JNU राजनीति से प्रभावित हो सकता है, लेकिन यहां के छात्र 'देशद्रोही' नहीं: कुलपति
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JNU राजनीति से प्रभावित हो सकता है, लेकिन यहां के छात्र 'देशद्रोही' नहीं: कुलपति

इन सबको लेकर वाइस-चांसलर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने कहा कि प्रशासन को इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि झड़पों के पीछे क्या कारण था? दोनों पक्षों के बयानों को आधार मानकर जांच की जा रही है. इसको लेकर कमेटी भी गठित की गई है. जल्द ही इसकी रिपोर्ट विवि प्रशासन को सौंप दी जाएगी.

JNU राजनीति से प्रभावित हो सकता है, लेकिन यहां के छात्र 'देशद्रोही' नहीं: कुलपति

नई दिल्ली. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के रजिस्ट्रार ने कहा कि वामपंथी संगठनों और एबीवीपी से जुड़े छात्रों के बीच "झगड़ा" तब हुआ जब उनमें से कुछ ने रामनवमी के अवसर पर 'हवन' आयोजित करने पर आपत्ति जताई थी. रजिस्ट्रार रविकिशन के मुताबिक कुछ छात्रों ने राम नवमी के अवसर पर एक छात्रावास के अंदर हवन पर आपत्ति जताई. वहीं, लेफ्ट से जुड़े छात्रों का आरोप है कि यह झड़प तब हुई जब एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने हॉस्टल में नॉन-वेज परोसने से मना कर दिया. वहीं, कुछ छात्रों पर कावेरी हॉस्टल में रामनवमी पूजा को भी रोकने का आरोप है. 

वहीं, इन सबको लेकर वाइस-चांसलर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने कहा कि प्रशासन को इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि झड़पों के पीछे क्या कारण था? दोनों पक्षों के बयानों को आधार मानकर जांच की जा रही है. इसको लेकर कमेटी भी गठित की गई है. जल्द ही इसकी रिपोर्ट विवि प्रशासन को सौंप दी जाएगी.

इसके अलावा वाइस-चांसलर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने विवि के छात्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि विवि भले ही पॉलिटिकली प्रभावित हो, लेकिन यहां के छात्र देशद्रोही नहीं हैं. उन्होंने कहा कि यहां के 60 प्रतिशत छात्र प्रशासनिक पदों पर रहकर देश सेवा कर रहे हैं. वहीं, विवि में 90 प्रतिशत स्टूडेंट्स ऐसे हैं जिनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं और उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. वे यहां सिर्फ अच्छे करियर के लिए आते हैं.

वाइस-चांसलर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने कहा कि अधिकतर छात्रों का परिवारिक बैकग्राउंड अच्छा नहीं है. ऐसे में जब विवि के छात्रों को देशद्रोही के नजरिए से देखा जाता है, तो ऐसे छात्रों को नुकसान होता है, जब वे नौकरी की तलाश में बाहर जाते हैं. 

अपनी तात्कालिक योजनाओं के बारे में बताते हुए वाइस-चांसलर ने कहा वे जेएनयू के वित्तीय और ढांचागत पहलुओं में सुधार करना चाहती हैं, जिसने हाल ही में अपनी 53 वीं वर्षगांठ मनाई है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय वर्तमान में 130 करोड़ रुपए के घाटे में चल रहा है और वह निजी भागीदारी, विदेशी योगदान और परोपकार के माध्यम से इसे "आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर" बनाना चाहती हैं.

उन्होंने कहा कि जेएनयू को भी आत्मनिर्भर बनना सीखना होगा और हमें फीस या किसी भी चीज़ से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि यहां यह एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है. हमें ऐसा करने के लिए नए तरीके तलाशने होंगे. एक छात्र यहां एक सीट के लिए 1 लाख से अधिक छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है, और उनमें से कई हाशिए के क्षेत्रों से आते हैं. हम ऐसी कई योजनाएं चाहते हैं जो हमारे छात्रों को निजी और विदेशी दोनों संस्थाओं से अधिक छात्रवृत्ति और फेलोशिप प्राप्त करने में मदद करें, यह इस बात पर निर्भर करता है कि अवसर कैसे आते हैं.

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