Maharashtra Assembly Election 2024: महाराष्ट्र के सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों में बुधवार को हो रहे मतदान के साथ ही एक नए किस्म के राजनीतिक गठबंधनों का पेचीदा चुनावी मुकाबला आकार ले रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले शिवसेना और एनसीपी में टूट और नए किस्म के गठबंधनों के कारण महाराष्ट्र का मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य बेहद जटिल हो गया है.
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Mahayuti Vs Maha Vikas Aghadi Contest: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के लिए आज हो रहे मतदान के बीच तमाम राजनीतिक दिग्गज असमंजस में दिख रहे हैं. हां, क्योंकि सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान से पहले बने राजनीतिक गठबंधनों के कारण महाराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य बेहद जटिल दिख रहा है. वैसे तो नेताओं के आत्मविश्वास से भरे बयान आ रहे लेकिन बदले हुए सियासी समीकरण और कड़े इम्तिहान को लेकर सब ने फिंगर क्रॉस किया हुआ है.
पांच साल में बदला पूरा सियासी समीकरण
महाराष्ट्र में पिछली बार यानी 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को छोड़कर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के गठबंधन में शामिल हो गई थी. उसके बाद शिवसेना और एनसीपी में विभाजन हो गया. और अब दोनों पार्टी का एक-एक गुट कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधनों से जुड़ा हुआ है. इन राजनीतिक घटनाओं ने चुनावों के संबंध में खेल की पूरी स्थिति को बदल दिया है. आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि महायुति और महा विकास आघाड़ी ने महाराष्ट्र में चुनावी समीकरण को कैसे बदल दिया है?
आकार ले रहा एक जटिल पॉलिटिकल नंबर गेम
महाराष्ट्र में मतदान के साथ ही पॉलिटिकल नंबर गेम के हिसाब से एक जटिल चुनावी मुकाबला आकार ले रहा है. सूबे में ताकतवर क्षेत्रीय दलों एनसीपी और शिवसेना के किले दरक चुके हैं. साथ ही भाजपा और कांग्रेस का सीधा महामुकाबला मौजूदा सियासी समीकरण को बदल रहा है. आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में हर चार सीट में से एक पर भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर है. गठबंधन में सीटों का बंटवारा इस तरह हुआ है कि भाजपा और कांग्रेस के बीच सबसे ज्यादा 73 सीटों पर महामुकाबला है.
शिवसेना बनाम शिवसेना और एनसीपी बनाम एनसीपी!
भाजपा-कांग्रेस महामुकाबला के बाद शिवसेना बनाम शिवसेना (यूबीटी) 50 सीटों पर और फिर एनसीपी के अजित पवार और शरद पवार गुटों के बीच 37 सीटों पर सीधी लड़ाई है. इस तरह बेहद अहम आपसी लड़ाई के बावजूद इन दोनों पार्टियों के दोनों गुटों ने कांग्रेस और भाजपा के साथ बेहद सीमित सीटों पर सामना कर रही है. इससे लोकसभा चुनाव की तरह दृश्य उभरने पर नए सियासी समीकरण बनने की गुंजाइश को जिंदा माना जा रहा है. दूसरे एंगल से विश्लेषण करें तो दोनों गुटों ने एक होने की संभावनाओं को भी खत्म नहीं होने दिया है.
सभी छह क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के नतीजे का कितना प्रभाव?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए महाविकास आघाड़ी और महायुति दोनों गठबंधनों ने इस वर्ष की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन के आधार पर अपनी रणनीति बनाई है. सत्तारूढ़ महायुति ने कोंकण क्षेत्र से अपने प्रभुत्व का विस्तार करने का लक्ष्य रखा है, जबकि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) मुंबई, उत्तर महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और विदर्भ में अपनी पकड़ बनाए रखने और अन्य दो क्षेत्रों में अपने प्रभाव को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
पश्चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी के दोनों गुटों में बड़ा मुकाबला
पश्चिमी महाराष्ट्र में राज्य की आबादी और अर्थव्यवस्था का पांचवा हिस्सा है. पिछले लोकसभा चुनावों में विपक्षी गुट को थोड़ी बढ़त मिली थी. इस क्षेत्र में राज्य की कुल 288 में से सबसे ज़्यादा 70 विधानसभा सीटें हैं. एमवीए ने इस क्षेत्र की 10 लोकसभा सीटों में से आधी सीटें हासिल कीं, जबकि सत्तारूढ़ महायुति ने चार सीटें जीतीं. एनसीपी के दोनों गुट 28 प्रतिशत से अधिक सीटों यानी 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से 20 पर सीधे मुकाबले में हैं. इस क्षेत्र की बारामती सीट पर एनसीपी सुप्रीमो अजित पवार और उनके भतीजे युगेंद्र पवार एनसीपी (शरद पवार) के बीच मुकाबला है. एनसीपी (एसपी) ने पश्चिमी महाराष्ट्र की 10 लोकसभा सीटों में से तीन पर जीत हासिल की, जबकि एनसीपी को एक भी सीट नहीं मिली.
कोंकण क्षेत्र में महायुति की पकड़, कांग्रेस भी दमदार
कोंकण क्षेत्र एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सत्तारूढ़ गठबंधन ने लोकसभा चुनावों में एमवीए से बेहतर प्रदर्शन किया और छह में से पांच सीटें जीतीं. यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र भी था, जहां एनसीपी ने एक सीट जीती. यह क्षेत्र, महाराष्ट्र की आबादी और इसकी अर्थव्यवस्था का पांचवां हिस्सा से थोड़ा कम है. लोकसभा चुनावों में बाकी सभी क्षेत्रों में, एमवीए ने महायुति को बहुत पीछे छोड़ दिया. पश्चिमी महाराष्ट्र के बाद दूसरी सबसे ज़्यादा विधानसभा सीटों वाले विदर्भ में एमवीए ने 10 में से सात लोकसभा सीटें जीतीं. उनमें से पांच सीटें कांग्रेस ने जीतीं.
विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र का हाल
विदर्भ की आबादी राज्य की आबादी का पांचवां हिस्सा है, लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान केवल 15 प्रतिशत है. यहां प्रति व्यक्ति आय राज्य के औसत से 25-27 प्रतिशत कम है. यहां विभिन्न दलों के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ़ कई बागी उम्मीदवार भी खड़े हैं. प्रमुख दावेदारों में, भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस नागपुर दक्षिण-पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि कांग्रेस की राज्य इकाई के प्रमुख नाना पटोले सकोली से मैदान में हैं.
मराठवाड़ा एक और क्षेत्र है जहां एमवीए ने इस साल की शुरुआत में सात में से छह लोकसभा सीटें जीती थीं. केवल एक सीट सत्तारूढ़ शिवसेना ने जीती थी. मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में फैली एक सीट शिवसेना (यूबीटी) ने जीती थी. मराठा आरक्षण पर विवाद जारी रहने के साथ, सत्तारूढ़ खेमे को 46 विधानसभा सीटों वालेइस क्षेत्र में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. मराठवाड़ा की अर्थव्यवस्था इसकी आबादी से बहुत छोटी है. इसके चलते क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय राज्य के औसत से 32-34 प्रतिशत पीछे है.
उत्तर महाराष्ट्र उन तीन क्षेत्रों में से एक है, जहां प्रति व्यक्ति आय राज्य के औसत से पीछे है, जबकि इसकी आबादी राज्य की लगभग 17 प्रतिशत है. सिर्फ कृषि पर आधारित इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था महाराष्ट्र की कुल आय का सिर्फ़ 11 प्रतिशत है. लोकसभा चुनावों में, एमवीए ने सत्तारूढ़ गठबंधन को हराकर सात में से छह सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को सिर्फ़ एक सीट से संतोष करना पड़ा था.
मुंबई का क्या है मौजूदा सियासी हाल?
शहर और उपनगरीय दोनों क्षेत्रों को मिलाकर बना मुंबई राज्य का सबसे समृद्ध क्षेत्र है. यहां प्रति व्यक्ति आय राज्य के औसत से 61-66 प्रतिशत अधिक है. महाराष्ट्र की आबादी का 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सेदार होने के बावजूद, यह क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था का 19-20 प्रतिशत भागीदार है. भारत की वित्तीय राजधानी यहीं स्थित है. सत्तारूढ़ गुट ने यहां छह लोकसभा सीटों में से केवल दो पर ही जीत हासिल की थी. शिवसेना (यूबीटी) के पास तीन सांसदों के साथ इस क्षेत्र में सबसे मजबूत पकड़ है.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मुंबई क्षेत्र में शिवसेना के दो गुटों के बीच टकराव है. वर्ली निर्वाचन क्षेत्र में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का मुकाबला शिवसेना के ही मिलिंद देवड़ा से है. इसके अलावा, महाराष्ट्र के दिवंगत मंत्री बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी वांद्रे ईस्ट से एनसीपी उम्मीदवार के तौर पर उद्धव ठाकरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
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महाराष्ट्र में क्यों दरकेंगे NCP-शिवसेना के 'किले', BJP-कांग्रेस कैसे सेफ?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का इतिहास देखें तो कुल 288 सीटों में से महज 70 सीटों पर ही लगातार तीन बार से किसी एक ही पार्टी जीतती आ रही है. इमें 24 पर भाजपा, 18 पर कांग्रेस और 16 और 12 सीटों पर क्रमश: अविभाजित शिवसेना और एनसीपी का 2009, 2014 और 2019 में लगातार कब्जा रहा है. इस बार नए समीकरण, बदले गठबंधन, सीटों का बंटवारा और उम्मीदवारों के बदले जाने से आंकड़ों में भी बड़ा बदलाव दिख सकता है. हालांकि, इनमें से भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा असर बंटी हुई शिवसेना और टूटी हुई एनसीपी पर पड़ेगा. यानी इन दोनों दलों के ही किले दरकेंगे.
सियासी उतार-चढ़ाव और दो पार्टियों में टूट के बाद क्या बदलेगी स्ट्राइक रेट?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 की स्ट्राइक रेट अगर इस बार भी दोहराई तो भी भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले शिवसेना और एनसीपी के दोनों गुटों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा. पिछली बार भाजपा की 64, कांग्रेस की 30 शिवसेना की 44 और एनसीपी की की स्ट्राइक रेट 45 थी. पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा 148 और कांग्रेस 100 सीटों के साथ अपने-अपने गठबंधनों में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इस तरह, तमाम तरह की सियासी बयानबाजियों के बावजूद कथित तौर पर क्षेत्रीय क्षत्रपों की भरमार वाले महाराष्ट्र में राष्ट्रीय पार्टियां ही 'विन-विन सिचुएशन' या नतीजे से पहले ही फायदे की स्थिति में हैं.
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