Amartya Sen: बिना सबसे बात किए कानून बदल दिया... IPC की जगह BNS आने से क्यों खफा हैं नोबेल विजेता अमर्त्य सेन
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Amartya Sen: बिना सबसे बात किए कानून बदल दिया... IPC की जगह BNS आने से क्यों खफा हैं नोबेल विजेता अमर्त्य सेन

 अर्थव्यवस्था के जानकार अमर्त्य सेन ने भारत के नए कानूनों (भारतीय न्याय संहिता) पर निशाना साधते हुए अंग्रेजों के जमाने में बनी आईपीसी की तारीफ करते हुए बड़ा बयान दिया है. मोदी सरकार काफी पहले से पुराने कानूनों में बदलाव की बात कर रही थी.

Amartya Sen: बिना सबसे बात किए कानून बदल दिया... IPC की जगह BNS आने से क्यों खफा हैं नोबेल विजेता अमर्त्य सेन

Amartya Sen News: अर्थव्यवस्था के जानकार अमर्त्य सेन ने भारत के नए कानूनों (भारतीय न्याय संहिता) पर निशाना साधते हुए अंग्रेजों के जमाने में बनी आईपीसी की तारीफ करते हुए बड़ा बयान दिया है. मोदी सरकार काफी पहले से पुराने कानूनों में बदलाव की बात कर रही थी. इन कानूनों को लागू करने से पहले देशभर में व्यापक चर्चा हुई थी. कुल मिलाकर केंद्र सरकार ने दस साल देश चलाने के अनुभव और रिसर्च के बाद ये कानून लागू किए थे. एक जुलाई से नए कानून लागू भी हो गए हैं. कई राज्यों में तेजी से इस दिशा में काम हो रहा है. ऐसे में अमर्त्य सेन के इस बयान की व्यापक चर्चा हो रही है. सेन को नए कानूनों में क्या खामी नजर आती है? इससे इतर आइए आपको बताते हैं कि नए कानून पर उन्होंने क्या कहा.

क्या बोले अमर्त्य सेन?

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने शनिवार को कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू करने को ‘स्वागत योग्य बदलाव’ नहीं मानते, क्योंकि इसे व्यापक चर्चा किए बिना लाया गया. शांति निकेतन में पत्रकारों से बातचीत में सेन ने कहा कि नए कानून बनाने से पहले व्यापक चर्चा की जरूरत थी. 

उन्होंने कहा, ‘इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इसे लागू करने से पहले सभी हितधारकों के साथ कोई व्यापक चर्चा की गई. साथ ही, इस विशाल देश में मणिपुर जैसे राज्य और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों की समस्याएं एक जैसी नहीं हो सकतीं.’ सेन ने कहा कि सभी संबंधित पक्षों से चर्चा किए बिना बहुमत की मदद से इस तरह का बदलाव लाने के किसी भी कदम को वह स्वागत योग्य कदम नहीं कह सकते.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार कह रही है कि उसने कई विद्धानों के पैनल और व्यापक चर्चा के बाद इन कानूनों को लागू किया है. ऐसे में कुछ लोग कंफ्यूज हो सकते हैं कि नए कानून लागू करने वाली और 140 करोड़ लोगों का ध्यान रखने वाली सरकार सही है या इस मामले में प्रोफेसर साहब सच बोल रहे हैं, क्योंकि दोनों में सही तो कोई एक ही होगा. 

भारत की नई शिक्षा नीति की भी आलोचना 

सेन, मोदी सरकार के मुखर आलोचक लगते हैं. यही वजह है कि उन्हें मोदी सरकार का एक भी फैसला रास नहीं आता है. सेन से देश की नई शिक्षा नीति पर भी अपनी राय देते हुए कहा कि नई पॉलिसी में कुछ भी नया और खास नहीं है. वहीं जब सेन से लोकसभा चुनाव के नतीजों के बारे में भी पूछा गया. उन्होंने कहा, ‘चुनाव के नतीजे दर्शाते हैं कि इस तरह की (हिंदुत्व) राजनीति को कुछ हद तक विफल कर दिया गया है.

कौन हैं अमर्त्य सेन?

भारत के मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन से अर्थशास्त्र में ऐसा परचम लहराया कि पूरी दुनिया चकित रह गई. आइए अमर्त्य सेन के बारे में जानते हैं. खास बात यह भी है कि अमर्त्य सेन शुरुआत में संस्कृत, मैथ और फिजिक्स में भी रूचि रखते थे, लेकिन बाद में उन​की रुचि अर्थशास्त्र में हुई. 1998 में अर्थशास्त्र का नोबेल अवार्ड जीता. अब भी दुनिया भर की इकॉनमी पर अपने ज्ञान से दुनिया को चकित करते हैं. बुजुर्ग हैं. कुछ दिन पहले उनकी मौत की अफवाह उड़ी थी. लेकिन उनकी बेटी ने इस खबर का खंडन किया और कहा वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं.

अमर्त्य सेन का जन्म साल 1933 में कोलकाता में हुआ था. उनकी शिक्षा कोलकाता के शांतिनिकेतन, ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ तथा कैंब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से पूर्ण हुई. अमर्त्य सेन इस समय हावर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया है. उनको 1998 में इकोनॉमी साइंस में वेलफेयर इकोनॉमिक्स और सोशल च्वाइस थ्योरी में योगदान के लिए नोबेल अवार्ड दिया गया था.

(इनपुट- पीटीआई)

 

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