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Lok Sabha Election 2024: बिहार की राजनीति में लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जिस तरह का पारा चढ़ा है. वह शायद ही किसी राज्य के सियासी माहौल का हो. बता दें कि इस बार बिहार से होकर ही केंद्र की सत्ता पर काबिज होने का रास्ता विपक्षी दल तलाश रहे हैं. जबकि भाजपा भी बिहार के रास्ते से ही केंद्र की सत्ता पर तीसरी बार अपना अधिकार बनाए रखने की लड़ाई लड़ने की तैयारी में है. ऐसे में भाजपा के लिए परिस्थितियां जितनी मुश्किल है उतनी ही विपक्ष के लिए भी कठिन. भाजपा के साथ नीतीश का नहीं होना जहां बिहार में भाजपा को कमजोर कर रहा है. वहीं विपक्षी दलों के लिए मुश्किल यह है कि आखिर वह बिहार में सीटों का बंटवारा किस फॉर्मूले के तहत करेंगे क्योंकि महागठबंधन में 8 दल शामिल हैं. इस सब के बीच बिहार में कुछ ऐसे भी दल हैं जिनको अपने पाले में करने की पूरजोर कोशिश राजनीतिक दल कर रही है. इसमें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी, मुकेश साहनी की पार्टी और चिराग पासवान की पार्टी शामिल है.
बता दें कि सबसे ज्यादा चर्चा में इनदिनों चिराग पासवान हैं. कारण साफ है कि बिहार में पासवान वोट 6 प्रतिशत के करीब है और इस पर चिराग की पकड़ मजबूत है. इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर चिराग ने जदयू को 43 सीटों पर समेट दिया. चिराग की भाजपा के साथ भी अनबन रही है क्योंकि उनके पिता के देहांत के बाद जिस तरह से लोजपा को तोड़कर उनके चाचा पशुपति कुमार पारस केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का हिस्सा बन गए. उन्हें मंत्रीपद मिल गया. रामविलास पासवान के बंगले को जिस तरह से खाली कराया गया यह घाव अभी भी चिराग के लिए हरा है.इसके साथ ही विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी पार्टी के पोस्टर में नरेंद्र मोदी की फोटो को हटाने का दर्द भी वह नहीं भूले होंगे लेकिन फिर भी वह अपने को भाजपा का हनुमान बताते रहे और आज भी वह भाजपा के हक में फैसला लेते ही नजर आते हैं.
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हालांकि चिराग की तेजस्वी और लालू परिवार से अच्छी बनती है लेकिन नीतीश के साथ तेजस्वी का होना थोड़ा चिराग को खलता है. 2020 से लेकर 23 के बीच चिराग और भाजपा के बीच बहुत कुछ हो गया लेकिन कहीं ना कहीं चिराग और भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले के राजनीतिक विकल्पों और मौजूदा हालातों को अच्छी तरह समझते और जानते हैं. ऐसे में चिराग पासवान या उनकी पार्टी के कोई नेता भाजपा के खिलाफ बयानबाजी से बचते ही रहते हैं. चिराग के निशाने पर नीतीश कुमार और जेडीयू ही रहती है. बता दें कि भाजपा अब चिराग का मान-मनौव्वल करने में भी लगी है. चिराग की गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात होती है फिर उन्हें जे कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया कराई जाती है. हालांकि इस सब के बीच अमित शाह कह देते हैं कि भाजपा बिहार में 40 में से 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो चिराग भी दंग रह जाते हैं और कहते हैं कि लोजपा(R) भी बिहार के 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में लगी है.
जबकि भाजपा को वह याद भी है कि कुढ़नी और गोपालगंज के उपचुनाव में भाजपा को चिराग के कोर वोट बैंक के समर्थन की वजह से ही जीत हासिल हुई थी. चिराग को भी याद है कि अकेले लड़ना उनके लिए कितना नुकसान का सौदा है. वह 2020 में अपनी पार्टी के 135 उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं. इसकी वजह से नीतीश कुमार की पार्टी को नुकसान तो होता है लेकिन चिराग को भी कोई फायदा नहीं मिलता उनकी पार्टी एक सीट पर ही जीत दर्ज कर पाती है.
अब लोजपा(R) की तरफ से जो खबर निकलकर आ रही है उसकी मानें तो चिराग पासवान ने गठबंधन के लिए शर्त रखी है कि चाचा पशुपति पारस को सरकार के गठबंधन से बाहर निकाला जाए. साथ ही उनकी पार्टी को 6 लोकसभा सीट, 1 राज्यसभा सीट और 2 विधान परिषद की सीट दी जाए. वह 2019 के चुनाव में भाजपा के साथ अपनी पार्टी को गठबंधन के दौरान मिली सीटों की संख्या के बराबर ही सीट चाहते हैं. वहीं उपेंद्र कुशवाहा को भी 2014 के लोकसभा चुनाव के बराबर तीन सीट चाहिए, पशुपति पारस भी अपने सांसदों की 5 सीटों पर लड़ने की बात कह रहे हैं. वहीं मुकेश सहनी भी अगर NDA गठबंधन का हिस्सा बनेंगे तो उनको भी लोकसभा की सीट चाहिए. जबकि भाजपा अकेले 30 से 32 सीटों पर बिहार में लड़ना चाहती है. ऐसे में बचे हुए 8 से 10 सीटों पर वह सहयोगियों की झोली में क्या डाल पाएगी यह तो वक्त बताएगा.
इस सब के बीच चिराग पासवान की पार्टी लोजपा(R) की तरफ से दावा किया जा रहा है कि अगर पार्टी के सम्मानजनक मांग को पूरा नहीं किया गया तो सही समय पर पार्टी के हित में जो उचित निर्णय होगा वह लिया जाएगा. ऐसे में यह समझना भाजपा के लिए भी बेहद मुश्किल हो गया है कि बिना नीतीश के और इधर जिन दलों को अपना सहयोगी बनाने का दावा कर रही है उसकी शर्तों को माने बिना वह कैसे बिहार में अपनी पार्टी के लिए देखे गए सपने को 2024 के लोकसभा चुनाव में पूरा कर सकेगी.