हिंदी आगे बढ़ रही है बस रफ्तार धीमी है
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar986085

हिंदी आगे बढ़ रही है बस रफ्तार धीमी है

हिंदी दिवस हर साल 14 सितम्बर को मनाया जाता है. 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने फैसला किया कि हिंदी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा यानी राजभाषा होगी. ऐसा करने के पीछे मकसद था कि अधिकतर क्षेत्रों में हिंदी बोली जाती थी. 

देश भर में मनाया जा रहा है हिंदी दिवस (फाइल फोटो)

Patna: आजादी के ठीक बाद जब एक विदेशी समाचार संस्थान के संवाददाता ने महात्मा गांधी से कोई सवाल पूछा तो गांधी जी ने जवाब दिया कि अब आप भूल जाइये कि मुझे अंग्रेजी आती है, मैं जब भी बात करूंगा तो भारतीय भाषा में ही बात करूंगा. जाहिर है महात्मा गांधी ने ये बात भावनाओं के वश में नहीं कही होगी. हिंदी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के प्रचार की जरूरत वे अच्छी तरह समझते थे.

हिंदी दिवस हर साल 14 सितम्बर को मनाया जाता है. 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने फैसला किया कि हिंदी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा यानी राजभाषा होगी. ऐसा करने के पीछे मकसद था कि अधिकतर क्षेत्रों में हिंदी बोली जाती थी. इस दिवस का मतलब तो ये था कि इस दिन हिंदी की दशा और दिशा पर चिंतन होगा, मनन होगा. 

ये भी पढ़ें- Hindi Diwas 2021: 1881 में बिहार में राजभाषा बन गई थी हिंदी, बना था मान्यता देने वाला पहला राज्य

'हिंदी दिवस महज रस्म अदायगी बनकर रह गया है'
हिंदी के विकास और हिंदीवासियों के लिए कुछ बड़ी बातें होंगी लेकिन अफसोस, ये दिवस महज रस्म अदायगी बनकर रह गया है. हर साल हिंदी दिवस के दिन लच्छेदार भाषा में ट्वीट की बाढ़ आ जाती है, बयानों की झड़ी लग जाती है, लेकिन हिंदी की सेहत नहीं सुधरती. लंबे-चौड़े वादे के बजाए बतौर भाषा हिंदी के सामने जो दिक्कतें हैं अगर उसे दूर करने की कोशिश होती तो शायद हिंदी और हिंदीवासियों का ज्यादा भला होता.

'तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी की पुस्तकों का अभाव'
हिंदी के सामने सबसे बड़ी समस्या है, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी की पुस्तकों का अभाव. जो किताबें हैं भी, वो अनुवाद और दूसरी चीजों के लिहाज से इस कदर चलताऊ हैं कि उससे काम चलाया नहीं जा सकता. इसके अलावा हिंदी की समस्या कानून और प्रबंधन के दूसरे पाठ्यक्रमों और व्यवहारिक प्रयोग में भी है, इसे भी दूर करने की कोशिश की जा सकती है. कोर्स की अंग्रेजी किताबों का स्तरीय अनुवाद, वैश्विक समृद्ध साहित्य और दूसरी किताबों की हिंदी में उपलब्धता और रोजगार परक पाठ्यक्रमों से हिंदी को जोड़कर हम हिंदी की बेहतर सेवा कर सकते हैं. देश भर के विश्वविद्यालयों और विभागों में हिंदी के अध्यापकों और हिंदी से जुड़े अधिकारी कर्मचारी के रिक्त पदों को भरकर भी हिंदी की बेहतर सेवा हो सकती है.

'देश की नदियों में ना जाने कितना पानी बह गया और...'
आज़ादी के 70 साल होने को आए, इस बीच देश की नदियों में ना जाने कितना पानी बह गया और एक खास भावना भी हिंदी भाषी क्षेत्रों में जड़ पकड़ने लगी कि बिना अंग्रेजी जाने बेहतर भविष्य संभव नहीं है. ज़ाहिर है अंग्रेजी भाषा के बढ़ते अवसर और ग़ैर अंग्रेजी भाषी लोगों के प्रति हिकारत की एक दबी भावना ने इसे और बल दिया. इस हीन भावना को खत्म कर भी हम हिंदी की सेवा कर सकते हैं. हिंदी सही मायनों में देश की संपर्क भाषा है. कोई मराठी भाषी अगर किसी तेलगु भाषी से बात करता है तो अंग्रेजी में नहीं हिंदी में बात होती है. दो अलग भाषी राज्यों को जोड़ने वाली भाषा आज भी हिंदी ही है. ऐसे में हम हिंदी के विस्तार के जरिए अवसर का एक नया द्वार भी खोल सकते हैं.

हिंदी वासियों के मन में भाषा को लेकर गर्व की भावना क्यों नहीं आई?
एक बार मैंने हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी से पूछा था कि आज़ादी के इतने बरस बीत गए, हम हिंदी वासियों के मन में भाषा को लेकर गर्व की भावना क्यों नहीं आई, इस पर उन्होंने कहा कि गर्व की भावना का साल से कोई रिश्ता नहीं है, अगर ये भावना है तो पहले दिन से होनी चाहिए. साथ ही प्रभाष जी ने कहा कि बहादुर शाह जफर ने जो कहा था कि 'हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की' वही उनका भी कहना है.

 ये भी पढ़ें- LJP सांसद प्रिंस राज पर दिल्ली पुलिस ने दर्ज की रेप की FIR, चिराग का भी नाम

हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं
महान समाजवादी विचारक डॉ लोहिया ने कहा था कि 'मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें. इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां-बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं.' ख़ुद डॉ लोहिया भी अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे, लेकिन उस जमाने में हिंदी और अंग्रेजी के बीच बढ़ रही विषमता की खाई ने उन्हें इस तरह की तल्ख टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया होगा.

कुल मिलाकर हिंदी हर रोज आगे बढ़ रही है, बाज़ार की भाषा बनने के बाद इसमें अवसर के नए द्वार खुल गए हैं, लेकिन हर उपलब्धि का आंकलन करने के बाद भी ये कसक रह जाती है कि जो हासिल हुआ है वो अभी बहुत थोड़ा है.

Trending news