आखिर कैसे चवन्नी से बना चावड़ी बाजार? जानें क्यों है इस नाम के पीछे की कहानी इतनी खास
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आखिर कैसे चवन्नी से बना चावड़ी बाजार? जानें क्यों है इस नाम के पीछे की कहानी इतनी खास

History of Chawri Bazar Name: चावड़ी बाजार के नाम के पीछे एक बेहद ही रोचक कहानी छिपी हुई है. इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि दिल्ली की इस फेमस जगह का नाम आखिर चावड़ी बाजार क्यों पड़ा.

आखिर कैसे चवन्नी से बना चावड़ी बाजार? जानें क्यों है इस नाम के पीछे की कहानी इतनी खास

नई दिल्ली, History of Chawri Bazar Name: देश की राजधानी दिल्ली कई चीजों के लिए फेमस है. दिल्ली की कई जगहें तो इतनी खास हैं कि टूरिस्ट लोगों के लिए वो हमेशा आकर्षण का केंद्र बनी रहती हैं. इन्हीं में से एक है दिल्ली सबसे खास जगह "चावड़ी बाजार". दिल्ली का यह इलाका पुरानी दिल्ली के हिस्से में आता है. यह काफी घनी आबादी वाली जगह है. इस जगह का नाम जो भी पहली बार सुनता है, वो यह समझ ही नहीं पाता कि आखिर इस जगह का नाम ऐसा क्यों रखा गया. क्या आप बता सकते हैं कि आखिर चावड़ी बाजार का नाम कैसे पड़ा और चावड़ी का क्या अर्थ होता है. अगर नहीं, तो आइये आज हम आपको बताएंगे कि दिल्ली की इस फेमस जगह का नाम आखिर चावड़ी बाजार क्यों पड़ा और इसके पीछे क्या इतिहास छुपा हुआ है. 

चावड़ी बाजार के नाम के पीछे एक बेहद ही रोचक कहानी छिपी हुई है. दरअसल, चावड़ी नाम मराठी शब्द 'चावरी' से पड़ा है. चावरी शब्द का मतलब होता है बैठने की कोई जगह. इसके इतिहास को खंगालें, तो पता चलता है कि यहां एक कुलीन व्यक्ति के घर अक्सर सभा हुआ करती थी, जो एक तरह की पंचायत की तरह थी. लोग यहां अपनी समस्यांए लेकर आते थे और उन सम्स्याओं को यहां निपटाया जाता था.

इसके अलावा चावड़ी बाजार के नाम से जुड़ी एक और कहानी काफी प्रचलित है. मीडिया रिपोर्टेस के मुताबिक, यह इलाका 19वीं शताब्दी में नृत्य करने वाली लड़कियों और तवायफों के लिए जाना जाता था, इस इलाके में उस वक्त के अमीर लोगों का का आना-जाना लगा रहता था. ये लोग नृत्य करने वाली को चवन्नियां दिया करते थे और धीरे-धीरे इस रवैये के चलते इस जगह का नाम 'चवन्निस' पड़ा और फिर बाद में यह 'चावरी' बन गया.

हालांकि, अंग्रेजों के आने के बाद तवायफों की संस्कृति खत्म हो गई. यहां पर वेश्याएं बाजार की ऊपरी मंजिलों पर कब्जा करने के लिए आ गई, लेकिन दिल्ली के नगर निगम द्वारा उन्हें ऐसा ना करने दिया गया. जिस कारण बाद में 1840 के समय चावड़ी बाजार की स्थापना एक हार्डवेयर मार्केट के रूप में हो गई. बता दें कि यह उस समय पुरानी दिल्ली का पहला थोक बाजार था, लेकिन अब दिल्ली का चावड़ी बाजार पीतल, तांबे और कागज उत्पादों के लिए एक विशेष थोक बाजार बन गया है.

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