Childhood Pictures: बचपन की मासूम तस्वीरों में दिख रही हीरोइन है ‘हिट गर्ल’, आज हो रहे हैं चारों तरफ चर्चे
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Childhood Pictures: बचपन की मासूम तस्वीरों में दिख रही हीरोइन है ‘हिट गर्ल’, आज हो रहे हैं चारों तरफ चर्चे

Dada Saheb Phalke Award: आशा पारेख को शिकायत रही है कि उनके काम को हिंदी सिनेमा में सही ढंग से रेखांकित नहीं किया गया. देर से सही, मगर आज उन्हें देश का सर्वोच्च सिने-पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला. निश्चित ही यह 1950 से 1980 के दशक तक उनके लंबे फिल्मी सफर को मजबूती से दर्ज कराता है.

 

Childhood Pictures: बचपन की मासूम तस्वीरों में दिख रही हीरोइन है ‘हिट गर्ल’, आज हो रहे हैं चारों तरफ चर्चे

Dada Saheb Phalke Award To Asha Parekh: 1950 के आखिरी बरसों से लेकर 1970 के शुरुआती वर्षों तक आशा पारेख हिंदी फिल्मों में छाई हुई थीं. अपने समय में वह सबसे सफल हीरोइन थी और उन्हें ‘हिट गर्ल’ कहा जाता था. वजह यह थी कि उनकी फिल्में सफलता की गारंटी थी. उनका सिनेमाघरों में 25 हफ्तों से 50 हफ्तों तक चलना लगभग तय होता था. साथ ही वह अपने हीरो के लिए भी बहुत लकी मानी जाती थीं. नतीजा यह कि तमाम हीरो उनके साथ काम करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आशा पारेख अपने समय की सबसे महंगी हीरोइन थीं.

चाइल्ड आर्टिस्ट से सुपर स्टार
आशा पारेख ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट करियर शुरू किया. वह गुजराती-हिंदू पिता और मुस्लिम मां की संतान थीं. दिग्गज निर्देशक बिमल रॉय ने जब उन्हें एक स्टेज पर डांस करते थे, देखा तो अपनी फिल्म बाप बेटी (1954) में कास्ट कर लिया. इससे पहले 1952 में एक फिल्म आसमान (1952) कर चुकी थीं. जब वह 16 बरस की हुईं तो निर्माता विजय भट्ट ने अपनी फिल्म गूंज उठी शहनाई (1959) के लिए कास्ट करने के बाद यह कहते हुए निकाल दिया कि वह हीरोइन मटीरियल नहीं हैं. मगर वह गलत साबित हुए. जल्द ही निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें अपनी फिल्म दिल देके देखो (1959) में शम्मी कपूर के साथ लॉन्च कर दिया और फिल्म सुपर हिट रही. आशा बड़ी स्टार बन गईं. 1959 से 1973 तक का हिंदी सिनेमा का दौर आशा पारेख की सफलता का समय है. 22 साल बाद दादा साहेब पुरस्कार किसी महिला कलाकार को मिला है. आखिरी बार साल 2000 में यह आशा भोंसले को दिया गया था.

खत्म हुई शिकायत
आशा पारेख की फिल्मों का सिल्वर, गोल्डन और प्लेटेनियम जुबली मनाना आम बात थी. देव आनंद के साथ जब प्यार किसी से होता है (1961), शम्मी कपूर के साथ तीसरी मंजिल (1966), राजेश खन्ना के साथ कटी पतंग (1970) और धर्मेंद्र के साथ मेरा गांव मेरा देश (1971) उनकी बेहद कामयाब फिल्में हैं. देर से सही, मगर आज आशा पारेख को हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला है, निश्चित ही बड़ी उपलब्धि है. आशा पारेख ने अपने करियर में लगभग 95 फिल्मों में काम किया. इससे पहले आशा को शिकायत रही कि उनके काम को हिंदी सिनेमा में सही ढंग से रेखांकित नहीं किया है. उन्होंने कुछ साल पहले आत्मकथा लिखी थी, जिस नाम है द हिट गर्ल.

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