Amitabh bachchan flop films: राजनीति में फ्लॉप होकर फिल्मों में लौटे अमिताभ बच्चन को इस फिल्म से बहुत उम्मीदें थीं. लेकिन उनकी सुपर स्टार इमेज के बावजूद मैं आजाद हूं सुपर फ्लॉप साबित हुई. ऐसा पहली बार हुआ था कि अमिताभ के किरदार का फिल्म में कोई नाम नहीं था और पर्दे पर पूरे समय वह एक जोड़ी कपड़ों में थे.
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Amitabh bachchan movies: कुछ साल पहले ट्विटर पर एक व्यक्ति ने अमिताभ बच्चन से पूछा कि अगले जन्म में वह क्या बनना चाहेंगे, तो उनका जवाब था, ‘पक्के तौर पर जर्नलिस्ट!’ वजह बताई कि पत्रकार बनकर आजादी से बगैर किसी दबाव के अपनी बात कह पाने में खुशी महसूस करेंगे. लेकिन मजे की बात है कि अमिताभ ने जर्नलिज्म से जुड़ी जिन फिल्मों में काम किया, वे नाकाम रहीं. इन फिल्मों में मैं आजाद हूं और रण जैसी फिल्में शामिल हैं. खास तौर पर 1989 में आई मैं आजाद हूं. यह उस दौर की फिल्म है जब अमिताभ बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट होते थे. लेकिन यह फिल्म उनकी सबसे सुपर फ्लॉप फिल्मों में शुमार है. इस फिल्म से उस दौर के बड़े नाम जावेद अख्तर, शबाना आजमी और टीनू आनंद जुड़े थे.
पब्लिक का दबाव
मैं आजाद हूं में अमिताभ ने अपने दौर में आम आदमी की स्थिति को बताने की कोशिश की थी. जिसमें एक पत्रकार (शबाना आजमी) आम आदमी बने अमिताभ को थोड़े से पैसों के बदले अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती है. यह अकेली फिल्म है, जिसमें अमिताभ के किरदार का कोई नाम नहीं है और शबाना उन्हें फर्जी नाम देती है, आजाद. वह अखबार में राजनेताओं और भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ आर्टिकल और पत्र लिखती है. फिर एक दिन घोषणा करती है कि 26 जनवरी को भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ ऊंची बिल्डिंग से कूद कर आजाद आत्महत्या करने जा रहा है. हर तरफ हंगामा होता है तो शबाना, बेरोजगार और गुमनाम अमिताभ को आजाद बना कर सबके सामने पेश कर देती है. जिस तरह से लोग आजाद को सपोर्ट करते हैं, उससे वह दबाव में आ जाता है. उसे लगता है कि वह इतने सारे लोगों की अकेली उम्मीद है. आखिरकार उसी दबाव में वह मल्टीस्टोरी बिल्डिंग से कूद कर जान दे देता है.
एक साथ कई दिमाग
सुपर स्टार की फिल्म सुपर फ्लॉप रही. लोगों ने आजाद को जिस तरह लाचार देखा, वह उन्हें रास नहीं आया. अमिताभ की इमेज तब अलग थी. समीक्षकों और दर्शकों ने अमिताभ को यह कहते हुए नकार दिया कि वह फिल्म में कहीं से भी दो दिन के भूखे नहीं दिखते बल्कि उनके गुलाबी गाल पर्दे पर चमकते हैं. मैं आजाद हूं अमेरिकी फिल्म मीट जॉन डो से प्रेरित थी और जावेद अख्तर ने इसे लिखा था. आजाद की दिक्कत यह भी थी इसमें कई दिमाग लग रहे थे. इसका टाइटल बार-बार बदल रहा था. पहले सच, फिर महात्मा, उसके बाद सत्यम. इसी तरह क्लाइमेक्स भी बदला गया. अमिताभ बच्चन ने अपने दोस्त और डायरेक्टर मनमोहन देसाई को फिल्म के एक प्रिव्यू शो में बुलाया. देसाई को फिल्म पसंद नहीं आई. उन्होंने डायरेक्टर को सुझाव दिया कि इसके अंत में आजाद को मरना चाहिए. तब क्लाइमेक्स बदला गया. आजाद मर गया. लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गई. बात यह भी थी कि मैं आजाद हूं में अमिताभ एक जोड़ी कपड़ों में ही नजर आए थे.
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