Mumbaikar Review: मुंबई ऐसी नहीं मेरी जान, विजय सेतुपति जैसे निकले मॉर्निंग वॉक पर
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Mumbaikar Review: मुंबई ऐसी नहीं मेरी जान, विजय सेतुपति जैसे निकले मॉर्निंग वॉक पर

Vijay Sethupathi Film: फिल्म का नाम भले ही मुंबईकर है, लेकिन इसमें इस महानगर या यहां के लोगों का चरित्र नजर नहीं आता. साधारण क्राइम ड्रामा की तरह इसे रचा गया है. जिन विजय सेतुपति के हिंदी डेब्यू का आप इंतजार करते हैं, वह भी खास असर नहीं छोड़ता. फिल्म आप चलते-फिरते देख सकते हैं.

 

Mumbaikar Review: मुंबई ऐसी नहीं मेरी जान, विजय सेतुपति जैसे निकले मॉर्निंग वॉक पर

Mumbai Underworld Film: मुंबई नाम में वजन है. देश का सबसे बड़ा महानगर और दुनिया के सबसे बड़े महानगरों में एक. यहां रहने वालों को मुंबईकर कहते हैं. हर दिन यहां हजारों लोग रोजगार के लिए, तो तमाम किस्मत आजमाने आते हैं. यहां सिनेमा है, रोजगार है. लोगों को लगता है कि सपनों के इस महानगर में वह हवाई पट्टी है, जो उनके सपनों की उड़ान को नए आसमानों तक पहुंचा सकती है. निर्देशक संतोष सिवन की इस फिल्म में भी तीन लोग मुंबई पहुंचते हैं. एक को घर चलाना है, दूसरे को नौकरी चाहिए और तीसरा डॉन बनने आया है. क्या होगा तीनों का, यह आप जियो सिनेमा पर रिलीज हुई मुंबईकर में देख सकते हैं. यह 2017 की तमिल फिल्म मानगरम (निर्देशकः लोकेश कनगराज) की रीमेक है. जिसने चार करोड़ के बजट में बनने के बाद 100 करोड़ का बिजनेस किया था.

होता कोई भी शहर
मुंबईकर देखकर आपको नहीं लगेगा कि यह रीमेक फिल्म किसी भी लिहाज से 100 करोड़ा का बिजनेस कर सकती है. शाहरुख खान के साथ एक जमाने में असोका (2001) जैसी फ्लॉप फिल्म बनाने वाले निर्देशक संतोष सिवन ने मानगरम का रीमेक किया है. लेकिन फिल्म देखकर लगता नहीं कि यह सीनियर फिल्ममेकर का काम है. संतोष सिवन सिनेमैटोग्राफी में एक दर्जन बार राष्ट्रीय अवार्ड जीत चुके हैं, लेकिन मुंबईकर में कैमरे का कमाल भी नहीं दिखता. यह जरूर है कि फिल्म की कहानी अलग-अलग परतों पर चलती हुई एक-दूसरे में बुनी रहती हैं, लेकिन न तो सही ढंग से एंटरटेन करती हैं और न ही इस महानगर के मिजाज को बताती है. फिल्म का क्लामेक्स बहुत जल्दी आ जाता है, लेकिन बहुत खिंचा हुआ है. आपको लगता है कि यह फिल्म मुंबई के अलावा दिल्ली, लखनऊ, पटना, अहमदाबाद, इंदौर या चेन्नई में भी बसी होती तो कोई फर्क नहीं पड़ता.

मुंबई का डॉन कौन
मुंबईकर का इंतजार इसलिए था कि साउथ के शानदार एक्टर विजय सेतुपति का इससे हिंदी सिनेमा में डेब्यू होने जा रहा है. लेकिन फिल्म इस स्तर पर बेहद निराश करती है. विजय फिल्म में ऐसे व्यक्ति बने हैं, जो साउथ से मुंबई आया है. विजय फिल्म में अपने इंट्रोडक्शन सीन में आईने में खुद को देखते हैं. आईने पर अमिताभ बच्चन और रजनीकांत की फोटो चिपकी हैं. उन्हें देखते हुए विजय बताते हैं कि वह मुंबई में डॉन बनने आए हैं. वह सड़कछाप गुंडों के एक गैंग में भर्ती हो जाते हैं, यह कहते हुए कि वह गैंगवालों से क्राइम की ट्रेनिंग ले रहे हैं. उन्हें एक बच्चे को स्कूल से उठा लेने का जिम्मा दिया जाता है और वह एक गलत बच्चे को उठा लेते हैं. यह बच्चा मुंबई के सबसे बड़े गैंग्स्टर पीकेपी (रणवीर शौरी) का बेटा है. गैंग के लोग डरते तो हैं, लेकिन फिर तय करते हैं कि अंततः डॉन से भी वसूली की जाएगी. उससे एक करोड़ की डिमांड होती है.

सबका सबसे कनेक्शन
फिल्म जो दो अन्य किरदार दूसरे शहरों से मुंबई में आजीविका कमाने आए हैं, वह हैं ड्राइवरी करने वाले संजय मिश्रा और एक दफ्तर में नौकरी का इंटरव्यू देने वाले हरिदू हारून. इन बाहरी लोगों के बीच हैं, विक्रांत मैसी. जो मुंबईकर हैं. एंग्री यंग मैन. गलत के खिलाफ आवाज उठाते. अपनी इच्छा से बेरोजगार. एक दफ्तर में काम करने वाली इशिता (तान्या मानिकतला) से विक्रांत को एकतरफा मोहब्बत है. इसी मोहब्बत में वह कुछ गुंडों को पीटते हैं और फिल्म की कहानी बढ़ती है. वही गुंडे गलतफहमी में बाद में हरिदू हारून को पीटते हैं. हारिदू के सेर्टिफिकेटों वाली फाइल उस कार में डालकर ले जाते हैं, जिसे बाद में ड्राइवर संजय मिश्रा चलाते हैं. यह गाड़ी गैंगस्टर पीकेपी की है, जिसके बेटे को विजय एंड गैंग ने उठा लिया है. इस तरह से फिल्म गोल चक्कर में आ जाती है. सब एक-दूसरे से कनेक्ट हो जाते हैं.

यह सही डेब्यू नहीं
मुंबईकर देखते हुए लगता है कि विजय सेतुपति मॉर्निंग वॉक पर निकले हैं और चलते-फिरते ही उन्होंने फिल्म में काम कर दिया. इसमें उनकी समस्या कम और फिल्म राइटर तथा डायरेक्टर की समस्या ज्यादा है. निश्चित ही जिस सितारे का नाम हो और जिसे लोग विक्रम वेधा (2017) जैसी फिल्म में वजनदार रोल में देख चुके हों, उसके लिए यह डेब्यू सही नहीं है. विक्रांत मैसी का किरदार कहानी में शुरू से कनफ्यूज करता है. लेकिन निर्देशक अंत में उसे हीरो बनाते हैं. संजय मिश्रा के हिस्से कुछ खास नहीं है, जबकि रणवीर शौरी, हरिदू हारून और तान्या मानिकतला के किरदारों में भी स्थिरता नजर नहीं आती. कुल मिलाकर कहानी में सहजता कम और सैट-अप अधिक नजर आता है. निर्देशक के रूप में आप संतोष सिवन से बेहतर की उम्मीद करते हैं. अगर आपके पास खाली वक्त है तो फिल्म फ्री में उलपब्ध है. मुंबईकर में आप मुंबई की उम्मीद मत कीजिएगा.

निर्देशकः संतोष सिवन
सितारे: विजय सेतुपति, विक्रांत मैसी, संजय मिश्रा, रणवीर शौरी, हरिदू हारून, तान्या मानिकतला, सचिन खेड़ेकर
रेटिंग**

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