समय का अपना एक चक्र होता है. तभी तो 2018 में जो चीजें कांग्रेस के फेवर में और बीजेपी के खिलाफ थीं, वहीं अब 2023 में बीजेपी के फेवर में और कांग्रेस के खिलाफ हो गई हैं. चाहे सुप्रीम कोर्ट का फैसला हो या फिर विधानसभा चुनावों में जनता का फैसला, 2018 से 2023 एकदम उलट है. पता नहीं 2014 का क्या होगा.
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वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं 2018 और 2023 की. 2018 जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत झटका देने वाला साल रहा तो 2023 में सब भाजपा के मन मुताबिक हो रहा है. 2018 में जहां मोदी सरकार को कोर्ट से झटका मिला था, तो 2023 में राहत मिली है. वहीं 2018 में जहां भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जहां मात खा गई थी, वहीं 2023 में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को इन्हीं राज्यों में मात दे दी है. 2018 और 2023, इन दोनों वर्षों में एक समानता है. 2018 के बाद 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे और 2023 के बाद 2024 में भी लोकसभा चुनाव होने वाले हैं.
2018 में लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी जहां झटके पर झटके खा रही थी, वहीं कांग्रेस के लिए वो साल एकदम मुफीद रहा था. मोदी राज में पहली बार 2018 में ही कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका देते हुए हिंदी पट्टी के 3 राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान को छीन लिया था. राजनीतिक पंडितों ने तब मोदी मैजिक के खत्म होने का अंदेशा जताया था, लेकिन पीएम मोदी ने समय रहते और लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पोजिशन इतनी मजबूत कर ली कि 2014 की तुलना में भारतीय जनता पार्टी को शानदार फायदा हुआ और वह 303 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. अब 2023 में रिजल्ट ठीक उलट आया है. भाजपा ने 2023 में वहीं तीन राज्य कांग्रेस से छीन लिए हैं. तब भाजपा सदमे में थी और अब कांग्रेस सदमे में है.
अब बात करते हैं कि 2018 में भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कौन से झटके लगे थे. एक तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मोदी सरकार के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई थीं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दलित उत्पीड़न एक्ट के एक क्लॉज को निष्प्रभावी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने दलित उत्पीड़न एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की थी और इस मामले में आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी के बदले जांच पर जोर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि प्रथम दृष्टया जांच और संबंधित अफसरों की अनुमति के बाद ही कठोर कार्रवाई की जा सकती है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनने पर अग्रिम जतानत दी जा सकती है. कोर्ट का फैसला यह था कि गिरफ्तारी के लिए एसपी या एसएसपी से इजाजत लेनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पूरे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी. जगह जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे. दबाव में आकर मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए अगस्त 2018 में विधेयक लेकर आई. विधेयक के संसद से पास होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो गया और दलित उत्पीड़न एक्ट का पुराना स्वरूप फिर से बहाल हो गया.
सुप्रीम कोर्ट का एक वो फैसला था और एक आज का फैसला है. दोनों फैसलों की तासीर भी एकदम अलग है. 2018 के फैसले से जहां भाजपा परेशान थी तो 2023 के फैसले से भाजपा गदगद दिख रही है. ठीक उलट कांग्रेस जहां 2018 के फैसले को मोदी सरकार के लिए परेशानी मान रही थी, वहीं आज के फैसले से खुद के उसके कई नेताओं ने निराशा जाहिर की है. हम बात कर रहे हैं जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ याचिकाओं पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की. विपक्ष को उम्मीद थी कि अनुच्छेद 370 पर सरकार को झटके लग सकते हैं पर हुआ ठीक उल्टा.
वैसे तो राजनीति में चित और पट लगा रहता है. कोई कभी आगे हो जाता है तो कोई बहुत पीछे छूट जाता है, लेकिन राजनेता भी ऐसे संयोग और दुर्योग में विश्वास रखते हैं. तभी 3 दिसंबर को 4 राज्यों के परिणाम आने के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया था— ठीक 20 साल पहले भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. उस वक्त हमें सिर्फ़ दिल्ली में जीत मिली थी, लेकिन कुछ ही महीनों में ज़ोरदार ढंग से वापसी करते हुए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और केंद्र में सरकार बनाई. आशा, विश्वास, धैर्य और दृढ़ संकल्प साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनावों के लिए तैयारी करेगी.
अब देखना यह है कि जयराम रमेश का विश्वास जीतता है या फिर कोई और नतीजा सामने आता है. कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है लेकिन इस बार जो इतिहास बना है वो कुछ को सबक देने वाला है तो किसी को सीख. बाकी आगे—आगे देखिए होता है क्या.