Tax News: आप अपनी दिनचर्या की शुरुआत अगर एक प्याली चाय से करते हैं. जाहिर सी बात है कि आपने चायपत्ती खरीदी होगी तो आप जीएसटी दे चुके होते हैं. उसके बाद आप वाॅशरूम जाते हैं और बाहर आते हैंडवाश करते हैं. हैंडवाश भी जीएसटी के दायरे में है और आपको वह कीमत चुकानी पड़ती है.
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टैक्स... यानी देश की आमदनी का जरिया. सरकार कहती है कि ज्यादा टैक्स आने से देश खुशहाल बनता है. हम भी यह बात मानते हैं. अगर लोग टैक्स नहीं देंगे तो देश की आमदनी का स्रोत क्या होगा. सरकार के पास पैसा होगा तो वह अपने नागरिकों के लिए तमाम योजनाएं शुरू करती है. नई स्कीम लांच करती है. हजारों-करोड़ों लोगों को इसका लाभ भी मिलता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आप रोज कितना पैसा टैक्स में देते हो. रोजमर्रा की जिंदगी में टैक्स का पता नहीं चलता है लेकिन हकीकत यह है कि सुबह आंख खुलने के बाद से आप टैक्स देना शुरू करते हैं और आंख बंद होने यानी सोने से पहले तक आप टैक्स देते रहते हैं.
सुबह चाय की प्याली से होती है टैक्स देने की शुरुआत
आप अपनी दिनचर्या की शुरुआत अगर एक प्याली चाय से करते हैं. जाहिर सी बात है कि आपने चायपत्ती खरीदी होगी तो आप जीएसटी दे चुके होते हैं. उसके बाद आप वाॅशरूम जाते हैं और बाहर आते हैंडवाश करते हैं. हैंडवाश भी जीएसटी के दायरे में है और आपको वह कीमत चुकानी पड़ती है. फिर आप टूथपेस्ट इस्तेमाल करते हैं, जिस पर भी टैक्स बनता है और आप वह खरीदने के समय चुकाते हैं.
पूजा-पाठ करते हैं, यानी टैक्स चुकाते हैं
फिर आप स्नान करने जाते हैं, जहां आप शैम्पू, कंडीशनर और बाॅडीवाश या साबुन यूज करते हैं. ये सब जीएसटी के दायरे में है. स्नान करने के बाद आप पूजा-पाठ करते होंगे, जिसमें धूपबत्ती, अगरबत्ती, तिल का तेल, घी, रोली-चंदन और माचिस का इस्तेमाल करते हैं. इन सब सामानों पर भी आप टैक्स चुका हुए होते हैं.
ब्रेकफास्ट कर लिया और टैक्स नहीं चुकाओगे
फिर आता है बेकफास्ट का नंबर. ब्रेकफास्ट में चाहें आप फास्ट फूड लें, पैक्ड जूस लें या फिर चपाती लें, टैक्स आपको वहां भी नहीं छोड़ता. उसके बाद आप अपने कार्यालय के लिए निकलते हैं. जाहिर सी बात है कि आप कोई न कोई ट्रांसपोर्टेशन का सहारा लेंगे. या तो आप अपनी गाड़ी से जाएंगे या फिर पब्लिक या प्राइवेट ट्रांसपोर्ट से निकलेंगे, वहां आपको पेट्रोल-डीजल-सीएनजी-एलपीजी ईंधन का इस्तेमाल करेंगे और ये सब टैक्स के दायरे से बाहर नहीं है. पेट्रोल-डीजल पर तो आपको टैक्स के अलावा सेस भी चुकाना होता है, जो स्वच्छ भारत के नाम पर लिया जाता है.
ब्रेकफास्ट पर टैक्स दिया तो लंच पर नहीं दोगे
आफिस में आप लंच करते हैं. अगर घर से लंच बाॅक्स ले गए हैं तब भी आप एक तरह से टैक्स चुका हुए होते हैं और अगर आप आफिस की कैंटीन से कुछ लेते हैं या फिर बाहर से कुछ आॅर्डर करते हैं, उस पर भी आपको जीएसटी देना ही होता है. बीच में अगर आप नाश्ता करते हैं तो फिर आपको टैक्स चुकाना होता है. शाम को आप घर आते हैं तो फिर आपको पेट्रोल-डीजल-सीएनजी-एलपीजी चालित वाहनों का सहारा लेंगे जिस पर आपको टैक्स देना होता है.
लंच पर टैक्स दिया तो डिनर पर क्यों नहीं
घर आकर आप डिनर करते हैं या फिर किसी रेस्टोरेंट में जाते हैं तो भी टैक्स आपका पीछा नहीं छोड़ता. अगर घर पर डिनर किए तो जो सामान आप पहले से खरीद चुके होते हैं, उस पर आप टैक्स पे कर चुके होते हैं. रेस्टोरेंट के बिल में जीएसटी जोड़कर आना ही आना है. डिनर के बाद अगर आप मुखवाश या फिर ऐसी कोई चीज यूज करते हैं या फिर सोडा पीते हैं या आइसक्रीम खाते हैं तो भी आपको टैक्स तो देना ही देना है. इस तरह आप आंख खोलने के बाद से टैक्स देना शुरू कर देते हो और आंख बंद होने यानी नींद में जाने तक टैक्स चुका रहे होते हैं.
बच्चों की किताबें-स्टेशनरी पर टैक्स
ये तो हो गई आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाले टैक्स के बोझ की. अब जरा अपने बच्चों की किताबें, पेन, पेंसिल, ईरेजर, शार्पनर, कलर, आॅयल पेस्टर आदि की खरीद पर नजर डालें. इन सब सामानों पर आप टैक्स दे चुके होते हैं.
ज्वेलरी पर तो टैक्स देना बनता है गुरु
साल में एकाध बार आप पत्नी को लेकर किसी ज्वेलरी शाॅप में भी जाते होंगे, जहां टैक्स आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा होता है. कोई भी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज लीजिए, टैक्स तो बनता ही है. बीवी को ब्यूटी पार्लर में मेकअप के लिए जाना है तो वहां भी टैक्स देना होता है. किसी माॅल या दुकान में जाकर साड़ी, सूट, लहंगा आदि खरीदते हैं तो भी टैक्स देना होता है.
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अच्छा... मनोरंजन हो गया तो टैक्स क्यों नहीं
महीने या दो महीने में कभी आप मल्टीप्लेक्स में भी जाने का शौक रखते होंगे तो टैक्स चुपके से आपके बिल में जुड़कर आपको चिढ़ा रहा होता है. वहां आप पॉपकॉर्न भी लेते होंगे, उस पर भी आप टैक्स देते हैं. आने-जाने के खर्चे पर भी टैक्स लगता ही है.
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सभी टैक्स का बाप यानी इनकम टैक्स
इन सबके अलावा साल में एक बार आपको इनकम टैक्स देना होता है. आपकी साल भर की कमाई के हिसाब से केंद्र सरकार की ओर से तय किए गए स्लैब के अनुसार आप टैक्स देते हैं. उस टैक्स में थोड़ा बहुत बचाने का भी विकल्प होता है लेकिन रोजमर्रा के जीवन में जो आप टैक्स देते हैं, उसे बचाने का विकल्प न के बराबर या यों कहें कि बिल्कुल नहीं है.