Sitaram Yechury Death: सीताराम येचुरी के निधन के बाद एक बार फिर देश में वामपंथ की चर्चा हो रही है. आज के समय में लेफ्ट केंद्रित राजनीति हाशिए पर आ गई है. आखिर ऐसा कैसे हुआ और वामपंथी लाल सलाम क्यों कहते हैं. जानिए
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कॉमरेड सीताराम येचुरी को लाल सलाम... लाल सलाम, लाल सलाम. आधा हाथ उठाया, हवा में उसे झकझोरते हुए नेताओं ने लेफ्ट के दिग्गज नेता और माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी को श्रद्धांजलि दी. बृहस्पतिवार (12 सितंबर 2024) को 72 साल की उम्र में येचुरी का दिल्ली एम्स में निधन हो गया. वह कई दिनों से वेंटिलेटर पर थे. CPI(M) के दिल्ली ऑफिस में कई बड़े नेता जुटे और येचुरी की तस्वीर के सामने अपने अंदाज में श्रद्धांजलि दी गई. हां, आमतौर पर ऐसे समय में पुष्प अर्पित करने के बाद लोग दिवंगत व्यक्ति की तस्वीर या प्रतिमा के सामने हाथ जोड़ते हैं लेकिन वामपंथियों का तरीका थोड़ा अलग है.
दरअसल, वामपंथी संस्कृति में कॉमरेड और लाल सलाम का विशेष महत्व है. साथी को कॉमरेड कहना और क्रांतिकारी उद्घोष के तौर पर लाल सलाम की गूंज दशकों से सुनाई देती रही है. वैसे कॉमरेड शब्द का अर्थ साथी, सहकर्मी या सहयोगी होता है. यह स्पेनिश शब्द कैमराडा से आया है जिसका मतलब साथी सैनिक होता है. अब सवाल उठता है कि लाल सलाम ही क्यों कहते हैं? यह समझने से पहले येचुरी को श्रद्धांजलि दिए जाने का वीडियो देखिए.
VIDEO | Leaders pay last respects to CPI(M) leader Sitaram Yechury at the party office in Delhi. Yechury passed away at the AIIMS earlier today following prolonged illness. pic.twitter.com/iNpkNkXaKe
— Press Trust of India (@PTI_News) September 12, 2024
लाल सलाम क्यों कहते हैं वामपंथी?
आपने अक्सर सुना होगा लेफ्टिस्ट विचारधारा को मानने वाले या प्रभावित लोग 'कॉमरेड लाल सलाम' कहकर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. वे दूसरा कोई रंग हरा, नीला, पीला नहीं बोलते. दरअसल, लाल का मतलब क्रांति से है. वामपंथ में लाल सलाम का मतलब क्रांति को सलाम करने की भावना से है. जी हां, यह वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों के लिए क्रांतिकारी अभिवादन है. इसमें हाथ को आधा उठाकर नारा लगाने की परंपरा है.
वामपंथी लोग समाज के हर इंसान के साथ एक जैसे व्यवहार की वकालत करते हैं. अमीरों से ज्यादा टैक्स वसूलने की बात कही जाती है जिससे बराबरी लाई जा सके. इस विचारधारा के मूल में सामाजिक बराबरी है. इस तरह से देखिए तो इंकलाब जिंदाबाद जैसा जोशीला नारा लाल सलाम भी है.
लाल झंडे के नीचे आधी आबादी
आज के समय में अपने देश में वामपंथी नेता हाशिए पर क्यों चले गए, यह समझने से पहले लाल झंडे को समझना जरूरी है. लाल झंडा शुरुआत से बगावत और क्रांति का प्रतीक माना जाता रहा है. इसकी शुरुआत रूस से मानी जाती है. एक समय दुनिया की लगभग आधी आबादी इस लाल झंडे के नीचे एकजुट हो गई थी. इसमें चीन, वियतनाम, क्यूबा जैसे कई देश शामिल थे. बाद में आप जानते हैं कि दो खेमे बन गए. अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी देश आए और रूस के नेतृत्व में लाल झंडे वाले.
भारत में भी तमाम यूनियनों ने लाल झंडा उठाकर अपनी एकजुटता दिखाई. छात्र राजनीति, श्रमिक, सिनेमा और साहित्यिक आंदोलन लाल झंडे के आंदोलन में शामिल रहे. इससे कई दिग्गज नेता और कलाकार निकले. नंबूरीपाद, सरकार, बसु जैसे कई नेताओं की आज भी बातें होती हैं. ये ऐसी शख्सियत रहे, जो बड़े पद पर होते हुए भी बेहद सादा जीवन जीते थे.
सीताराम येचुरी भी छात्र राजनीति से आए थे. एक बार उन्होंने इंदिरा गांधी को जेएनयू के कुलाधिपति पद से इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था. (पूरी खबर पढ़ें) आपातकाल के दौरान येचुरी को विशेष पहचान मिली. इंदिरा गांधी को घेरे हुए जेएनयू के छात्र और ज्ञापन पढ़ते हुए युवा येचुरी की तस्वीर इतिहास का हिस्सा बन गई. कल जब येचुरी के निधन की खबर आई तो कई लोगों ने सोशल मीडिया पर वही तस्वीर शेयर कर कॉमरेड को लाल सलाम लिखा.
Absolutely stunned & heartbroken at the untimely demise of #sitaramyechury sir. He was a towering figure of progressive politics & a mentor to so many young people. My deepest condolences to his family, we join you in this time of grief. Lal salaam comrade, rest in power! pic.twitter.com/aPYoMYDlaE
— Swara Bhasker (@ReallySwara) September 12, 2024
फिर बिखर क्यों गई एकजुटता?
हां, आज के समय में यह बड़ा सवाल है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जिस तरह से शहरीकरण बढ़ा है, हाई टेक्नोलॉजी आई और उसने जीवन को बदला है. उससे संगठित होने वाले उस वर्ग पर सीधा असर पड़ा, जो लाल झंडे लेकर एकजुट हो जाया करता था. आज वो पहले वाली जिजिविषा खत्म हो गई है. आज के समय में व्यक्ति खुद तक सीमित हो गया है. उसे सिर्फ अपनी और अपने परिवेश की जरूरतों का बोझ ही परेशान किए रहता है. समाज के हिसाब से देखें तो इसे बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता लेकिन यही आज के समय में व्यावहारिक है.
बाकी, वामपंथ का ही कमाल था कि क्यूबा जैसे देश ने कभी अमेरिका को चुनौती दे डाली थी. शोषण के खिलाफ लाल झंडे का आंदोलन चला था लेकिन यह कमजोर होता गया. अपने देश में ही लाल झंडा अब गाहे-बगाहे दिखाई देता है.