Saanp Seedi Game: दोस्तों संग आपने सांप-सीढ़ी का खेल खूब खेला होगा. खासतौर पर बच्चे इस खेल को बहुत पसंद करते हैं. बाजी हारते देख चीटिंग भी की होगी. आज जानेंगे इस खेल से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें...
Trending Photos
Snakes And Ladders Game: पहले लोग वक्त गुजारने के लिए कई तरह के गेम्स खेलते थे, लेकिन ये आज के तरह गैजेट्स के जरिए नहीं खेले जाते थे. लोग इनडोर या आउटडोर गेम्स खेलना पसंद करते थे. बच्चों की बात करें या बड़ों की सभी को ये खेल बहुत भाते थे. अब दौर बदल चुका है और इसी के साथ टेक्नोलॉजी के इस युग में बच्चों के जीने का तरीका भी बदल चुका है.
अब वे दिन भर घर में बैठकर गैजेट्स पर अकेले ही गेम्स खेलते रहते हैं, लेकिन पहले ऐसा बिल्कुल भी नहीं था. हम सभी ने बचपन में लुका-छिपी, चोर-पुलिस और न जाने कितने ही मजेदार खेल खेले हैं, जिनसे फिजिकल एक्टिविटिज होती थी. वहीं, इनडोर गेम्स (Indoor Game) की बात करें तो इनमें सबसे पॉपुलर लूडो, सांप-सीढ़ी (Snake And Ladders) और शतरंज है. इनसे ब्रेन की बढ़िया एक्सरसाइज होती हैं.
आज हम यहां बता करेंगे सांप-सीढ़ी के दिलचस्प खेल के बारे में आज भी बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि यह खेल विदेशी नहीं है, बल्कि इसका आविष्कार भारत में ही हुआ है. आपको बता दें कि एक बेहतरीन सोच के साथ यह खेल शुरू किया गया था. आइए जानते हैं कि इस खेल की शुरुआत किस अच्छी सोच के साथ हुई?
आज भी कम नहीं हुआ क्रेज
पीढ़ियां बदलती गई समय बहुत आगे निकल आया, लेकिन सांप-सीढ़ी के इस पुराने खेल का क्रेज आज भी कम नहीं हुआ है. आज भी लोग अपने मोबाइल फोन्स पर ऑनलाइन लूडो खेलना पसंद करते हैं. लूडो के बोर्ड में ही दूसरी ओर सांप-सीढ़ी का खेल होता है.
सांप-सीढ़ी के दीवाने
बच्चों को सांप-सीढ़ी का खेल लूडो से ज्यादा आसान लगता था, क्योंकि इसमें सब पासे पर निर्भर करता है, ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ता है. वहीं, बहुत से लोगों को लगता है कि यह दिलचस्प खेल एक विदेश की देन है, जबकि यह बिल्कुल भी सच नहीं है. इस खेल का आविष्कारक देश भारत है.
13वीं शताब्दी में हुई थी शुरुआत
प्राचीन भारत में सांप-सीढ़ी खेल को मोक्ष पटामु या मोक्षपट नाम से जाना जाता था. जानकारी जुटाने पर पता चलता है कि यह खेल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से खेला जा रहा है. वहीं, कोई कहता है कि यह खेल 13वीं शताब्दी में स्वामी ज्ञानदेव ने बनाया था.
इस सोच के साथ हुई थी खेल की शुरुआत
इस खेल की शुरुआत के पीछे मुख्य उद्देश्य अगली पीढ़ी को कर्म और काम की शिक्षा देना था. दरअसल, इस खेल में सीढ़ियां अच्छे कर्म और सांप बुरे कर्मों को दर्शाते हैं. अच्छे कर्म हमें 100 (मोक्ष) के नजदीक लेकर जाते हैं, जबकि बुरे कर्म करके हम कीड़े-मकौड़े का जन्म लेकर फिर धरती पर आते हैं. कहते हैं कि पुराने खेल में सांपों की संख्या बहुत ज्यादा हुआ करती थीं, जो दर्शाता था कि अच्छाई का रास्ता बहुत मुश्किल भरा होता है .
बदल गया मोक्षपट का वास्तविक रूप
कहा जाता है कि 19वीं शताब्दी में मोक्षपट खेल किसी तरह यह अंग्रेजों के जरिए इंग्लैंड पहुंचा. साल 1943 में ये जब यह खेल यूएसए पहुंचा तो वहां मिल्टन ब्रेडले ने इसे एक नया ही रूप दे दिया. हम सांप-सीढ़ी का जो खेल खेलते हुए बड़े हुए हैं, वह इस खेल का बदला हुआ रूप ही है.