Rakesh Roshan Career: राकेश रोशन ने हिंदी फिल्मों में न केवल बतौर एक्टर अपनी जगह बनाई, बल्कि निर्देशक के रूप में भी बड़ी कामयाबी पाई. उनकी बेटी सुनैना रोशन ने किताब लिखी है, टू डैड विद लव. उसमें इस रोचक वाकये का जिक्र है.
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Hrithik Roshan Father: किसी की पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह से यह तय नहीं करती कि वह आगे चलकर क्या बनेगा? क्या करियर चुनेगा. हां, पढ़ाई-लिखाई उसे एक अच्छा इंसान जरूर बनाती है. सही-गलत, अच्छे बुरे की पहचान कराती है. एक्टर-डायरेक्टर-प्रोड्यूसर के रूप में बॉलीवुड के बड़े नामों में गिने जाने वाले राकेश रोशन इसका बड़ा उदाहरण हैं. राकेश बचपन में पढ़ाई में काफी कमजोर थे. पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था. लेकिन आज कोई कह नहीं सकता कि उनकी रुचि पढ़ने में नहीं थी. आज इंडस्ट्री में उनका बड़ा नाम है. उनकी गिनती टॉप के प्रोड्यूसर डायरेक्टर में की जाती है.
भाग गए थे घर से
राकेश रोशन बॉलीवुड के 1960-70 के दशक के मशहूर संगीतकार रोशन के बेटे थे. रोशन काफी सख्त थे और समय के पाबंद भी. इसी वजह से राकेश के अंदर पिताजी का डर हमेशा बना रहा. बात तब की है जब राकेश आठवीं क्लास में थे और उनका रिजल्ट आया. रिजल्ट देखकर उनके होश उड़ गए. वह फेल हो गए थे. उनमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि रिजल्ट के साथ पिताजी का सामना कर सकें. वह भाग निकले. जब वह समय पर घर नहीं पहुंचे तो भगदड़ मच गई कि वह कहां चले गए. दोस्त-रिश्तेदार सब जगह पूछताछ की गई. सभी लोग इकट्ठा हो गए. पुलिस में भी शिकायत कर दी गई. सबको लगा उन्हें किसी ने फिरौती के चक्कर में किडनैप कर लिया है. खूब तलाशी हुई. बड़ी मुश्किल से बहुत ढूंढने के बाद वह घर से बहुत दूर दहिसर में मिले. डांट और मार से बचने के चक्कर में वह घर से निकल भागे थे.
सैनिक स्कूल में करवाया भर्ती
आठवी में फेल होने और घर से भागने की घटना के बाद राकेश के पिताजी को लगा कि इतनी सख्ती के बावजूद राकेश अनुशासन में रहना नहीं सीख पा रहे हैं तो उन्होंने बेटे को बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करने की ठान ली. बहुत सोच विचार के बाद उन्हें एक मिलिट्री बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करवा दिया. यह स्कूल सतारा का सैनिक स्कूल था, जहां राकेश के पिताजी के एक दोस्त का बेटा भी पढ़ रहा था. उनके पिताजी रोशन को लगा कि किसी का साथ होने से शायद राकेश को घर की कमी कम खले. यह सोचकर उन्होंने राकेश को अपने फ्रेंड के बेटे के साथ उसी बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करवाया. हालांकि वह राकेश से 2 साल सीनियर था.
सीखी हॉर्स राइडिंग
बोर्डिंग स्कूल में रहना राकेश के लिए किसी सजा से कम नहीं था. वहां सभी बच्चों को 5 बजे उठना पड़ता था और 7 बजे तक जॉगिंग करनी होती थी. अनुशासन के मामले में स्कूल इतना स्ट्रिक्ट था कि ठंड के दिनों में भी उन्हें टाइम से उठना पड़ता था. इस स्कूल में स्टूडेंट्स को कई आउटडोर एक्टिविटीज सिखाई जाती थी, जिसमें हॉर्स राइडिंग भी थी. राकेश ने इसे बड़े मन से सीखा. उस स्कूल में पढ़ने का राकेश को यह फायदा हुआ कि उनमें अनुशासन तो आया ही, वह एक अच्छे हॉर्स राइडर भी बन गए. उनकी फिल्म खून भरी मांग में हॉर्स राइडिंग के प्रति उनकी दीवानगी झलकती भी है.
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