Nitish Kumar: जिन परिस्थितियों में नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक छोड़ा था, उनमें अभी कोई बदलाव नहीं हुआ है. लोकसभा चुनाव भी अब 4 साल बाद होने हैं तो आखिर नीतीश कुमार पलटी क्यों मारेंगे?
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पिछले दिनों राजद प्रमुख लालू प्रसाद का बयान आया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन में आते हैं तो उनका स्वागत करेंगे. उनको माफ कर देंगे. दिल्ली से लेकर पटना और मुंबई तक इस बयान पर क्रिया प्रतिक्रिया हुई. फिर मुंबई से खबर आई, जिसमें एनसीपी शरद पवार गुट के नेता माजिद मेमन ने कहा कि नीतीश कुमार विश्वसनीय व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन अगर वे महागठबंधन में आते हैं तो राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव देखेंगे कि क्या करना है. फिर मुंबई से ही शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत का बयान आया कि भाजपा, जेडीयू के 12 सांसदों को अपने पाले में लाने में जुटी है और नीतीश कुमार को सचेत होकर कोई कदम उठाना चाहिए. ये सब बयान क्यों आ रहे हैं? क्या आपने इस बारे में सोचा है कि एक के बाद एक इन बयानों के मायने क्या हैं? हम आपको इसकी तह तक ले जाते हैं.
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दरअसल, नीतीश कुमार इंडिया ब्लॉक के असली संस्थापक हैं. इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता. महागठबंधन में शामिल होने के बाद से ही नीतीश कुमार ने इसके लिए पहल शुरू कर दी थी. कांग्रेस के साथ एक टेबल पर बैठकर बात करने के लिए जो दल राजी नहीं थे, नीतीश कुमार ने उन सभी नेताओं से एक एक कर बात की और इस बात के लिए राजी किया कि सभी नेता कांग्रेस के साथ एक टेबल पर बैठकर बात करें और अपने मतभेद दूर कर भाजपा के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ें. इसके लिए नीतीश कुमार कोलकाता, मुंबई, भुवनेश्वर, लखनऊ और दिल्ली भी गए. हालांकि भुवनेश्वर से नीतीश कुमार खाली हाथ लौटे थे.
पटना में पहली बार विपक्षी दलों की महाबैठक की मेजबानी भी नीतीश कुमार ने की थी. इन सबके पीछे नीतीश कुमार की एक ही मंशा थी कि गठबंधन का नेतृत्व उनके हाथों में हो. महागठबंधन में वे आए भी इसी शर्त पर थे कि देश की राजनीति में उनका अहम योगदान होगा और उसके बाद बिहार की गद्दी वे तेजस्वी यादव के लिए छोड़ देंगे. लेकिन पहली बैठक के साथ ही नीतीश कुमार खुद राजनीति का शिकार होते चले गए.
हुआ यूं कि सब कुछ किया नीतीश कुमार ने, लेकिन पटना में जो भी नेता बैठक में शामिल होने के लिए पहुंचा, उनमें से अधिकांश ने पहले लालू परिवार के यहां अपनी हाजिरी दी थी. उसके बाद प्रेस कांफ्रेंस में लालू प्रसाद यादव ने राहुल गांधी को दूल्हा बनने की सलाह देकर दूध में एक तरह से नींबू निचोड़ने की कोशिश की. नीतीश कुमार का खेल यही से खराब होना शुरू हो गया था.
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बेंगलुरू की बैठक में जब विपक्षी गठबंधन के नाम पर चर्चा हो रही थी, तब कई नाम प्रस्तावित किए गए, लेकिन राहुल गांधी की ओर से Indian National Developmental Inclusive Alliance यानी INDIA नाम दिया गया. यह नाम नीतीश कुमार को मंजूर नहीं था, लेकिन नीतीश कुमार को इस बात के लिए मजबूर किया गया कि वे इसी नाम पर मुहर लगाएं. नीतीश कुमार को अंत में कहना पड़ा कि अगर सभी को यह बात मंजूर है तो फिर मुझे कोई दिक्कत नहीं है.
आपलोगों को ध्यान होगा कि बेंगलुरू की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस से पहले नीतीश कुमार पटना के लिए रवाना हो गए थे और कुछ दिनों तक वे मीडिया के सामने नहीं आए थे. हालांकि जब वे बेंगलुरू से रवाना हुए तो यह कहा गया कि राजगीर महोत्सव की तैयारियों के सिलसिले में वे पटना के लिए निकल गए हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पटना की बैठक और बेंगलुरू की बैठक के बाद से नीतीश कुमार की नाराजगी लगातार बढ़ती चली गई.
मुंबई की बैठक में गठबंधन के एजेंडे पर चर्चा होनी थी, जिसमें नीतीश कुमार की ओर से जातिगत जनगणना को शामिल करने पर बल दिया गया था, लेकिन कांंग्रेस ने इसमें अड़ंगा लगा दिया और मुंबई की बैठक का कुछ प्रतिफल नहीं निकला और यह तय किया गया कि अगली बैठक दिल्ली में होगी. दिल्ली में जो बैठक हुई, उसमें तो नीतीश कुमार के साथ बड़का खेला हो गया.
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दरअसल, दिल्ली में बैठक से पहले दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एक मुलाकात हुई थी. उसके बाद जब विपक्षी गठबंधन की बैठक हुई तो उसमें नेतृत्व पर चर्चा शुरू हुई. नीतीश कुमार उत्साहित थे कि इस बार उनके नाम पर विचार किया जाएगा, लेकिन ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन के नेतृत्व और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित कर दिया. यहां तक कि नीतीश कुमार के नाम पर विचार भी नहीं किया गया.
लालू प्रसाद यादव, जो नीतीश कुमार को महागठबंधन में इस शर्त पर लाए थे कि देश की राजनीति में नीतीश कुमार को मौका दिया जाएगा, वे बैठक में चुप बैठकर सब देखते रहे और अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को मौन सहमति देते रहे. नीतीश कुमार समझ चुके थे कि वे राजनीति का शिकार हो गए हैं. इस तरह अधिकांश पार्टियों के नेताओं ने नीतीश कुमार के साथ राजनीति कर दी और उसके बाद नीतीश कुमार ने उन सभी दलों को मजा चखाने की सोच ली.
दिल्ली की बैठक खत्म होने के फौरन बाद नीतीश कुमार ने जेडीयू के राष्ट्रीय परिषद की 29 दिसंबर, 2023 को बैठक बुला ली. 29 दिसंबर को खुद ही जेडीयू के अध्यक्ष बन बैठे और उसके ठीक एक महीने बाद 30 जनवरी, 2024 को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में रिकॉर्ड 9वीं बार शपथ ले ली. जब तक विपक्षी दल कुछ समझ पाते, नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ चुके थे.
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अब विपक्षी दलों की टीस यही है कि एक तो नीतीश कुमार ने इतनी मेहनत के बाद इंडिया ब्लॉक को खड़ा किया और खुद एनडीए का दामन थाम बैठे. राजनीति में नीतीश कुमार लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव आदि नेताओं की तरह समाजवादी आंदोलन की पैदाइश माने जाते हैं. आज ये दोनों की पार्टी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं और नीतीश कुमार एनडीए के साथ अपना झंडा बुलंद किए हुए हैं.
अब विपक्ष की टीस यही है कि जब लालू और अखिलेश यादव इंडिया ब्लॉक में हैं तो फिर नीतीश कुमार एनडीए में क्यों हैं? इसलिए गाहे बगाहे ऐसे बयान दिए जा रहे हैं. विपक्ष की एक टीस यह भी है कि नीतीश कुमार ने अगर इंडिया ब्लॉक नहीं छोड़ा होता तो संभव था कि 2024 में पीएम मोदी सरकार नहीं बना पाते. आज मोदी सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे पर चल रही है और विपक्षी दलों के नेता बार बार नीतीश कुमार को इस बात की याद भी दिलाते रहते हैं. पिछले दिनों बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के मुद्दे पर दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने नीतीश कुमार को इसलिए चिट्ठी भी लिखी थी. समय समय पर विपक्षी दलों की टीस ऐसे ही सामने आती रहेगी.