आरक्षण की सीमा बढ़ाने को लेकर झारखंड के बाद बिहार में गरमाई सियासत, उठ रहे कई सवाल
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आरक्षण की सीमा बढ़ाने को लेकर झारखंड के बाद बिहार में गरमाई सियासत, उठ रहे कई सवाल

Reservation Limit : सुप्रीम कोर्ट की तरफ से EWS आरक्षण को बरकरार रखने के फैसले का जहां एक तरफ बिहार के लगभग हर सियासी दलों ने समर्थन किया.

(फाइल फोटो)

पटना : Reservation Limit : सुप्रीम कोर्ट की तरफ से EWS आरक्षण को बरकरार रखने के फैसले का जहां एक तरफ बिहार के लगभग हर सियासी दलों ने समर्थन किया. वहीं झारखंड की तरफ से आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने के फैसले के बाद से ही बिहार में भी इसकी मांग तेज हो गई है.  हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड विधानसभा सत्र बुलाकर जहां आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने वाले विधेयक को जैसे ही पास कराया, बिहार में भी इसकी मांग तेज हो गई. 

नीतीश कुमार आरक्षण को बढ़ाने को लेकर पहले भी दे चुके हैं संकेत
बता दें कि जब सुप्रीम कोर्ट का EWS कोटे को लेकर फैसला आया था नीतीश कुमार ने इस फैसले का स्वागत करने के साथ इस बात का भी जिक्र किया था कि अब आरक्षण के पचास प्रतिशत दायरो को बढ़ाना चाहिए. इस सब के बीच झारखंड में आरक्षण की सीमा जैसे ही 77 प्रतिशत कर दी गई. बिहार में भी इसको लेकर सियासी हलचल तेज हो गई. लोग नीतीश के उस बयान पर कयास लगाने लगे कि बिहार में भी ऐसा हो सकता है. 

बिहार के कई सियासी दलों की मांग बढ़े आरक्षण की सीमा
बता दें कि इसको लेकर एक तरफ HAM के संस्थापक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इसकी मांग उठाई की नीतीश कुमार को इस पर विचार करना चाहिए और आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने के विधेयक को सदन के सामने लाना चाहिए. वहीं जीतन राम मांझी की इस मांग का समर्थन जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने किया. वहीं  बिहार में महागठबंधन का हिस्सा भाकपा माले की तरफ से भी प्रदेश में आरक्षण की सीमा को 77 फीसदी तक बढ़ाने की मांग की गई है. पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने मांग की है कि झारखंड की तरह ही बिहार में भी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 77 प्रतिशत किया जाए. 

भाजपा ने उठाए कई सवाल 
ऐसे में महागठबंधन के नेताओं के बयान पर भाजपा की तरफ से भी प्रतिक्रिया आ रही है, भाजपा की तरफ से कहा जा रहा है कि 30 साल से मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अपने समय में इसपर फैसला क्यों नहीं लिया. 2005 के बाद एनडीए सरकार आने के बाद ही ये हो पाया. जब अतिपिछड़ा, दलित और EWS को आरक्षण मिला. ऐसे में महागठबंधन की सरकार बिहार में सिर्फ इस पर राजनीति करती है.

बिहार में आरक्षण की सीमा को लेकर सरकार में ही भ्रम की स्थिति- भाजपा 
बीजेपी के नेता और पूर्व मंत्री कृष्ण ऋषि ने इस पर बयान देते हुए कहा कि जो लोग आरक्षण की सीमा बढ़ाये जाने की मांग कर रहे हैं उन्हें इसकी शुरुआत बिहार से करनी चाहिए. बिहार की सरकार ऐसा क्यों नहीं करती है. दरअसल बिहार में आरक्षण की सीमा को लेकर सरकार में ही भ्रम की स्थिति है. उन्होंने आगे कहा कि निकाय चुनाव को इसीलिए रद्द कराना पड़ा.  कृष्ण ऋषि ने कहा कि अभी भी SC-St की आबादी सड़कों के किनारे रहती है. 

आरक्षण की मूल भावना को ध्यान में रखने की जरूरत- कांग्रेस 
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता कुंतल कृष्ण ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से समय-समय पर कुछ दिशानिर्देश मिलते रहते हैं. ऐसे में आरक्षण की मूल भावना को ध्यान में रखने की जरूरत है. आरक्षण का मुख्य उद्देश्य पिछड़े तबके के लोगों या मुख्यधारा से वंचित लोगों को प्रगति की राह पर लाना था. ऐसे में आरक्षण की मूल भावना के ऊपर काम होना चाहिए. ऐसे में जो तबका विकास में पीछे रह गया है उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. 

आरक्षण की सीमा बढ़ाने का वक्त आ गया है- राजद 
वहीं इसको लेकर राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने का वक्त आ गया है. केंद्र सरकार को इसको लेकर पहल करने की जरूरत है. सिर्फ किसी एक राज्य की सरकार के आरक्षण बढ़ाने से क्या होगा. अभी भी देशभर में आर्थिक और सामाजिक खाई बेहद बहुत है. ऐसे में इस मामले पर अब बीजेपी को लेकर देखना होगा कि वो क्या करेगी? उन्होंने मांग की कि अब 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा ख़त्म होनी चाहिए. 

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