Language Dispute In Tamil Nadu: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी भाषी समारोह आयोजित नहीं होने चाहिए. वहीं, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने चेन्नई के समारोह में साफ कहा कि हिंदी को थोपने वाली भाषा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. इससे स्टालिन आगबबूला हो उठे.
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Tamil Nadu CM Stalin Vs Governor RN Ravi: तमिलनाडु से एक बार फिर सरकारी तौर पर हिंदी विरोधी आवाज उठी है. राज्य के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के अध्यक्ष एमके स्टालिन ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र में लिखा कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी भाषी समारोह आयोजित नहीं होने चाहिए. वहीं, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने एक समारोह में कहा, "हिंदी थोपने की भाषा नहीं है." इसके बाद गुस्साए स्टालिन ने उनकी तीखी आलोचना की.
तमिलनाडु में हिंदी विरोध की राजनीति को आजमाती रहती है डीएमके
डीएमके नेता स्टालिन, उनके परिवार और उनकी पार्टी तमिलनाडु में रह-रहकर हिंदी विरोध की राजनीति को आजमाती रहती है. इसी सिलसिले में स्टालिन कभी विधानसभा में हिंदी विरोधी प्रस्ताव, कभी त्रिस्तरीय भाषा फॉर्मूला को लागू करने से इनकार, कभी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान पर एतराज, कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हिंदी भाषी समारोह के आयोजन का विरोध तो कभी राज्यपाल आरएन रवि पर जुबानी हमला करते रहते हैं.
देश के विकास में बाधा डालना चाहती हैं अंदर और बाहर की कई ताकतें
तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने शुक्रवार को भाषा की स्वीकार्यता के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि भारत के अंदर और बाहर ऐसी ताकतें हैं, जो देश के विकास में बाधा डालना चाहती हैं. चेन्नई दूरदर्शन के स्वर्ण जयंती समारोह के साथ-साथ हिंदी माह के समापन समारोह के आयोजन पर तमिलनाडु सरकार के कड़े विरोध के बाद उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी भाषा के बारे में धारणा बदल रही है. शुरुआत में इसका विरोध किया गया, लेकिन बाद में उन्होंने पाया कि राज्य के कई छात्र हिंदी में पारंगत हो गए हैं.
हिंदी को थोपने वाली भाषा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए: राज्यपाल
राज्यपाल आरएन रवि ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदी को थोपने वाली भाषा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे अन्य भाषाओं के साथ ही माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "पहले जब मैं यहां आया था, तो तमिलनाडु में हिंदी का स्वागत नहीं किया जाता था, लेकिन जब मैंने छात्रों से मिलना शुरू किया, तो मुझे खुशी हुई कि उनकी हिंदी मेरी हिंदी से बेहतर थी. तमिलनाडु के लोगों में हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ गई है... तमिलनाडु में हिंदी कोई थोपी जाने वाली भाषा नहीं है. हर भाषा का सम्मान किया जाना चाहिए. हर भाषा पर हम सभी को गर्व होना चाहिए."
'तमिलनाडु को अलग-थलग करने की जहरीली और अलगाववादी कोशिश'
उन्होंने कहा, "भारत के अंदर और बाहर ऐसी कई संस्थाएं हैं जो भारत को आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं... आज भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है. हम दुनिया के शीर्ष तीन स्टार्ट-अप में से एक हैं. हम चांद और उससे भी आगे निकल गए हैं. दुनिया इसे स्वीकार कर रही है." राज्यपाल ने तमिलनाडु को शेष भारत से अलग-थलग करने के कथित प्रयास पर चिंता व्यक्त की, ऐसे प्रयासों को "जहरीली और अलगाववादी नीति" बताया और कहा कि इससे देश कमजोर नहीं हो सकता.
देश के 27 राज्यों ने तीन-भाषा फार्मूला अपनाया, तमिलनाडु का इनकार
उन्होंने कहा कि देश पीएम मोदी के साथ आगे बढ़ रहा है और भारत अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, लेकिन कुछ ताकतें भारत को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने बताया कि भारत के 27 राज्यों ने तीन-भाषा फार्मूला अपनाया है, जबकि तमिलनाडु अन्य भाषाओं को शामिल करने का विरोध कर रहा है, जो उनके अनुसार राज्यों के बीच संचार और एकता को बाधित करता है. उन्होंने कहा कि यह भाषाई अलगाव तमिलनाडु के युवाओं के लिए चुनौतियां पैदा करता है, जिससे उन्हें कर्नाटक जैसे पड़ोसी राज्यों में साथियों से जुड़ने में भी मुश्किल होती है.
स्टालिन ने राज्यपाल की कड़ी आलोचना की, उठाए कई असहज सवाल
इसके बाद, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्यपाल की आलोचना की और सवाल किया कि क्या वह "आर्यन" हैं. स्टालिन ने कहा, "राज्यपाल? क्या आप आर्यन हैं? द्रविड़ शब्द को हटाना और तमिल थाई अभिवादन करना तमिलनाडु के कानून के खिलाफ है! जो व्यक्ति कानून के अनुसार काम नहीं करता और अपनी मर्जी से काम करता है, वह उस पद पर रहने के योग्य नहीं है. भारत का जश्न मनाने की आड़ में राज्यपाल देश की एकता और इस भूमि पर रहने वाले विभिन्न जातियों के लोगों का अपमान कर रहे हैं."
हिंदी माह को स्टालिन ने कहा- अन्य भाषाओं को नीचा दिखाने की कोशिश
स्टालिन ने राज्यपाल पर तमिलनाडु के लोगों का "जानबूझकर अपमान" करने का आरोप लगाते हुए केंद्र से उन्हें वापस बुलाने की भी मांग की. उन्होंने कहा, "क्या द्रविड़ एलर्जी से पीड़ित राज्यपाल राष्ट्रगान में द्रविड़ शब्द को छोड़ने के लिए कहेंगे? केंद्र सरकार को तुरंत राज्यपाल को वापस बुलाना चाहिए जो जानबूझकर तमिलनाडु और तमिलनाडु के लोगों की भावनाओं का अपमान कर रहे हैं." इससे पहले स्टालिन ने पीएम मोदी को पत्र में लिखा था, "भारत जैसे बहुभाषी देश में हिंदी को विशेष स्थान देना और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी माह मनाना अन्य भाषाओं को नीचा दिखाने का प्रयास माना जाता है."
सुबह स्टालिन ने पीएम को लिखा पत्र, शाम में किया राज्यपाल पर हमला
स्टालिन ने शुक्रवार को एक ही दिन में सुबह पीएम मोदी को पत्र और शाम में राज्यपाल आरएन रवि पर हमला करके हिंदी विरोध की राजनीति को तेज करने की कोशिश की. स्टालिन का यह हिंदी विरोध ज्यादातर बार तमिल भाषा की वकालत से बढ़कर अंग्रेजी की पैरवी और बचाव तक पहुंच जाती है. हालांकि, तमिलनाडु में हिंदी भाषा को लेकर किया जाने वाला विवाद नया नहीं है. इसकी जड़ें राजनीति में गहरे धंसी हैं और यह विवाद देश की आजादी से भी पहले से चला आ रहा है. आइए, इसके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.
त्रिस्तरीय भाषा फॉर्मूला के विरोध में लाए प्रस्ताव में स्टालिन की दलीलें
गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की सिफारिशों के विरोध में तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव पर बोलते समय स्टालिन उसे पूर्व सीएम पेरारिग्नार अन्ना के लागू किए दो भाषा नीति के खिलाफ बताया था. साथ ही सिफारिशों को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ओर से गैर-हिंदी भाषा राज्यों से किए गए वादों के उलट भी बताया था. उस प्रस्ताव में ये भी कहा गया था कि संसदीय समिति की सिफारिशें आधिकारिक भाषा पर 1968 और 1976 में पारित प्रस्तावों के जरिए आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी का इस्तेमाल करने के खिलाफ भी हैं.
आजादी से पहले से हिंदी विरोध में लगते रहे है स्टालिन जैसे कई आरोप
स्टालिन की ओर से भाजपा पर लगाए जाने वाले आरोपों में अंग्रेजी को प्रशासन से पूरी तरह हटाना की इच्छा, सिर्फ हिंदी के लिए दिल का धड़कना, प्रतियोगी परीक्षाओं से अंग्रेजी भाषा को हटाकर गैर-हिंदी भाषियों को नुकसान पहुंचाने और गैर-हिंदी भाषियों को अलग-थलग करने की कोशिश शामिल है. स्टालिन की पार्टी और विचारधारा के नेता दशकों पहले से यह आरोप केंद्र सरकार पर लगाते आ रहे हैं. तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध पहली बार आजादी से पहले अगस्त 1937 में हुआ था. तब सी. राजागोपालाचारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला लिया था.
राजागोपालाचारी का फैसला पलटे जाने के बाद ट्रेंड बन गया हिंदी विरोध
तमिलनाडु में राजागोपालाचारी के इस फैसले के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन लगभग तीन साल तक चला था. इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को भी शामिल करने के ब्रिटिश सरकार के फैसले के खिलाफ राजागोपालाचारी ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद स्थानीय सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने वाले पुराने फैसले को वापस ले लिया था. हालांकि, इसके बाद तमिलनाडु में हिंदी विरोध एक पॉलिटिकल ट्रेंड बन गया. 1930 के दशक में हिंदी विरोधी इसी आंदोलन को स्टालिन की पार्टी डीएमके की शुरुआत माना जाता है.
आजादी के बाद फिर हिंदी विरोधी आंदोलन, संसद में नेहरू के वादे से थमा
आजादी के बाद 1950 में केंद्र सरकार ने स्कूलों में हिंदी को वापस लाने और 15 साल के बाद अंग्रेजी को खत्म करने से जुड़ा एक फैसला किया. इस फैसले की आड़ में तमिलनाडु में एक बार फिर से हिंदी विरोधी आंदोलन को हवा दी गई. बाद में एक समझौते के तहत हिंदी को वैकल्पिक विषय बनाने का फैसला कर विरोध को शांत कराया जा सका था. तमिलनाडु और आसपास हिंदी के बढ़ते विरोध को देखते हुए 1959 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद में भरोसा दिलाया कि गैर-हिंदी भाषी राज्य अंग्रेजी का इस्तेमाल करना जारी रख सकेंगे.
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लाल बहादुर शास्त्री कैबिनेट से दो मंत्रियों का हिंदी विरोध में इस्तीफा
पंडित नेहरू के आश्वासन के बाद थमा विरोध 1963 में राजभाषा अधिनियम आने के बाद फिर से तेज होने लगा. जनवरी 1965 में केंद्र सरकार ने हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने का एक फैसला लिया. तमिलनाडु में इस फैसले के विरोध की ऐसी आग भड़की कि प्रदर्शनकारियों ने हिंदी में लिखे बोर्ड तक को जला दिया. तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम अन्नादुरई ने 25 जनवरी 1965 को 'शोक दिवस' के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया. वहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सरकार के दो मंत्री सी. सुब्रमण्यम और ओवी अलागेसन ने विरोध में इस्तीफा दे दिया.
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हिंदी विरोध के लिए इतिहास की दुहाई, प्रचार के लिए हिंदी का सहारा
केंद्र सरकार ने तेज होते राजनीतिक विरोध प्रदर्शन के बाद प्रतियोगी और सिविल परीक्षाओं में अंग्रेजी भाषा को जारी रखने का फैसला लिया. इसके बाद 1967 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजभाषा अधिनियम में संशोधन कर 1959 में जवाहर लाल नेहरू की ओर से संसद में दिए गए आश्वासन को और मजबूत किया. तब से लेकर स्टालिन तक नेता हिंदी विरोध के लिए इन वादों का सहारा लेते हैं. हालांकि, गठबंधन की राजनीति के दौर में अपनी ताकत और प्रचार बढ़ाने के लिए कुछ वर्षों से स्टालिन की पार्टी ने हिंदी अखबारों में विज्ञापन और हिंदी पॉडकास्ट वगैरह की शुरुआत भी की थी.
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