प्रकृति संरक्षण का संदेश देता उत्तराखंड का 'हरेला' पर्व जानिए कैसे है खास
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प्रकृति संरक्षण का संदेश देता उत्तराखंड का 'हरेला' पर्व जानिए कैसे है खास

Harela: 16 जुलाई को उत्तराखंड में (Harela)हरेला पर्व मनाया जाएगा, इसे लेकर अभी से गांव-घरों में रौनक दिखने लगी है. आपको बता दें कि (Harela)हरेला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है ,जो उत्तराखंड में मनाये जाने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है. वैसे हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है.

 प्रकृति संरक्षण का संदेश देता उत्तराखंड का 'हरेला' पर्व जानिए कैसे है खास

पटना:Harela: 16 जुलाई को उत्तराखंड में (Harela)हरेला पर्व मनाया जाएगा, इसे लेकर अभी से गांव-घरों में रौनक दिखने लगी है. आपको बता दें कि (Harela)हरेला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है ,जो उत्तराखंड में मनाये जाने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है. वैसे हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है. पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में मनाया जाता है, इन तीनों में से सावन महीने में मनाया जाने वाला हरेला विशेष धूमधाम से मनाया जाता है. सावन शुरु होने से कुछ दिन पहले हरेला(Harela)बोया जाता है. इसे संक्रांति के दिन काटा जाता है.

क्या है हरेला ?
त्‍योहार के 9 दिन पहले ही 5 से 7 तरह के बीजों की बुआई की जाती है. इसमें मक्‍का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट शामिल होते हैं. इसे टोकरी में बोया जाता है और 3 से 4 दिन बाद इनमें अंकुरण की शुरुआत हो जाती है. इसमें से निकलने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही हरेला कहा जाता है. इन पौधों को देवताओं को अर्पित किया जाता है. घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं. इस पर्व में लोग बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं लेकिन नौकरी-पेशा करने वाले और घर से दूर रहने वालों को हरेला के तिनके भेजे जाते हैं. जिन्हें बड़ों का आशीर्वाद और ईष्टों की कृपा मानकर कान और सिर पर रखा जाता है.

खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक 
हरेला पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है, इसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. रोजाना शाम के समय हरेला(Harela)पर जल का छ‍िड़काव किया जाता है. 9वें दिन इन पौधों की हल्‍की गुड़ाई की जाती है. अलग-अलग हरेला के पास अलग-अलग तरह के फल रखे जाते हैं. इनके बीचों-बीच शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा यानी डिकारे स्‍थापित किए जाते हैं. इसके बाद शुरू होती है पूजा-अर्चना. पूजा के दूसरे दिन मुख्‍य हरेला पर्व मनाया जाता है. इस दिन हरेला की कटाई की जाती है. घरों में खास तरह के पकवान बनाए जाते हैं. ये पकवान पहले इष्‍टदेव को समर्पित किए जाते हैं. इसके बाद घर के बड़े-बुजुर्ग सिर पर हरेला त‍िनकों को रखते हुए आशीर्वाद देते हैं.

कब काटा जाता है हरेला
उत्तराखंड में कुछ जगह हरेला बोने के 11वें दिन इसे काटते हैं, तो कुछ जगहों पर ये 10 वें दिन काटा जाता है. लोग अपने-अपने गांव की परम्परा के मुताबिक ही हरेला बोते और काटते हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड में हरेला दो अलग-अलग दिन बोया जाता है. हालांकि सभी लोग इसे संक्रांति के दिन ही काटते हैं.

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प्रकृति से जुड़ा हुआ है हरेला पर्व
हरियाली का प्रतीक हरेला ना सिर्फ एक लोकपर्व है बल्कि एक ऐसा अभियान है, जिससे जुड़कर स्थानीय लोग बरसों से संस्कृति और पर्यावरण दोनों को संरक्षित करते आ रहे हैं. इस मौके पर हरियाली को बढ़ावा देने के लिए पूरे राज्‍य में पौधारोपण अभ‍ियान भी चलाए जाते हैं.

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