जानें क्यों लता दीदी के साथ मोहम्मद रफी ने गाना गाने के लिए कर दिया था मना, फिल्म इंडस्ट्री भी रह गई थी दंग
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जानें क्यों लता दीदी के साथ मोहम्मद रफी ने गाना गाने के लिए कर दिया था मना, फिल्म इंडस्ट्री भी रह गई थी दंग

Mohammed Rafi Death Anniversary: 'अभी ना जाओ छोड़ कर...' 'लिखे जो खत तुझे...' 'क्या हुआ तेरा वादा...' कुछ ऐसे एवरग्रीन गाने हैं, जिन्हें दिग्गज गायक मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी थी. आज उन्हें दुनिया को अलविदा कहे 42 साल हो गए हैं.

मोहम्मद रफी ने 31 जुलाई को कहा था अलविदा

पटनाः Mohammed Rafi Death Anniversary: 'अभी ना जाओ छोड़ कर...' 'लिखे जो खत तुझे...' 'क्या हुआ तेरा वादा...' कुछ ऐसे एवरग्रीन गाने हैं, जिन्हें दिग्गज गायक मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी थी. मोहम्मद रफी की आवाज में वो जादू था, जिससे वो किसी को भी अपना दिवाना बना लेते थे. उनकी आवाज में इतना दम था कि आज तक उनके गाने लोगों की जुबान पर चढ़े हुए है. हालांकि कहने को तो इंडस्ट्री में सुरों के एक से एक फनकार हुए लेकिन किसी में भी वो बात नहीं दिखी जो मोहम्मद रफी की आवाज में थी. मोहम्मद रफी 31 जुलाई 1980 को हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए थे. आज उन्हें दुनिया को अलविदा कहे 42 साल हो गए हैं, लेकिन उनके चाहने वालों की दुनिया में अब भी कमी नहीं है. 

  1. मोहम्मद रफी ने 31 जुलाई को कहा था अलविदा
  2. रफी साहब ने करीब 25 हजार से अधिक गाने गाए थे

संगीत की दुनिया में मोहम्मद रफी ने जैसा नाम और सम्मान कमाया है उसे हासिल करना वाकई काबिले तारीफ है. चकाचौंध की इस दुनिया में भी वो बेहद सादगी से भरे से इंसान थे. रफी साहब ने अपने करियर में करीब 25 हजार से अधिक गाने गाए थे. यह रिकॉर्ड अपने आप में ही एक रिकॉर्ड है. रफी साहब के 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' के नाम से मशहूर कव्वाली, सूफी, रोमांटिक और दर्दभरे गानों को लोग आज भी याद करते हैं. रफी साहब के गाने इश्क करना भी सिखाते हैं और आंखों में आंसू भी ले आते है. उन्होंने वर्ष 1946 में फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ में ‘तेरा खिलौना टूटा’ से हिन्दी सिनेमा की दुनिया में कदम रखा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी पुण्यतिथि पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से. जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे.

कभी तराजू पर नहीं तौला संगीत 
मोहम्मद रफी को संगीत से बेहद प्यार था और वो इसे पैसों के तराजू में कभी नहीं तौलते थे. ऐसे में जब उस दौर में लता मंगेशकर सहित कई सिंगर्स ने अपने पैसे बढ़ाने की मांग करना शुरू कर दी तो रफी इस कदर नाराज हो गए कि उन्होंने लता मंगेशकर के साथ कभी ना गाने का फैसला कर लिया.

पब्लिसिटी से रहे हमेशा रहे दूर
रफी साहब को पब्लिसिटी बिल्कुल पसंद नहीं थी. वो जब भी किसी शादी में जाते थे तो ड्राइवर से कहते थे कि यहीं खड़े रहो. रफी साहब सीधे कपल के पास जाकर उन्हें बधाई देते थे और फिर अपनी कार में आ जाते थे. वो जरा देर भी शादी में नहीं रुकते थे.

बहुत छोटी उम्र में हो गई थी शादी 
रफी साहब की पहली शादी बहुत छोटी उम्र में उनके चाचा की बेटी बशीरा बानो से हुई थी, लेकिन कुछ सालों में ही उनका तलाक हो गया था. जिसके बाद 20 साल की उम्र में उनकी दुसरी शादी हुई. रफी की दूसरी शादी सिराजुद्दीन अहमद बारी और तालिमुन्निसा की बेटी बिलकिस के साथ हुई. रफी के घर में उनकी पहली पत्नी का जिक्र नहीं होता था क्योंकि उनकी दूसरी पत्नी बिलकिस बेगम उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं. अगर कभी कोई इसकी चर्चा करता भी था तो बिलकिस बेगम और रफी के साले जहीर बारी इसे अफवाह कहकर बात को दबा देते थे.

मौत से पहले ही हो गया था आभास
30 जुलाई 1980 को फिल्म 'आस पास' के गाने 'शाम क्यू उदास है दोस्त..' गाने को पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा, 'शुड आई लीव' जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल अचंभित हो गए थे. क्योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नहीं की थी. अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को हीं छोड़कर चले गए. 

इस गीत को रिकॉर्ड करते वक्त रो पड़े थे रफी साहब
फिल्म ‘नील कमल’ के गाने ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ के लिए रफी साहब को नेशनल अवार्ड मिला था. इस गाने को गाते समय रफी साहब की खुद की आंखें भी नम हो गई थीं. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि इस गीत को रिकॉर्ड करने से ठीक एक दिन पहले ही उनकी बेटी की सगाई हुई थी और कुछ दिन में शादी होने वाली थी, इसलिए वो काफी भावुक हो गए थे. हालांकि फिर भी उन्होंने ये गीत गाया और इस गीत के लिए उन्हें ‘नेशनल अवॉर्ड’ मिला.

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