Chhath Puja Devark Mandir: इस मंदिर में गिरा था सूर्य देव का टुकड़ा, जानिए देवार्क मंदिर की कथा
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Chhath Puja Devark Mandir: इस मंदिर में गिरा था सूर्य देव का टुकड़ा, जानिए देवार्क मंदिर की कथा

Chhath Puja Devark Mandir: ऋग्वेद में सूर्य को अर्क नाम से पुकारा गया है. सूर्य नमस्कार के तेरह मंत्रों में से एक मंत्र है, ओम अर्काय नम:, यानि मैं अर्क देव को नमस्कार करता हूं. 

Chhath Puja Devark Mandir: इस मंदिर में गिरा था सूर्य देव का टुकड़ा, जानिए देवार्क मंदिर की कथा

पटनाः Chhath Puja Devark Mandir: संपूर्ण बिहार में छठ पर्व की छठा छाई हुई है. बाजारों में रौनक है और घरों में तैयारियों को अंतिम रूप देने का दौर जारी है. दौरी-सुपली में फल लगाने हैं, नहाय खाय शुरू हो गया है. छतों पर सूख रहे गेहूं की निगरानी हो रही है और सुग्गा-कबूतर से विनती की जा रही है कि व्रत पूरा होने तक रुक जाओ और अभी इसे जूठा मत करना. इसी बीच बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित एक सूर्य मंदिर में भी श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है. ये सूर्य मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले के देवार्क में स्थित है. देवार्क यानी कि अर्क देव. अर्क का अर्थ हुआ सूर्य. इस तरह यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है. 

सूर्य का एक नाम है अर्क
ऋग्वेद में सूर्य को अर्क नाम से पुकारा गया है. सूर्य नमस्कार के तेरह मंत्रों में से एक मंत्र है, ओम अर्काय नम:, यानि मैं अर्क देव को नमस्कार करता हूं. अर्क का एक अर्थ रस भी होता है. सही अर्थों में जीवात्मा में पाया जाने वाला ऊर्जा का स्त्रोत सूर्य यानी ऊर्जा का रस ही है. इसलिए ऋग्वेद की ऋचाओं में सूर्य का प्रमुख स्थान है. 

तीन सूर्य मंदिरों का एक हिस्सा
देवार्क मंदिर को तीन सूर्य मंदिरों का एक हिस्सा माना जाता है. इसके दो अन्य हिस्से काशी स्थित लोलार्क और एक तीसरा हिस्सा कोणार्क का सूर्य मंदिर है. एक पुराण कथा के मुताबिक, शिव के दो गण राक्षण माली-सुमाली कठिन शिव तपस्या कर रहे थे. इस दौरान इंद्र को भय हुआ तब उनकी आज्ञा से सूर्य देव ने अपना ताप बढ़ाया और उन्हें जलाने की युक्ति करने लगे. इस पर महादेव शिव नाराज हो गए और उन्होंने सूर्य देव को त्रिशूल से भेद दिया. सूर्य के तीन टुकड़े पृथ्वी पर गिरे. एक टुकड़ा देवार्क (बिहार) दूसरा टुकड़ा लोलार्क (काशी, उत्तर प्रदेश), कोणार्क में तीसरा टुकड़ा गिरा.  

 

देव माता अदिति ने की थी पूजा
यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी.

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