RSS का जन्म कैसे हुआ, क्या है इसका इतिहास; BJP से कैसे रहे हैं संघ के रिश्ते और कब-कब बिगड़े
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RSS का जन्म कैसे हुआ, क्या है इसका इतिहास; BJP से कैसे रहे हैं संघ के रिश्ते और कब-कब बिगड़े

RSS BJP Row: क्या संघ और बीजेपी में अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा? लोकसभा चुनाव नतीजों के आने के बाद से जिस तरह से  आरएसएस की ओर से लगातार तीखे बयान आने के साथ उसके मुखपत्र और पत्रिकाओं में लेख छपे हैं उसे लेकर सियासी पारा गरमाया हुआ है.

 

RSS का जन्म कैसे हुआ, क्या है इसका इतिहास; BJP से कैसे रहे हैं संघ के रिश्ते और कब-कब बिगड़े

RSS BJP Explainer: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बीजेपी (BJP) का पुराना साथ है. संघ की अवधारणा में भारत माता अगर सर्वोपरि हैं तो दल यानी संगठन से बड़ा देश होने का भाव है. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद संघ का आधार स्तंभ रहे हैं. बीजेपी भी इन सभी बातों से इत्तेफाक रखती है, इसलिए दोनों को समान विचारधारा वाला संगठन कहा जाता है. हिंदुत्व और विकसित भारत की सोंच के साथ आगे बढ़ा RSS आज करीब 100 साल का दीर्घायु, अनुभवी और शक्तिशाली संगठन बन चुका है. संघ के प्रचारकों का कहना है कि विश्व हिंदू परिषद (VHP), बजरंग दल, भारतीय मजदूर संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) जैसे सैकड़ों संगठन होने के बावजूद उनकी कोई पॉलिटिकल ब्रांच नहीं है. फिर भी बीजेपी (BJP) में संगठन महासचिव संघ से शामिल किए जाते रहे हैं. राहुल गांधी बीते 10 सालों से खुलकर बीजेपी-आरएसएस की विचारधारा को देश से उखाड़ फेकने की बात कर रहे हैं. इससे इतर संघ ने कभी खुलकर उनके खिलाफ कुछ नहीं कहा.

संघ के मुखपत्र पांचजन्य में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक संघ की विचारधारा भी कोई अलग किसी पुस्तक या किसी व्यक्ति के विचार से उपजी नहीं है. संघ की विचारधारा भारतीय समाज की ही जीवन शैली ही है.

आरएसएस को बीजेपी का वैचारिक और संगठनात्मक आधार माना जाता है. बीजेपी के कई बड़े नेता, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह और अनगिनत कार्यकर्ता और पदाधिकारी संघ से जुड़े रहे हैं. संघ की विचारधारा और दिशा-निर्देश भाजपा की नीतियों और कार्यों में अहम भूमिका निभाती हैं. दोनों संगठनों के बीच तालमेल से ही बीजेपी की रणनीतियां बनती हैं. ऐसे में जब दोनों के बीच खटपट की खबरें आई तो 2004 का वो दौर याद आ गया जब जब संभवत: बीजेपी और संघ के रिश्ते अपने सबसे नाजुक दौर में थे.

2024 के लोकसभा चुनाव और संघ-बीजेपी में खटपट! 

कहा जा रहा है कि बीजेपी और संघ के बीच कुछ खटपट चल रही है. संघ, बीजेपी के वर्तमान शीर्ष नेतृत्व से खफा है. इसलिए इस बार के लोकसभा चुनावों में संघ के स्वयंसेवकों ने बीजेपी के लिए काम नहीं किया और इसलिए वो दस साल बाद अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिलने से चूक गई. चुनावी नतीजों के बाद जिस तरह से संघ ने बिना नाम लिए बीजेपी नेताओं पर निशाना साधा उससे ये तो साफ हो गया कि हो न हो कुछ न कुछ तल्खी तो दोनों में आई है. 

पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान फिर संघ की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में छपे एक लेख और उसके बाद संघ के प्रचारक और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के प्रमुख इंद्रेश कुमार के बयानों को बीजेपी के साथ हुई अनबन से जोड़कर देखा गया. उसके बाद पता चलता है कि केरल में बीजेपी और संघ के अधिकारियों की मुलाकात होगी. फिर संघ प्रमुख भागवत यूपी के दौरे पर आते हैं और योगी आदित्यनाथ से उनकी मुलाकात होने को लेकर तमाम बातें होती हैं. उस चर्चा से इतर आइए आपको बताते हैं, क्या है संघ की ताकत और उस पर बीजेपी की मदद करने के आरोप क्यों लगते हैं? और इससे पहले कब-कब ऐसे मौके आए जब दोनों संगठनों में मतभेद की खबरें आईं. 

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भारतीय जनता पार्टी की स्थापना (1980) से पहले पूर्व यानी जनसंघ के जमाने से विचारधारा के आधार पर RSS इस दक्षिणपंथी राजनीतिक दल का समर्थन करता आया है. कुछ समय पहले संघ प्रमुख से ये सवाल पूछा गया था कि बीजेपी में महासचिव संघ से ही क्यों आते हैं, इसके जवाब में उन्होंने कहा था- 'संघ का बीजेपी के फैसलों से कोई लेना देना नहीं है. वो विचारधारा के आधार पर उनसे संवाद करते हैं, बीजेपी उनसे अपनी देख रेख के लिए योग्य और कुशल संगठनकर्ता मांगती है, इसलिए वो उन्हें अपना प्रचारक देते हैं, किसी अन्य दल ने कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए. अगर कोई अन्य दल कभी उनसे मदद मांगेगा तो विचार करेंगे.' ये बात उन्होंने हल्के-फुल्के माहौल में मुस्कुराते हुए विनोद के साथ बोली थी.

संघ का इतिहास और ताकत

इसे आप दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ भी कह सकते हैं, जो बिना किसी सरकारी मदद के जब-जब भारत पर कोई खतरा मंडराया तब उसके स्वयंसेवकों ने अपनी सेवा, त्याग और समर्पण की मिसाल पेश की. बीते सौ सालों में संघ एक वट वृक्ष बनकर उभरा है, जिसकी अनगिनत शाखाएं और संगठन देश की सेवा में लगे हैं. संघ की सबसे बड़ी ताकत उसके करोड़ों स्वयंसेवक हैं. संघ की लाखों शाखाएं आज दुनियाभर में सुबह-शाम लगती हैं. बच्चों के लिए बाल शाखा, तरुण शाखा और प्रौढ़ शाखाओं का आयोजन होता है. यही स्वयंसेवक जब चुनाव में जब जमीन पर उतर कर काम करते हैं तो माना जाता है कि भगवा पार्टी के पक्ष में माहौल खड़ा हो जाता है. 

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RSS राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है?

आरएसएस के एक विराट वट वृक्ष है. जिसकी सैकड़ों शाखाएं हैं. दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी. भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को महाराष्ट्र के नागपुर में इसका जन्म हुआ. तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें' का गान आज भी आरएसएस की शाखाओं में सुबह-शाम गाया जाता है. संघ की प्रार्थना में भी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की प्रधानता दिखती है. संघ की प्रार्थना में एक विकसित और मजबूत राष्ट्र की बात कही गई है. 

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RSS के प्रचारक कहते हैं कि हिंदू कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने की एक परंपरा है. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी 1995 में अपने एक फैसले में कहा था कि 'हिंदू धर्म, कोई धर्म नहीं, बल्कि जीने का तरीका है. हालांकि जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने ये भी कहा था कि हिंदू धर्म में कोई कट्टरता नहीं है.' यही बात संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत तक कहते आए हैं.

20 साल बाद एक बार फिर बीजेपी से मतभेद की खबरें

2024 के चुनावी नतीजों के बाद जैसे ही इंद्रेश कुमार का ये बयान तो सियासी गलियारों में बीजेपी-आरएसएस में सब ठीक नहीं होने के कयास लगने लगे. हालांकि, संघ सूत्रों ने ऐसी किसी भी बात से इनकार किया. RSS ने इंद्रेश कुमार के उस बयान से भी पल्ला झाड़ लिया जिसमें उन्होंने बीजेपी पर उसके चुनावी प्रदर्शन को लेकर निशाना साधा था. लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से जिस तरह संघ की तरफ से जितनी तेजी से बीजेपी को लेकर तल्ख बयान आए हैं, उसने लोगों को 2004 का दौर याद दिला दिया जब इस एपिसोड से ठीक बीस साल पहले 2004 में बीजेपी और संघ में मतभेद की खबरें आई थीं. 

वो दौर केएस सुदर्शन (K. S. Sudarshan) और अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee ) का था. तब संघ और बीजेपी के रिश्ते अब तक के अपने सबसे नाजुक मोड़ पर थे. तब RSS के पूर्व प्रमुख सुदर्शन ने बीजेपी की खुलेआम आलोचना करते हुए कहा, ‘संघ से बड़ा और संघ से जरूरी कोई काम नहीं हो सकता है…’ 2005 में अपने एक इंटरव्यू में तो उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को अकर्मण्य तक कह दिया और उन्हें राजनीति से संन्यास लेने की नसीहत दे डाली थी. तब वाजपेयी भले ही संघ को अपनी और पार्टी की आत्मा करार देते रहे हों, लेकिन संघ के नेता जैसे दत्तोपन्त ठेंगड़ी और गोविंदाचार्य जैसे बड़े नाम उन पर हमलावर थे.

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