Explainer: ‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है? कब और कैसे लागू होगा? फायदे और नुकसान... 10 बड़ी बातें
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Explainer: ‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है? कब और कैसे लागू होगा? फायदे और नुकसान... 10 बड़ी बातें

One Nation One Election: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी ने 'एक देश, एक चुनाव' पर सिफारिशें सौंपी थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, विधि आयोग 2029 से सरकार के सभी तीन स्तरों- लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है.

Explainer: ‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है? कब और कैसे लागू होगा? फायदे और नुकसान... 10 बड़ी बातें

One Nation One Election in Hindi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार मौजूदा कार्यकाल में ही 'एक देश, एक चुनाव' को लागू करने वाली है. सूत्रों के मुताबिक, विधि आयोग की ओर से जल्द ही इस बारे में सिफारिश की जाएगी. 'एक देश, एक चुनाव' पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी पहले ही अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप चुकी है. पिछले महीने, लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने भी 'एक देश, एक चुनाव' की वकालत की थी. सूत्रों के अनुसार, विधि आयोग सरकार के सभी तीन स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है. 'एक देश, एक चुनाव' क्या है? इसे कब से लागू करने की तैयारी है? बदली हुई व्यवस्था कैसी होगी? आइए, 10 प्वाइंट्स में सब समझते हैं.

  1. ‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है: यह भारत में होने वाले सभी चुनावों को एक साथ कराने की व्यवस्था से जुड़ा प्रस्ताव है. चुनाव एक दिन के भीतर या एक निश्चित समयावधि में कराए जा सकते हैं. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे, तबसे इस व्यवस्था की वकालत करते आए हैं. 'एक देश, एक चुनाव' के तहत लोकसभा और सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है.
  2. ‘एक देश, एक चुनाव’ का इतिहास: स्वतंत्र भारत के शुरुआती कई लोकसभा चुनाव और विधानसभाओं के चुनाव साथ ही हुए थे. 70 के दशक में, जैसे-जैसे कुछ राज्यों की विधानसभाएं जल्दी भंग हुईं, यह व्यवस्था चरमरा गई.
  3. ‘एक देश, एक चुनाव’ की जरूरत क्यों: संसदीय समिति के भीतर चली चर्चाओं में अनुमान लगाया गया कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराने में निर्वाचन आयोग 4,500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करता है. यह उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के घोषित और अघोषित चुनाव खर्च से इतर है. बीजेपी का तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने से खर्च में कमी आएगी. चुनाव से पहले लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता बार-बार सरकारों को नीतिगत निर्णय लेने या नई परियोजनाएं शुरू करने से नहीं रोकेगी.
  4. ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव: अगस्त, 2018 में विधि आयोग ने पंचायत से लेकर लोकसभा तक, सभी चुनाव एक साथ कराए जाने से जुड़ी ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी की. आयोग ने कहा कि इसके लिए संविधान से लेकर कई कानूनों में बदलाव की जरूरत होगी. सितंबर, 2023 में सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी बनाने की घोषणा की. इस कमेटी ने मार्च 2024 में 18,000 पन्नों में अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति को सौंपी.
  5. ‘एक देश, एक चुनाव’ समिति में कौन-कौन था: यह समिति भारत के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित की गई थी. समिति के अन्य सदस्यों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के अध्‍यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ डॉ सुभाष कश्‍यप, सुप्रीम कोर्ट के वकील हरीश साल्वे, पूर्व चीफ विजिलेंस कमिश्‍नर संजय कोठारी शामिल थे.
  6. ‘एक देश, एक चुनाव’ समिति की सिफारिशें: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने मार्च में, पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की. समिति ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने की भी सिफारिश की. कोविंद समिति ने एक साथ चुनाव कराने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की. उसने 18 संवैधानिक संशोधन करने की सिफारिश की जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी.
  7. ‘एक देश, एक चुनाव’ में कैसी व्यवस्था होगी: अभी औपचारिक मसौदा सामने नहीं रखा गया है लेकिन सूत्रों के मुताबिक, विधि आयोग सरकार के सभी तीन स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है. वह सदन में अविश्वास प्रस्ताव या अनिश्चितकाल तक बहुमत नहीं होने की स्थिति में एकता सरकार का प्रावधान करने की सिफारिश कर सकता है.
  8. ‘एक देश, एक चुनाव’ के फायदे और नुकसान: ‘एक देश, एक चुनाव’ के समर्थकों का तर्क है कि इससे शासन व्यवस्था प्रभावशाली होगी. इससे जनता के पैसे की बर्बादी कम होगी और विकास कार्य सुचारू रूप से चलेंगे, जो अन्यथा आदर्श आचार संहिता लागू होने पर रुक जाते हैं. कई विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया है. विपक्ष की दलील है कि इससे कई क्षेत्रीय दलों  को नुकसान होगा. इसके लिए पूरे देश में अविश्वास प्रस्ताव लाने के प्रावधान को भी समाप्त करना पड़ेगा. कई विपक्षी पार्टियों ने इसे वर्तमान संघीय शासन प्रणाली को नष्ट करके राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने तथा देश को बहुदलीय लोकतंत्र से सिंगल पार्टी स्टेट में बदलने की कोशिश भी करार दिया है.
  9. ‘एक देश, एक चुनाव’ पर कौन-कौन पार्टियां समर्थन में: एनडीए के भीतर, बीजेपी के दो प्रमुख सहयोगियों में से जनता दल (यूनाइटेड) तो इस कदम के समर्थन में है, लेकिन तेलुगू देशम पार्टी (TDP) का रुख साफ नहीं. कोविंद पैनल ने जब TDP से संपर्क किया तो कोई जवाब नहीं आया. कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने 62 पार्टियों से संपर्क किया था. जवाब देने वाले 47 राजनीतिक दलों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया. कुल 15 पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. पक्ष और विपक्ष में कौन-कौन सी पार्टियां रहीं, पूरी लिस्ट विस्तार से देखने के लिए यहां क्लिक करें.
  10. ‘एक देश, एक चुनाव’ कब से लागू होगा: बीजेपी नीत मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करेगी. सूत्रों के अनुसार, उसे भरोसा है कि इस सुधार को सभी दलों का समर्थन मिलेगा. इस व्यवस्था को 2029 से लागू किया जा सकता है. यानी 2029 में देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराए जा सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर , लाल किले की प्राचीर से किए गए अपने संबोधन में ‘एक देश, एक चुनाव’ की जोरदार वकालत की थी. उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो रही है. मोदी ने कहा था, 'राष्ट्र को ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए आगे आना होगा.'

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