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Loksabha Elction 2024 Nalanda Seat: नालंदा विश्वविद्यालय की वजह से अपने दिलचस्प इतिहास को समेटे बिहार का यह लोकसभा सीट केवल ऐतिहासिक रूप से ही नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी कई रहस्यों को समेटे हुए है. बिहार के इस समय के सबसे सबल और समर्थ राजनेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के कारण ही इस सीट की वैल्यू और ज्यादा बढ़ जाती है. 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी उस चुनाव में नीतीश कुमार को जोर कितना रहा होगा कि इस सीट पर भाजपा जीत नहीं
दर्ज कर पाई थी.
2014 में यह सीट लोजपा के हिस्से आई थी लेकिन 2019 में यह सीट जदयू के हिस्से आई और यहां से कौशलेंद्र कुमार जदयू के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे. कौशलेंद्र कुमार की इस सीट पर लगातार यह तीसरी जाती थी. 1952 से 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. वहीं 1996 में समता पार्टी के जॉर्ज फर्नांडिस ने इस सीट पर जीत दर्ज की और 1998 में भी वह चुनकर आए. फिर 1999 के चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की इसके बाद 2004 में नीतीश कुमार ने इस सीट को अपने नाम किया और इसके बाद से यह सीट जदयू के कब्जे में रही है.
इस लोकसभा सीट पर वामपंथियों का भी दबदबा रहा है. सीट को तीन बार सीपाई ने अपने कब्जे में किया है. इस सीट पर 5 बार सीपीआई के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे हैं. इस सीट पर जहां एक तरफ नीतीश का दबदबा रहा है वहीं दूसरी तरफ MY समीकरण भी यहां खासा प्रभाव डालती है. इस सीट पर यह भी खास रहा है कि यहां प्रमुख पार्टियां चुनाव लड़ने से हमेशा बचती रही हैं.
इस सीट पर भी हमेशा से जातीय समीकरण ही हावी रही है चुनाव के अन्य मुद्दे तो यहां धरे के धरे ही रह जाते हैं. इस सीट पर कुर्मियों की बहुलता रही है. वहीं मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी यहां मजबूत है. कुर्मी वोट बैंक 24 प्रतिशत तो यादव और मुस्लिम वोट 15 और 10 प्रतिशत की संख्या में हैं. जबकि सवर्ण वोटर भी यहां अच्छा खासा दखल रखते हैं.
7 विधानसभा सीटों नालंदा, अस्थावां, हरनौत, इसलामपुर, राजगीर, बिहारशरीफ और हिलसा वाले इस नालंदा लोकसभा सीटों में जदयू का बड़ा दबदबा रहा है. ऐतिहासिक रूप से देखें तो मगध साम्राज्य की पहली राजधानी और फिर विश्व के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के कारण यह नालंदा शुरू से ही काफी समृद्ध रहा है.