जिस यूनिवर्सिटी में 10 साल तक चपरासी का किया काम, वहीं बने असिस्टेंट प्रोफेसर और पेश की मिसाल
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जिस यूनिवर्सिटी में 10 साल तक चपरासी का किया काम, वहीं बने असिस्टेंट प्रोफेसर और पेश की मिसाल

Success Story of Kishor Mandal: बिहार के किशोर मंडल को 2003 में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था, जिस कारण उन्हें बिहार के मुंगेर जिले के एक कॉलेज में नाइट गार्ड की नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

जिस यूनिवर्सिटी में 10 साल तक चपरासी का किया काम, वहीं बने असिस्टेंट प्रोफेसर और पेश की मिसाल

Success Story of Kishor Mandal: कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ हम आज सफलता की एक और कहानी आपके लिए लाए हैं. इस कड़ी में आज की कहानी बिहार के एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसने करीब एक दशक तक जिस विश्वविद्यालय में चपरासी के रूप में काम किया, वहीं उसने पढ़-लिख प्रोफेसर का पद हासिल कर एक मिसाल कायम कर डाली. दरअसल, हम बात कर रहे हैं बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले कमल किशोर मंडल (42) की, जिन्होंने अपनी यात्रा से कई लोगों को प्रेरित किया है और आगे भी करते रहेंगे.

बिहार के इस व्यक्ति को 2003 में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था, जिस कारण उन्हें बिहार के मुंगेर जिले के एक कॉलेज में नाइट गार्ड की नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. बता दें कि उन्होंने इस नौकरी को जॉइन करने से पहले राजनीति विज्ञान (Political Science) में ग्रेजुएशन की थी. हालांकि, ग्रेजुएट होने के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई, जो राज्य में रोजगार के अवसरों की कमी की ओर इशारा करता है.

बाद में, उन्हें तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (TMBU) में अंबेडकर के विचार और सामाजिक कार्य विभाग में भेज दिया गया. पांच साल ड्यूटी पर बिताने के बाद उन्हें चपरासी के पद पर नियुक्त किया गया. हालांकि, मंडल का जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने की महत्वाकांक्षा थी.

इसलिए उन्होंने प्रस्तावित विषयों पर शोध किया और विश्वविद्यालय से अनुरोध किया कि उन्हें आगे अध्ययन करने की अनुमति दी जाए. विश्वविद्यालय ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया. इसके बाद उन्होंने साल 2009 में Ambedkar Thought and Social Work से एमए (MA) किया. उन्होंने कड़ी मेहनत और समर्पण के माध्यम से एक अच्छी रैंकिंग के साथ अपनी डिग्री पूरी की.

इसके बाद उन्होंने पीएचडी (PhD) करने के लिए भी विश्वविद्यालय से अनुमति मांगी, लेकिन कुछ सालों तक इसे स्वीकार नहीं किया गया. फिर साल 2012 में TMBU ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उन्हें पीएचडी की डिग्री हासिल करने की अनुमति दे दी. अगले ही साल, मंडल ने पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला लिया और 2017 में अपनी थीसिस भी जमा की.

किशोर कभी भी अपनी आर्थिक स्थिति को जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने के अपने सपने पर हावी नहीं होने दिया. उन्होंने सुबह के समय कक्षाओं में जाकर पढ़ाई की, इसके बाद दोपहर के समय अपनी ड्यूटी की और आधी रात को वे अपने स्टडी मेटेरियल के जरिए रिविजन किया करते थे. साल 2019 में उन्हें पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया.

इसके तुरंत बाद, उन्होंने प्रोफेसर और लेक्चरर के रूप में नौकरियों के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया. सौभाग्य से, बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने उसी समय तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (Tilka Manjhi Bhagalpur University) में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए विज्ञापन निकाला था. बस फिर क्या था किशोर ने तुरंत उस पद के लिए आवेदन कर दिया और परिणाम के आने तक धैर्य के साथ प्रतीक्षा की.

इंटरव्यू राउंड के लिए 12 उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था, जिसमें से किशोर को Ambedkar Thought and Social Work Department में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए चुना गया. बता दें कि यह वहीं कॉलेज था जहां उन्होंने कई सालों तक चपरासी के पद पर काम किया था.

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