काली कमाई के कुबेरों का 'काल', जानिए क्या है बिहार विशेष न्यायालय कानून?
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काली कमाई के कुबेरों का 'काल', जानिए क्या है बिहार विशेष न्यायालय कानून?

Bihar Special Court Act 2009: इस कानून में ये साफ तौर पर लिखा है कि इस कानून के तहत किसी भी मामले का पूरी तरह से निष्पादन 6 महीने के भीतर कर लिया जाएगा. 

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

पटना: Bihar Special Court Act 2009 पिछले कुछ दिनों से  बिहार में काली कमाई के कुबेरों पर लगातार शिकंजा कसा जा रहा है. एक के बाद एक अधिकारियों पर कार्रवाई हो रही है, हालात ये हो गए हैं कि एक साथ निगरानी विभाग की टीम तीन-तीन, चार-चार शहरों में छापेमार रही है. इसका मकसद है भ्रष्ट हो चुके सिस्टम को दुरुस्त करना. बुधवार को पटना के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी यानी पटना मुख्यालय के डीएसपी अनूप कुमार लाल के ठिकानों पर छापा मारा गया.

  1. विजिलेंस की टीम पूरे बिहार में हुई सक्रिय हुई
  2. अधिकारियों के घर लगातार पड़ रहे छापे

कई जगहों पर की गई छापेमारी
लाल पर बालू उत्खनन में अवैध आमदनी का आरोप है. इस मामले में आर्थिक अपराध इकाई (EOU) की टीम ने एकसाथ गया, रांची और पटना के ठिकानों पर छापेमारी की. इसके पहले 11 दिसंबर को हाजीपुर के लेबर एनफोर्समेंट ऑफिसर के कई ठिकानों पर छापा मारा गया था. 

हाजीपुर, पटना और मोतिहारी के ठिकानों पर एक साथ रेड पड़ी. दीपक कुमार के पटना आवास से जो तस्वीरें निकलकर सामने आई, उसे देखकर सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं. विजिलेंस की रेड में पटना आवास से करीब सवा दो करोड़ कैश मिला. इसके अलावा सोने के बिस्किट, सोने-हीरे के गहने, कई डेविट और क्रेडिट कार्ड, बैंक लॉकर के पेपर और प्रॉपर्टी के कागजात मिले.

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अधिकारियों पर पैठ जमा चुका भ्रष्टाचार!
तस्वीरों ने बताया कि करप्शन की आदत सरकारी महकमे के अधिकारियों में भीतर तक पैठ जमा चुकी है. 9 दिसंबर को आर्थिक अपराध इकाई की टीम ने औरंगाबाद के पूर्व DTO अनिल कुमार सिन्हा के 4 ठिकानों पर छापा मारा था. एक टीम पटना में गोला रोड स्थित घर और दूसरी पटना के ही मजिस्ट्रेट कॉलोनी में स्थित घर पर छापेमारी करने पहुंची. 

अनिल कुमार सिन्हा पर आरोप है कि औरंगाबाद में DTO रहते हुए अवैध बालू खनन करने वाले माफियाओं का उन्होंने साथ दिया था.

इन तमाम कार्रवाईयों के देखकर आप सोच रहे होंगे कि आखिर बिहार में विजिलेंस की टीम को हो क्या गया है? ये अचानक से पुलिस-प्रशासन करप्शन रोकने के लिए इतना सक्रिय क्यों हो गए हैं. तो इसी सवाल का जवाब आज हम तलाशेंगे.

करप्शन पर सरकार 'सख्त'
दरअसल बिहार देश का वो पहला राज्य है जिसने सरकारी सेवकों के भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में एक ठोस पहल की थी. इसकी शुरुआत 2009 में उस वक्त हुई थी जब भ्रष्ट लोक सेवकों की संपत्ति को जब्त करने के लिए बिहार सरकार ने 2009 में 'बिहार विशेष न्यायालय अधिनियम बनाया' था.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में सुनाया था फैसला
इस कानून के तहत अब तक कई लोक सेवकों की संपत्ति बिहार में जब्त की जा चुकी है. जब ये कानून आया था तो इसे कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी. कहा गया था कि दोषी करार होने से पहले संपत्ति की जब्ती पूरी तरह से गैरकानूनी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिहार सरकार के हक में फैसला सुनाया और कहा कि कानून में ये भी प्रावधान है कि बरी होने पर संपत्ति वापस कर दी जाएगी.

संपत्ति जब्त करने का प्रावधान
बिहार सरकार के विधि विभाग ने 2009 में 'बिहार विशेष न्यायालय विधेयक' तैयार किया था. ये विधेयक भ्रष्टाचार के मामले में संपत्ति की जब्ती के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन को मंजूरी देनेवाला कानून था. इस कानून को बनाने के पीछे बिहार सरकार का मकसद था कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के मामलों के निपटारा ना केवल अतिशीघ्र होना चाहिए बल्कि इस मामले में संपत्ति जब्त कर समाज को एक सकारात्मक संदेश भी देना चाहिए कि अगर गलत तरीके से संपत्ति कमाई जाएगी तो उसे वापस भी ले लिया जाएगा और कानूनी कार्रवाई अलग से होगी. 

6 महीने के भीतर किया जाएगा मामले का निष्पादन
बिहार विशेष न्यायालय विधेयक (Bihar Special Court Act 2009) में ये कहा गया कि बिहार न्यायिक सेवा का कोई भी सेवारत अधिकारी जो सत्र न्यायाधीश या अपर सत्र न्यायाधीश हो या रहा हो, उन्हें उच्च न्यायालय की सहमति से नियमानुसार स्पेशल कोर्ट का जज नियुक्त किया जा सकता है. कानून में ये साफ तौर पर लिखा है कि इस कानून के तहत किसी भी मामले का पूरी तरह से निष्पादन 6 महीने के भीतर कर लिया जाएगा. 

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आरोपी को अपील का अधिकार
इस कानून में आरोपी को ऊपरी अदालत में अपील का भी अधिकार है और अगर कोर्ट आरोपी के पक्ष में फैसला सुनाता है तो जब्त की गई संपत्ति वापस करने का भी प्रावधान है.

'सुशासन' की बात करते हैं नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को जब 2005 में पहली बार बहुमत मिला था तो उस वक्त बिहार में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार ही था. नीतीश कुमार हर मंच और मोर्चे से 'सुशासन' की बात करते थे. यही वजह रही कि उन्होंने सरकार बनाने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ठोस पहल की थी, अब इतने साल बीतने के बाद हमें ठहरकर ये सोचना चाहिए कि क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना मुमकिन हो पाया.

अब ये बहस का विषय हो सकता है कि जिस मकसद के साथ ये कानून तैयार किया गया था क्या उसी तरह से ये काम कर रहा है? क्या लोकसेवकों से जुड़े भ्रष्टाचार के ज्यादातर मामलों का निपटारा तुरंत हो जाता है? क्या वाकई भ्रष्टाचार के हर आरोप के बाद इसी तरह से संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई होती है? 

ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जाने बिना भ्रष्टाचार की व्यवस्था को खत्म नहीं किया जा सकता. आज से करीब 12 साल पहले बिहार में इस तरह के कानून के जरिए एक पहल जरूर की गई थी, जिसे अंजाम तक पहुंचना अभी बाकी है.  

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