Kisan Andolan Live: दिल्ली की तरफ निकले किसानों के मांगों की लंबी लिस्ट है. इसमें सबसे बड़ी बात एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी है. इसके तहत सी2+50 प्रतिशत वाले फॉर्मूले से फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य निकालने की मांग की जाती है. हालांकि अभी सरकार इसके लिए तैयार नहीं है.
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MSP Guarantee Kanoon: किसान एक बार फिर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं. टीवी पर बवाल, आंसू गैस और ट्रैफिक जाम की तस्वीरें आ रही हैं. साफ है लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वे मोदी सरकार पर अपनी मांगों को मनवाने का दबाव बना रहे हैं. हालांकि सरकार के सूत्र मीडिया से कह रहे हैं कि सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर खरीदने की कानूनी गारंटी देना 'वित्तीय आपदा' की तरह होगा. वैसे, सरकार किसान नेताओं से बातचीत जारी रखना चाहती है. सड़क पर उतरे किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं. वही कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन जिन्हें हाल में 'भारत रत्न' दिए जाने की घोषणा हुई है. उनके C2+50% फॉर्मूले की डिमांड हो रही है. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि इस फॉर्मूले में क्या कहा गया है और सरकार के न मानने की सबसे बड़ी वजह क्या है?
C2+50% फॉर्मूला क्या है?
यह न्यूनतम समर्थन मूल्य निकालने का स्वामीनाथन फॉर्मूला है जिस पर किसानों की उपज सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदने की बात कही गई है. सी2+50% फसल की औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा पैसे देने का फॉर्मूला है. इसमें सभी खर्चों को जोड़ा गया है जिसमें जमीन का रेंट भी शामिल है. सरल शब्दों में समझें तो स्वामीनाथन आयोग ने फसल लागत का 50 प्रतिशत से ज्यादा देने की सिफारिश की थी. उत्पादन लागत को तीन तरह से निकाला जाता है -
1. A2 में नकदी खर्च जैसे बीज, रसायन, मजदूरी पर खर्च, खाद, ईंधन और सिंचाई आदि शामिल है.
2. A2+FL में फसल पैदा करने में परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत भी जोड़ी जाती है.
3. C2 में व्यापक लागत शामिल होती है, जिसमें जमीन का लीज रेंट और खेती से संबंधित दूसरी चीजों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल है.
आयोग ने C2 की लागत में ही 50 फीसदी और जोड़कर फसल पर MSP तय करने की बात कही थी.
#WATCH | Farmers' protest | Tear gas shells fired to disperse the agitating farmers who were approaching the Police barricade.
Visuals from Shambhu Border. pic.twitter.com/AnROqRZfTQ
— ANI (@ANI) February 14, 2024
संयुक्त किसान मोर्चा सभी फसलों के लिए स्वामीनाथन फॉर्मूले के तहत एमएसपी, फसल की खरीद की कानूनी गारंटी, कर्ज माफी, बिजली दरों में बढ़ोतरी नहीं और स्मार्ट मीटर नहीं होने सहित अपनी कई मांगें उठा रहा है. किसान नेताओं ने खेती, घरेलू उपयोग और दुकानों के लिए मुफ्त 300 यूनिट बिजली, व्यापक फसल बीमा और पेंशन में बढ़ोतरी कर 10,000 रुपये हर महीने करने की मांग की है. ऐसे में यह समझना भी जरूरी है कि अभी एमएसपी कैसे निकाली जाती है.
MSP का मौजूदा फॉर्मूला
- सरकार A2+FL फॉर्मूले के तहत एमएसपी तय करती है.
- ए2+एफएल में किसानों द्वारा किए गए सभी भुगतान और परिवार के श्रम की वैल्यू शामिल की जाती है.
- इस तरह से सभी तरह के खर्चे से कम से कम 1.5 गुना ज्यादा एमएसपी तय की जाती है.
MSP का मतलब यह होता है कि किसान को उसकी फसल का दाम इस कीमत से कम नहीं मिलेगा, चाहे बाजार में फसल का भाव गिरा ही क्यों न हो. कृषि लागत और मूल्य आयोग फसलों की बुवाई के समय लागत का अनुमान लगाकर कीमत तय करने की सिफारिश केंद्र सरकार से करता है. अभी किसानों के खर्च पर कम से कम 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय किया जाता है.
क्यों तैयार नहीं सरकार?
2020 में कृषि उपज का बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये रहा और इसमें एमएसपी के दायरे में आने वाली सभी 24 फसलें शामिल थीं. हालांकि, उस साल कुल एमएसपी खरीद 2.5 लाख करोड़ रुपये की ही थी, जो एमएसपी के तहत खरीद कुल उपज का सिर्फ 25% है. अगर सरकार किसानों की गारंटी वाले कानून की मांग मान लेती है तो सरकारी खजाने पर सालाना कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. यह राशि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए इस साल अंतरिम बजट में केंद्र सरकार के 11.11 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के लगभग बराबर है.
यही वजह है कि सरकारी सूत्रों की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि एमएसपी गारंटी कानून किसी भी तरह से उचित और आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं होगा. राजनीतिक रूप से भले सरकार किसानों के विरोध के आगे झुक जाए और सभी फसलों के लिए एमएसपी गारंटी पर सहमत हो जाए, पर उसके लिए हर साल 10 लाख करोड़ रुपये निर्धारित करने की आवश्यकता होगी. इस तरह धन जुटाने के लिए सरकार को रक्षा खरीद और देश के बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च में कटौती करनी होगी. हो सकता है करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ डालना पड़े.
विशेषज्ञों का मानना है कि हर साल फसलों की खरीद पर दी जाने वाली गारंटी के लिए 45 लाख करोड़ रुपये के बजट व्यय में से 10 लाख करोड़ रुपये निकालना एक गलत निर्णय होगा. इससे न केवल अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ेगा, बल्कि सरकार को किसानों के हित में कदम उठाने में भी दिक्कत आएगी. (एजेंसी इनपुट के साथ)