Less Ticket Price: अगर मल्टीप्लेक्सों में टिकटों के रेट कम हो जाएं तो क्या गारंटी कि दर्शक फिल्म देखने जाएंगेॽ हाल में कुछ फिल्मों में बॉलीवुड और मल्टीप्लेक्सवालों ने मिलकर यह प्रयोग किया, मगर फायदा नहीं हुआ. उल्टा मल्टीप्लेक्स में जाने वाले हैरान रह गए कि पॉपकॉर्न-समोसे टिकट से महंगे पड़ रहे हैं.
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New Bollywood Films: बॉलीवुड के लिए चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं. दर्शकों को मल्टीप्लेक्सों में खींचने के लिए पहले नेशनल सिनेमा डे मानाया गया और फिर कुछ फिल्मों की टिकट दर सस्ती की गई, लेकिन साफ है कि इससे फिल्म नहीं चल पा रही हैं. पहले नेशनल सिनेमा डे पर फिल्म ब्रह्मास्त्र और चुप के टिकटों की कीमत 75 रुपये रखी गई तो जरूर थोड़ा उत्साह लोगों में दिखा और वे थियेटरों में पहुंचे, लेकिन इसके बाद तीन बड़े सितारों वाली फिल्मों की टिकट कम करने का कोई फायदा नहीं हुआ. सबसे पहले अमिताभ बच्चन की गुड बाय, फिर तीसरे हफ्ते में ऋतिक रोशन-सैफ अली खान की विक्रम वेधा और शुक्रवार को रिलीज हुई कोड नेम तिरंगा में निर्माताओं ने टिकट रेट नॉरमल से कम कर दिए, परंतु इसके बावजूद इन्हें देखने लोग नहीं पहुंचे.
यह एक नई समस्या
मल्टीप्लेक्सों में टिकट रेट कम रखने के एक नई समस्या पैदा हो गई है. कई जगहों पर फिल्म के टिकट के रेट से ज्यादा महंगे पॉपकॉर्न और समोसे पड़ रहे हैं. कहीं-कहीं तो इनका कॉम्बो और कोल्ड ड्रिंक टिकट रेट से डबल हो जाता है. अब निर्माताओं का कहना कि इस मामले में मल्टीप्लेक्स मालिकों को सहयोग करना होगा और खाने-पीने की चीजों के रेट कम करना चाहिए. टिकट रेट करने में निर्माताओं को ज्यादा नुकसान है, जबकि पॉपकॉर्न-समोसे-कोल्ड ड्रिंक के रेट गिराने से सीधा नुकसान मल्टीप्लेक्सों का होगा. उल्लेखनीय है कि पश्चिमी देशों में पॉपकॉर्न के रेट यहां की तरह महंगे नहीं होते. वे टिकटों के मुकाबले काफी कम होते हैं.
बात टिकट की नहीं कंटेंट की
शुक्रवार को रिलीज हुई कोड नेमः तिरंगा के लिए निर्माताओं रेट मात्र 100 रुपये कर रखे थे, लेकिन इस बात कहीं प्रचार नहीं हुआ और परिणीति चोपड़ा की फिल्म में भी लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. नतीजा यह कि फिल्म का पहले दिन का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन मात्र 10 से 15 लाख रुपये है. खुद को एक लिस्ट स्टार करने वाली किसी एक्ट्रेस का इतना कम ओपनिंग कलेक्शन अपने आप में रिकॉर्ड है. पहले ही दिन देश में फिल्म के सैकड़ों शो कैंसिल कर दिए गए. उधर तीसरे शुक्रवार को विक्रम वेधा के टिकट रेट भी गिरा दिए गए थे, इसके बावजूद दर्शकों ने फिल्म में रुचि नहीं दिखाई और इसका कलेक्शन नॉरमल टिकट दर पर करोड़ में रहने की जगह लाख में आ गया और शुक्रवार को फिल्म मात्र 50 से 55 लाख रुपये कमा सकी. जब दर्शकों को आना ही नहीं था, तो बेहतर होता कि निर्माता नॉरमल टिकट रेट रखते, जिससे उनके पास ज्यादा पैसा आता. खैर, अब साफ है कि हर फिल्म के लिए हर समय टिकटों की दर कम करके दर्शकों को नहीं बुलाया जा सकता. कभी किसी खास फिल्म या खास मौके पर ही यह आइडिया काम कर सकता है. मुद्दा यह है कि बॉलीवुड अच्छा कंटेंट लेकर आए. वर्ना दर्शकों की अब उसमें दिलचस्पी नहीं है.
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