कांग्रेस ने इससे पहले भी पॉलिटिकल स्ट्रेटिजिस्ट से कई मौकों पर सलाह ली है, कई बार करार भी किया है. लेकिन इससे पहले हर बार या तो सब कुछ पर्दे के पीछे होता था या फिर कोई आंशिक जिम्मेदारी ही दी जाती थी.लेकिन इस बार जिस तरीके से एक जाने-माने चुनावी रणनीतिकार को पार्टी में बड़ा पद देकर चुनावी प्रबंधन सौंपने की बात हो रही है
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पटनाः कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों कहा कि ' प्रशांत किशोर देशभर में एक ब्रांड बन चुके हैं. गहलोत ने आगे कहा कि फिलहाल पीके देशभर में विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश भी कर रहे हैं.' अशोक गहलोत के इस बयान के कई मतलब निकलते हैं, तो क्या ब्रांड पीके अब देश की सबसे पुरानी पार्टी की तरकश का आखिरी तीर है. क्या कांग्रेस अगला लोकसभा चुनाव प्रशांत किशोर के नेतृत्व में ही लड़ना चाह रही है. कांग्रेस मुख्यालय में पिछले 5 दिनों से चल रही बैठक और लगातार मुलाक़ातों का दौर सार्वजनिक है, मीडिया में भी ये ख़बर सुर्खियों को साथ चल रही है. प्रशांत किशोर ने कांग्रेस अध्यक्ष से भी मीटिंग की, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बात की और उनके सामने अगले लोकसभा चुनाव को लेकर प्रेजेंटेशन भी दिया. ख़बर ये भी है कि कांग्रेस हाईकमान को पीके का प्रेजेंटेशन काफी पसंद आया है. प्रशांत किशोर ने वरिष्ठ नेताओं के सामने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर जो भी रणनीति रखी है वो पूरी तरह तो मीडिया में नहीं आई है लेकिन चर्चा ये है कि उन्होंने पार्टी प्रमुखों से देश की 350 लोकसभा सीटों पर फोकस करने को कहा है. इसके अलावा प्रशांत किशोर ने राज्यवार नेताओं से चर्चा के क्रम में सहयोगी दलों से भी रिश्ते ठीक करने के गुर बताए हैं. फिलहाल पीके की रणनीति सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की है.
पूरी तरह प्रबंधन में बदल गया चुनाव
हालांकि कांग्रेस ने इससे पहले भी पॉलिटिकल स्ट्रेटिजिस्ट से कई मौकों पर सलाह ली है, कई बार करार भी किया है. लेकिन इससे पहले हर बार या तो सब कुछ पर्दे के पीछे होता था या फिर कोई आंशिक जिम्मेदारी ही दी जाती थी.लेकिन इस बार जिस तरीके से एक जाने-माने चुनावी रणनीतिकार को पार्टी में बड़ा पद देकर चुनावी प्रबंधन सौंपने की बात हो रही है, ये कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए बिल्कुल नया अनुभव है. हालांकि अब तक कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका इलेक्शन को पूरी तरीके से मैनेजमेंट में तब्दील कर देने के पूरी तरह खिलाफ रहा है. प्रशांत किशोर और कांग्रेस हाईकमान के सामने ये भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
बिहार के रहने वाले हैं प्रशांत किशोर
सियासी गलियारों में चुनावी चाणक्य के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर से ताल्लुक रखते हैं, वे इस वक्त सियासी प्रबंधन में देश के सबसे चर्चित चेहरे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में पीके ने बीजेपी के चुनाव प्रबंधन की कमान संभाली. इसके बाद बीजेपी से रिश्ते खराब हुए तो 2015 में बीजेपी के खिलाफ बिहार में महागठबंधन के साथ हो गए. नतीजा 2014 में जहां देश में बीजेपी को बड़ी जीत मिली तो 2015 में बिहार में बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद पीके की कामयाबी की एक लंबी फेहरिस्त है, कभी तेलंगाना में जगन मोहन रेड्डी के साथ कभी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ प्रशांत किशोर ने अपने कुशल प्रबंधन से कई चुनावों में जीत अपनी तरफ की. हालांकि प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 और पंजाब चुनाव 2022 में फेल भी साबित हुए. लेकिन बावजूद इसके पीके का क़द आज देश की सियासत में एक कद्दावर की तरह ही है.
ये pk की प्रत्यक्ष सियासी पारी है
प्रशांत किशोर के काम करने का अब तक का तरीका रहा है कि वे अपने काम के बदले मोटी रकम लेते हैं. उनके पास प्रोशनल्स की एक लंबी टीम है जो चुनाव प्रबंधन की नीतियां बनाती है और ग्राउंड पर जाकर काम-काज देखती है. 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव के वक्त से ही प्रशांत किशोर ने कहा था कि इस चुनाव के बाद वे अपनी कंपनी 'आई-पैक' से अलग हो जाएंगे, हालांकि तब उन्होंने ये नहीं कहा कि वे अप्रत्यक्ष राजनीति की बजाय प्रत्यक्ष राजनीति में उतरेंगे. लेकिन अब सारे संकेत यही कह रहे हैं कि प्रशांत किशोर कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं, और पार्टी संगठन में बड़ी जिम्मेदारी के साथ अपनी प्रत्यक्ष सियासी पारी की शुरुआत कर सकते हैं, ये क़रीब-क़रीब तय है बस एलान बाकी है और ऐसा हो गया तो ये भी तय है कि इस बार प्रशांत किशोर ने कमजोर कांग्रेस संगठन में जान फूंकने का संकल्प लेकर अपने कॅरियर का सबसे कठिन टास्क लिया है.
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