Ravan Janm Rahsya: तीन श्राप और तीन लोगों के कारण हुआ था एक रावण का जन्म, जानिए ये रहस्य
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Ravan Janm Rahsya: तीन श्राप और तीन लोगों के कारण हुआ था एक रावण का जन्म, जानिए ये रहस्य

Ravan Janm Rahsya: रावण के भीतर सत्व, रज और तम गुण तीनों ही था, लेकिन इनका संतुलन नहीं था. तमोगुण उसमें सबसे अधिक था और सत्व गुण सबसे कम. ध्यान देने वाली बात है कि जय-विजय को सिर्फ मृत्युलोक में जन्म लेने का श्राप मिला था, 

Ravan Janm Rahsya: तीन श्राप और तीन लोगों के कारण हुआ था एक रावण का जन्म, जानिए ये रहस्य

पटनाः Ravan Janm Rahsya: विजयादशमी के पर्व पर रावण का दहन किया जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक रावण महाज्ञानी और पंडित था. उसका जन्म एक श्राप की वजह से माना जाता है. ये श्राप उसे सनकादिक बाल ब्रह्नाणों ने दिया था. असल में रावण और उसका भाई कुंभकर्ण पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय-विजय थे. उन्होंने एक बार इन बाल ब्राह्मणों को वैकुंठ में प्रवेश नहीं दिया तो गुस्से में उन्होंने दोनों को मृत्योलक में जन्म लेने का श्राप दे दिया. आमतौर पर रावण के जन्म की बस यही एक कथा लोग जानते हैं. असल में रावण का जन्म होना सिर्फ इतनी सी बात नहीं थी, बल्कि दो और कारण थे, जिनसे रावण का जन्म हुआ. 

रावण के भीतर था त्रिगुणों का असंतुलन
असल में रावण के भीतर सत्व, रज और तम गुण तीनों ही था, लेकिन इनका संतुलन नहीं था. तमोगुण उसमें सबसे अधिक था और सत्व गुण सबसे कम. ध्यान देने वाली बात है कि जय-विजय को सिर्फ मृत्युलोक में जन्म लेने का श्राप मिला था, राक्षस हो जाने का नहीं. जब उन दोनों ने श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा तब सनकादि ऋषियों ने कहा कि भगवान विष्णु के हाथों ही दोनों का उद्धार होगा. अब भगवान उन्हें बिना किसी वजह तो वध करते नहीं. 

यहीं से दूसरी कथा का आरंभ होता है. एक बार नारद मुनि को अहंकार हो गया कि वह माया को जीत चुके हैं. भगवान विष्णु उनके इस अहंकार को समझ गए. उन्होंने माया से एक नगर बनाया. नारद मुनि माया के प्रभाव में उस नगर में पहुंच गए और वहां के राजा से मिले. राजा ने नारद मुनि को अपनी क्या का हाथ दिखाया और विवाह योग्य वर के बारे में पूछा. कन्या को देखते ही नारद मुनि उस पर मोहित हो गए और उससे विवाह के सपने देखने लगे. नारद मुनि ने राजा से कहा कि कन्या का स्वयंवर रचाइए, योग्य वर मिल जाएगा. इतना कहकर नारद सीधे वैकुंठ पहुंचे और अपने मन की बात बताई. इसके बाद उन्होंने कहा कि प्रभु संसार में आप से सुंदर कोई नहीं है. मुझे हरिमुख (यानी आप अपना रूप दे दीजिए) दे दीजिए. भगवान ने फिर पूछा- क्या दे दूं, नारद बोले- हरिमुख, प्रभु हरिमुख. संस्कृत में हरि का एक अर्थ बंदर भी होता है. 

नारद मोह भी बना रावण जन्म का कारण
माया रच रहे भगवान विष्णु ने नारद मुनि को बंदर बना दिया. नारद जी यही रूप लेकर स्वयंवर गए. वहां शिवजी ने, विष्णुजी के कहने से अपने दो गणों को भेज रखा था. स्वयंवर में नारद मुनि उछल-उछल कर अपनी गर्दन आगे कर रहे थे कि कन्या उन्हें देखे और उनके गले में वरमाला डाल दे. उनकी यह हरकत देख, कन्या हंस पर और शिवजी के भेष बदलकर पहुंचे गणों ने भी उनका उपहास उड़ाना शुरू कर दिया. कहने लगे- कन्या को देखकर बंदर भी स्वयंवर के लिए आ गए हैं. अपना मजाक उड़ता देख नारद ने दोनों को श्राप दिया कि तुमने मुझे बंदर कहा, जाओ तुम लोगों को मृत्युलोक में बंदर ही सबक सिखाएंगे. शिवजी के ये दोनों गण रावण और कुंभकर्ण बने. इसके बाद नारद ने देखा कि कन्या ने जिसके गले में वरमाला डाली वह खुद ही श्रीहरि हैं. तब नारद ने उन्हें श्राप दिया कि जिस तरह मैं तुम मेरी होने वाली पत्नी को ले गए और मैं वियोग-विलाप कर रहा हूं, एक दिन तुम्हारी भी पत्नी का हरण होगा और तुम विलाप में वन-वन भटकोगे. 
इस तरह राम और रावण का जन्म होना तय हो गया. 

प्रतापभानु के कारण राक्षस बना रावण
फिर भी रावण के जन्म में अभी तमोगुण का आना बाकी था. सतयुग के अंत में एक राजा हुआ प्रतापभानु. वह एक बार जंगल में राह भटक गया और एक कपटी मुनि के आश्रम में पहुंच गया. यह कपटी प्रतापभानु के द्वारा ही हराया हुआ एक राजा था. उसने राजा को पहचान लिया, लेकिन प्रतापभानु कपटी मुनि की असलियत नहीं पहचान पाया. इस तरह मुनि ने राजा की ऐसी बातें बताईं जो सिर्फ उसके जानने वाले ही जानते थे. इससे राजा को लगा कि यह कोई सिद्ध पुरुष है. राजा ने उससे चक्रवर्ती होने का उपाय पूछा. कपटी मुनि ने कहा कि तीन दिन बाद ब्राह्मणों को भोजन कराओ और उन्हें प्रसन्न कर लो. उनके आशीष से ही तुम चक्रवर्ती बनोगे. ब्राह्मणों का भोजन बनाने मैं खुद आऊंगा. 

तीन दिन बाद वह कपटी मुनि पहुंचा. राजा ने एक लाख ब्राह्मणों को भोजन पर बुलाया था. जैसे ही भोजन परोसा जाने लगा उसी समय आकाशवाणी हुई कि भोजन में मांस मिला हुआ है. यह अभक्ष्य है. प्रतापभानु से नाराज ब्राह्मणों ने उसे, कुटुंब समेत राक्षस हो जाने का श्राप दिया. यही प्रतापभानु रावण बना, उसका भाई कुंभकर्ण बना और प्रतापभानु का मंत्री वरुरुचि विभीषण बनकर जन्मा. विभीषण को सिर्फ राक्षस कुल में जम्न लेने का श्राप था, इसलिए वह राक्षस होकर भी धर्मपरायण था. रावण के जन्म का ये संपूर्ण रहस्य था. इस तरह तीन श्राप के कारण एक रावण का जन्म हुआ था. 

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