामले भी सुनने है.

ये थी याचिकाकर्ता की दलील
इसके बाद याचिकाकर्ता ने दलील रखनी शुरू की. कुंद्रा ने कहा कि लोग सांसद और विधायकों को चुनते है. उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वो  जनता के प्रतिनिधि बनकर काम करें. पर वो खुद को ही शासक समझने लगते है. चीफ जस्टिस ने इस पर टोकते हुए कहा कि आपकी ये शिकायत किसी एक के लिए हो सकती है. पर आप सभी  के लिए ऐसा कैसे बोल सकते है. कुंद्रा ने कहा कि संविधान ने असली ताकत जनता को दी है. सांसद, विधायक पब्लिक सर्वेंट है. कानून बनाने का अधिकार पब्लिक सर्वेंट का न होकर जनता का होना चाहिए.

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कानून बनाना संसद का काम

चीफ जस्टिस ने इस अजीबोगरीब दलील पर सवाल उठाते हुए कहा कि कोई शख्स ऐसे कैसे कानून बना सकता है. लोकतांत्रिक देशों में  कानून बनाने का काम संसद में जनप्रतिनिधियों का है. अगर आपकी बात मान ली जाए तो लोग कहेंगे कि हमें जजों की जरूरत नहीं है. हम सड़कों पर इंसाफ करेंगे. उन्हें  कोई जेबकतरा मिलेगा तो वो  उसे खुद सजा देने लगेंगे. हम इसकी इजाजत नहीं दे सकते. 

सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार  याचिका खारिज करते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों की अपनी व्यक्तिगत जिंदगी है. उनका अपना परिवार है. हम उन पर हर वक्त सर्विलांस रखने का निर्देश नहीं दे सकते है. कोर्ट ने सुनवाई शुरू होते हुए याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने की चेतावनी दी थी लेकिन, बाद में जुर्माना नहीं लगाया. कोर्ट ने उन्हें भविष्य में ऐसी याचिका दाखिल न करने की चेतावनी के साथ याचिका खारिज कर दी.
Input: Hemang Barua 

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