Caste Census: कांग्रेस ने हाईजैक किया जातीय जनगणना का मुद्दा, अब क्या करेंगे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव?
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Caste Census: कांग्रेस ने हाईजैक किया जातीय जनगणना का मुद्दा, अब क्या करेंगे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव?

Caste Census: जातीय जनगणना का मुद्दा नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने उठाया पर अब लगता है कि कांग्रेस ने इस मसले को हाईजैक कर लिया है और पूरे देश में ओबीसी समुदाय को साधने की तैयारी में है. 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, सांसद राहुल गांधी और जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह (बाएं से)

Caste Census: बिहार में जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) के आंकड़े जारी हो चुके हैं. सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के अलावा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) इसे अपनी बड़ी जीत करार दे रहे हैं और चुनाव में भाजपा (BJP Gameplan) का गेमप्लान चौपट करने के दावे कर रहे हैं. जाहिर तौर पर राजद ( RJD) ने जातीय जनगणना को सबसे पहले हवा दी थी और बाद में नीतीश कुमार ने सर्वलीय बैठक (All Party Meeting) में सभी दलों से मंजूरी दिलवाने में कामयाबी हासिल कर दी. जातीय जनगणना को भले ही बिहार के सभी दलों का समर्थन हासिल था पर इसमें कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि यह राजद और जेडीयू की बड़ी सफलता है. अब सोमवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति (Congress Working Committee) की बैठक में ऐतिहासिक फैसला लिया गया कि कांग्रेस शासित सभी राज्यों में जातिगत जनगणना कराई जाएगी. 

कार्यसमिति की बैठक के बाद राहुल गांधी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, कांग्रेस शासित सभी राज्यों में जातीय जनगणना कराने का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है. कांग्रेस शासित सभी मुख्यमंत्रियों ने यह फैसला लिया है कि अपने अपने राज्यों में वे जातीय जनगणना कराएंगे. इस बारे में एक प्रस्ताव भी पास कर लिया गया है. राहुल गांधी ने यह भी कहा कि इंडिया गठबंधन के अधिकांश दलों की राय है कि जातीय जनगणना कराई जानी चाहिए. कुछ दलों की राय इससे जुदा भी है लेकिन हम फासीवादी नहीं हैं. राहुल गांधी ने यह भी कहा कि यह धर्म और जाति के बारे में नहीं है. यह केवल गरीब लोगों के लिए है. उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल दो तरह के भारत हैं, एक अदानी का भारत और दूसरा गरीबों का भारत. हमें इसे नए सिरे से एक्सरे करने की जरूरत है. 

आपको याद होगा कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से जब गठबंधन का आकार तय करने को लेकर पहली बैठक दिल्ली में हुई थी, उसके बाद कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पूरे देश में जातीय जनगणना कराने की मांग की थी. कांग्रेस यह भी मांग करती आई है कि अगर नई जातीय जनगणना नहीं कराई जाती तो 2011 के जातीय जनगणना के आंकड़े को सार्वजनिक किया जाए. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस जातीय जनगणना के मुद्दे को हड़पना चाहती है. 

हालांकि कुछ एक दलों को छोड़ दिया जाए तो जातीय जनगणना को लेकर इंडिया गठबंधन के अधिकांश दल सहमति जताते दिखते हैं, लेकिन यह एक ऐसा विषय है, जिसको लेकर मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपने एफिडेविट में संशोधन करना पड़ा था. एक तरह से देखा जाए तो केंद्र सरकार की हिचकिचाहट के बीच बिहार सरकार ने न केवल जातीय सर्वे कराया, बल्कि उसके आंकड़े को सार्वजनिक कर दिया है. इससे बिहार का आगामी चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदल जाएगा. सीएम नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इस बात का दावा भी कर रहे हैं. 

लेकिन नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के दावों के बीच लगता है कांग्रेस ने एक तरह से जातीय जनगणना के मसले को हड़प लिया है. इसके पीछे की वजह भी जान लीजिए. 2014 के बाद से ओबीसी भाजपा की तरफ खिंचा चला आया और 2019 के चुनाव में वह आकर्षण और मजबूत होता चला गया. अब देश में जातीय जनगणना कराने के दावों के पीछे का सच यह है कि ओबीसी आबादी, जो सबसे मजबूत और अधिक संख्याबल वाली आबादी है, उसे अपनी ओर आकर्षित करना है. अगर कांग्रेस ने ओबीसी को आकर्षित करने पर फोकस कर दिया तो फिर उन क्षेत्रीय दलों का क्या होगा, जो मुख्य वोट बैंक ही ओबीसी है. ऐसे दलों में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जेडीयू, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस आदि शामिल हैं. 

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की फतह के बाद से कांग्रेस मुसलमानों को आकर्षित करने के लिए काम कर रही है और अब वह ओबीसी वोटरों पर ललचाई नजरों से देख रही है. ऐसे में इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों का क्या होगा, जो कांग्रेस के ही वोटबैंक को अपनी ओर खिंचकर अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं और आज भी वो वहीं कर रहे हैं. अगर कांग्रेस मुसलमानों को अपनी ओर खिंच पाई और ओबीसी को थोड़ा बहुत भी आकर्षित करने में सफल रही तो क्षेत्रीय दलों के भविष्य की चिंताएं और बड़ी होती चली जाएंगी. हालांकि क्षेत्रीय दलों के नेताओं को भी इस बात का भान जरूर होगा और वे अपने वोटबैंक को और कवर करने की कोशिश जरूर करेंगे. 

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