Jharkhand News: 684 गांव...20 हजार से ज्यादा मजदूर बच्चे, पढ़िए अभ्रक क्षेत्र की 'कलंक' कहानी
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Jharkhand News: 684 गांव...20 हजार से ज्यादा मजदूर बच्चे, पढ़िए अभ्रक क्षेत्र की 'कलंक' कहानी

Kailash Satyarthi: नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने एक अध्ययन में पाया था कि झारखंड की अभ्रक खदानों में 5,000 से ज्यादा बच्चे काम करते हैं. उनके अनुसार 2019 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 20,000 हो गई थी.

Jharkhand News: अभ्रक क्षेत्र में 684 गांवों के 20 हजार से ज्यादा बच्चे 'मजदूरी' के कलंक से मुक्त

कोडरमा: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने झारखंड की अभ्रक खदानों को 'बाल श्रम मुक्त' घोषित कर दिया है. शुक्रवार को कोडरमा में आयोजित एक कार्यक्रम में आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने ऐलान किया कि अभ्रक खदानों में काम करने वाले सभी बाल मजदूरों को न सिर्फ 'मुक्ति' दिलाई गई है, बल्कि इन सभी का स्कूलों में दाखिला भी कराया गया है. 

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने वर्ष 2004 में एक अध्ययन में पाया था कि झारखंड की अभ्रक खदानों में 5,000 से ज्यादा बच्चे काम करते हैं. 2019 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 20,000 हो गई थी. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने शुक्रवार को आधिकारिक तौर पर ऐलान किया कि अभ्रक खदानों से बाल मजदूरी का उन्मूलन हो गया है. आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि आज मैं ऐलान करता हूं कि सभी बच्चे अभ्रक खदानों में शोषण से मुक्त हो चुके हैं. मुझे यह बताते हुए हर्ष और गर्व हो रहा है कि अब ये बच्चे खदानों में नहीं, बल्कि स्कूल जा रहे हैं. बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान, ग्राम पंचायतों, राज्य सरकार और जिला प्रशासन के साझा प्रयासों और इच्छाशक्ति से यह उपलब्धि हासिल हुई है. अभ्रक खदानों में बाल मजदूरों की शिनाख्त के लिए 2004 में अध्ययन की शुरुआत करने वाले चर्चित बाल अधिकार कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भुवन ऋभु ने कहा कि अभ्रक चुनने और खदानों में काम करने वाले 22 हजार बच्चों की पहचान करना और उनका सफलतापूर्वक विद्यालयों में दाखिला कराना सरकार और नागरिक संगठनों के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.

साथ ही बता दें कि 2004 में जब इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई तब यह इलाका नक्सली हिंसा से जूझ रहा था, जिससे सरकारी विभागों और एजेंसियों के सामने भी चुनौती थी. इसके बावजूद 'बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान' के रणनीतिक, सतत और सम्मिलित प्रयासों से अभ्रक खनन पर निर्भर सभी 684 गांवों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया जा चुका है. इन गांवों के 20,854 बच्चों को जहां अभ्रक चुनने के काम से बाहर निकाला जा चुका है. वहीं, 30,364 बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया गया है. कार्यक्रम में मौजूद झारखंड के नउवाडीह गांव की बिंदिया कुमारी ने अभ्रक खदानों में बाल मजदूरी से लेकर अपने गांव की बाल पंचायत में सचिव बनने तक की यात्रा साझा की. उसने कहा कि अभ्रक खदानों में काम करने के दौरान हमारी उंगलियों से लगातार खून बहता था और हमेशा दर्द रहता था. लगता था कि हमारा जीवन हमेशा ऐसा ही रहेगा. अपने गांव में बाल मित्र कार्यक्रम की शुरुआत के बाद मैं अपनी सहेलियों के साथ एक बार फिर स्कूल जा सकी. अब मैं दसवीं कक्षा में हूं और बड़ी होने के बाद मैं एक ऐसी सरकारी अफसर बनना चाहती हूं जो बच्चों के शोषण को रोक सके. उसने बताया कि बाल पंचायत की सचिव के तौर पर उसने अन्य पंचायत सदस्यों के साथ मिलकर अपने गांव के 45 बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया है.

कार्यक्रम में गिरिडीह के जिलाधिकारी नमन प्रियेश लकड़ा, कोडरमा की जिलाधिकारी मेघा भारद्वाज, बल श्रम मुक्ति अभियान को सहयोग करने वाली संस्था 'एस्टे लॉडेर कंपनीज' के कार्यकारी निदेशक डेविड हिरकॉक, कोडरमा की विधायक व पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. नीरा यादव, कोडरमा जिला परिषद अध्यक्ष रामधन यादव पूर्व बाल मजदूर, बाल पंचायतों के बाल नेता और सदस्य, सामुदायिक सदस्य, पंचायती राज संस्थाओं के सदस्य और शिक्षा, महिला एवं बाल विकास और श्रम विभाग के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे.

इनपुट- आईएएनएस

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