बिहार में दलित वोट बैंक के जरिए कैसे नीतीश चाहते हैं चिराग से हिसाब बराबर करना!
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बिहार में दलित वोट बैंक के जरिए कैसे नीतीश चाहते हैं चिराग से हिसाब बराबर करना!

बिहार की राजनीति में कब क्या हो जाएगा कौन जानता है. जेपी आंदोलन से निकले चार नेताओं ने बिहार में चार सियासी दलों के साथ अपने सफर की शुरुआत की और यहां की राजनीति में इनकी हनक भी खूब रही.

(फाइल फोटो)

पटना: बिहार की राजनीति में कब क्या हो जाएगा कौन जानता है. जेपी आंदोलन से निकले चार नेताओं ने बिहार में चार सियासी दलों के साथ अपने सफर की शुरुआत की और यहां की राजनीति में इनकी हनक भी खूब रही. इनमें से लालू प्रसाद यादव ने राजद बनाई, नीतीश समता पार्टी से होते हुए जदयू तक पहुंचे और 18 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं. इससे पहले वह केंद्र में मंत्री तक रहे. सुशील मोदी भाजपा के प्रमुख चेहरे के तौर पर रहे और अभी वह राज्यसभा के सांसद हैं. वहीं दिवंगत रामविलास पासवान जिन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई थी और केंद्र की सत्ता में वह तब तक मंत्रीमंडल में रहे जब तक जीवित रहे. अब एक जमाने के अच्छे दोस्त राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और नीतीश कुमार की आपसी भिडंत की कहानी बिहार की राजनीति फिजाओं में गूंज रही है. 

दरअसल बिहार में लोजपा तब तक अपने एकदम सही मुकाम पर थी जब तक राम विलास पासवान जिंदा थे. उनके जाने के बाद पार्टी में दो सुर उठने लगे. चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने कुछ सांसदों के साथ केंद्र की एनडीए सरकार के समर्थन देकर मंत्री पद पा लिया और वहीं चिराग पासवान लोजपा (R) के साथ अलग-थलग पड़ गए. इसके बाद चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ एक मुहिम सी छेड़ दी. बता दें कि एक ऑडियो क्लिप के वायरल होने के बाद यह दावा किया जाने लगा कि नीतीश के इशारे पर ही लोजपा में फूट पड़ी. बिहार में हुए हालिया उपचुनाव में तो नीतीश के खिलाफ चिराग के तैवर इतने तल्ख थे कि जदयू को इसका नुकसान उठाना पड़ा. चिराग पासवान ने भाजपा के पक्ष में इन सीटों पर प्रचार भी किया. इसके बाद चिराग रविश्ंकर प्रसाद की होली मिलन की पार्टी में भी नजर आए. 

अब जब 2024 का लोकसभा चुनाव के लिए एक साल का समय रह गया है तो सभी दल सियासी जमीन तैयार करने के लिए जातिगत समीकरण को अपने पक्ष में तैयार करने की मुहिम में लग गए हैं. बिहार में भाजपा कोईरी-कुर्मी-कुशवाहा वोट बैंक में सेंध लगाकर नीतीश को कमजोर करना चाहती है तो वहीं नीतीश कुमार की कोशिश है कि वह दलित वोट बैंक को नए सिरे से अपने साथ जोड़ें.  

ऐसे में नीतीश कुमार के इस सोच के पीछे राजनीति के जानकार मानते हैं कि वह एक तीर से दो निशाना लगाना चाहते हैं एक तो बड़े वोट बैंक पर वह कब्जा करना चाहते हैं दूसरा वह चिराग पासवान को तगड़ा झटका देने के चक्कर में हैं. बिहार में दलित वोट बैंक 16 प्रतिशत है जिसमें से 6 प्रतिशत वोट बैंक पर चिराग पासवान की पार्टी का एकाधिकार है. 

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अब चिराग को झटका देने के लिए जदयू अंबेडकर जयंती का पहली बार आयोजन करने जा रही है इसके लिए पार्टी ने 4 अप्रैल से ही भीम चौपाल का आयोजन करना शुरू कर दिया है. बिहार में लगभग सभी लोकसभा सीटों पर दलित मतदाता बड़ी संख्या में हैं और यह कई बार जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. ऐसे में नीतीश का इस वोट बैंक पर फोकस रहा है और चिराग के पास इस वोट बैंक का एकाधिकार है. 

नीतीश कुमार की पार्टी को 2020 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बना देने में चिराग की भूमिका सभी मानते हैं. उनकी वजह से नीतीश कुमार अब चिराग को प्रदेश में किसी भी हालत में कमजोर करना चाहते हैं. वैसे इस वोट बैंक पर जीतन राम मांझी और बसपा सुप्रीम मायावती का भी हिस्सा रहा है. 

 

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