Vish Yoga: क्या होता है विष योग, कहीं आपकी कुंडली में बना यह योग आपको तो नहीं दे रहा परेशानी?
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Vish Yoga: क्या होता है विष योग, कहीं आपकी कुंडली में बना यह योग आपको तो नहीं दे रहा परेशानी?

ज्योतिष के अनुसार कई तरह के शुभ और अशुभ योग ग्रहों की युति की वजह से कुंडली में बनते हैं जिसका जातक के जीवन पर सीधा असर देखने को मिलता है. आपको बता दें कि नवग्रहों में कुछ ग्रह सम भाव रखते हैं तो कुछ क्रूर ग्रह हैं.

फाइल फोटो

Vish Yoga: ज्योतिष के अनुसार कई तरह के शुभ और अशुभ योग ग्रहों की युति की वजह से कुंडली में बनते हैं जिसका जातक के जीवन पर सीधा असर देखने को मिलता है. आपको बता दें कि नवग्रहों में कुछ ग्रह सम भाव रखते हैं तो कुछ क्रूर ग्रह हैं. वहीं दो पापी ग्रह भी इसमें शामिल हैं.  ऐसे में ज्योतिष के अनुसार जहां एक तरफ चंद्र को शांत, सौम्य और मन का कारक ग्रह माना गया है. वहीं शनि को क्रूर ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. ऐसे में इनदोनों के योग या युति से जो योग बनता है उसे विष योग कहा जाता है. 

विष योग जैसा की नाम से ही लगता है यह योग जिस जातक के जीवन में आ जाए उसके जीवन को जहर कर देता है. इन दोनों ग्रहों के बीच दृष्टि संबंध भी हो तो यह घातक योग बनता है. 

चंद्रमा को जहां मन का कारक कहा जाता है तो वहीं शनि शरीर के अंगों में या अलग-अलग भागों में दर्द का कारक है. ऐसे में शनि और चंद्र दोनों कुंड़ली में मारक और या कारक भी हों तो भी त्रिक भाव में इनका बैठना इस विष योग का निर्माण करता है. 

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शनि और चंद्र अगर मारक हो और जिस घर में युति बना रहे हों वह उसी घर के अनुसार आपके जीवन में रोग और कष्ट देंगे. अगर सिंह और धनु लग्न की कुंडली के जातक हों तो उनको यह योग विशेष प्रभावित करता है. चंद्र और शनि की युति अगर 10 से 22 डिग्री के मान तक हो तो यह जातक के जीवन की गंभीर बीमारी का संकेत देता है. 

प्रथम भाव में यह विष योग स्नायु संबंधी रोग. दूसरे भाव में दाहिने आंख और दांत संबंधी रोग. तीसरे भाव में गला, दायां कान और गर्दन से संबधित रोग देता है. जकि चौथे घर में यह छाती, फेफड़े या दिल से संबंधित बीमारी देता है. 

पांचवें भाव में पाचन तंत्र या गर्भाशय. छठे भाव में चोट, हादसे, आंत से संबंधित बीमारी का संकेत देता है. सातवें भाव में यह मूत्र मार्ग को आठवें भाव में जननांग और मृत्यु के समान कष्ट देने वाला होता है. नवम भाव में कूल्हे, जांघ की बीमारी के साथ भाग्य को प्रभावित करनेवाला होता है. दशम भाव में यह कामकाज पर असर डालता है. जोड़ों के दर्द देता है. एकादश भाव में बायां कान और घुटने इसकी वजह से रोग ग्रस्त होते हैं. जबकि 12वें भाव में यह अनिंद्रा, डिप्रेशन, अस्पताल और जेल के चक्कर लगवाने वाला होता है. 

ऐसे में इस विष योग से बचने के लिए शनि और चंद्र के बीच मंत्र का जाप करने के साथ शनि और चंद्र से जुड़ी चीजों का दान जरूर करना चाहिए, इसके साथ ही शनि और चंद्र के सात रत्नों को अभिमंत्रित कर जल में प्रवाहित करना चाहिए. कुत्ते और गाय की खूब सेवा करनी चाहिए और बेसहारा, अपंग और कोढ़ी की हरसंभव मदद करनी चाहिए, ऐसे लोगों को सफेद चीजों का दान बेहद लाभकारी है. 

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