India In Oscars: मदर इंडिया को नहीं ऑस्कर तथा साहब बीवी और गुलाम हुई रेस से बाहर, वजह जानकर खा जाएंगे चक्कर
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India In Oscars: मदर इंडिया को नहीं ऑस्कर तथा साहब बीवी और गुलाम हुई रेस से बाहर, वजह जानकर खा जाएंगे चक्कर

Bollywood Films: पूरब-पश्चिम में सिर्फ साधनों का नहीं बल्कि संस्कृति-सिनेमा की सोच को लेकर भी गहरा फर्क है. यही वजह है कि कई बार पूरब के अच्छे सिनेमा को ऑस्कर की समिति या जूरी नहीं समझ पाई है. मदर इंडिया तथा साहब बीवी और गुलाम जैसी फिल्मों को ऑस्कर में जिस तरह समझा गया, वह हैरत में डाल देता है.

 

India In Oscars: मदर इंडिया को नहीं ऑस्कर तथा साहब बीवी और गुलाम हुई रेस से बाहर, वजह जानकर खा जाएंगे चक्कर

India Oscars: भारत और पश्चिम की सोच में फर्क है. यही वजह है कि कई बार यहां क्लासिक कही जाने फिल्मों को वालों को पश्चिमी देश समय नहीं पाए हैं. भारत में महबूब खान की मदर इंडिया और निर्देशक अबरार अल्वी की साहब बीवी और गुलाम क्लासिक की श्रेणी में रखी जाती है. दोनों फिल्मों को भारत ने ऑस्कर की फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी में मुकाबले के लिए भेजा था. मगर दोनों ही नहीं जीत पाईं. मदर इंडिया तो मात्र एक वोट से यह पुरस्कार जीतने में पीछे रह गई, जबकि बांग्ला लेखक बिमल मित्र के बेहतरीन उपन्यास पर बनी फिल्म साहब बीवी और गुलाम को ऑस्कर ने विचार के स्तर पर भी रिजेक्ट कर दिया और इस संबंध में गुरुदत्त को एक पत्र भी लिखा.

एक चुटकी सिंदूर की कीमत
मदर इंडिया को 1958 के ऑस्कर में भेजा गया और यह पहली भारतीय फिल्म थी, जिसने इस ट्रॉफी के फाइनल तक रेस लगाई और अंतिम पांच में पहुंची. फाइनल तक फिल्मों को लेकर तीन राउंड की वोटिंग हुई और अंतिम दौर में केवल एक वोट से यह फिल्म इटली की नाइट्स ऑफ कैरेबिया से पीछे रह गई. एक वोट की कमी के पीछे की बात यह थी कि जूरी समझ नहीं पाए कि नायिका राधा (नर्गिस दत्त) क्यों महाजन का प्रस्ताव नहीं मान लेती. क्यों वह अपने सिंदूर को इतना महत्व दे रही है. सूदखोर महाजन सही तो कह रहा है कि जब उसका पति जा चुका है, उसका कोई अता-पता नहीं, तो महाजन उसके साथ बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है. वह भला आदमी है. भारतीय नारी और भारतीय संस्कृति को जूरी समझ नहीं पाए और फिल्म ऑस्कर जीतने से रह गई.

फिल्म गुरुदत्त की
दूसरी तरफ गुरुदत्त की फिल्म को लेकर अमेरिकी आयोजकों ने अजीब तर्क दिया. भारत में अमेरिकी और पश्चिमी समाज को बेहद खुला समझा जाता है, लेकिन गुरदत्त को भेजे गए पत्र में बिल्कुल विपरीत बात सामने आती है. ऑस्कर समिति ने गुरुदत्त से कहा कि उनकी फिल्म को इस रेस से हटाया जा रहा है क्योंकि इसमें एक स्त्री को शराब की आदी दिखाया गया है. वह शराब के बगैर नहीं रह सकती. समिति ने लिखा कि किसी महिला को शराब के नशे में धुत दिखाना, अमेरिकी कल्चर में अच्छा नहीं समझा जाता. इससे एक बार फिर यह साफ हो गया कि अमेरिका में भारतीय समाज और संस्कृति की बारीकियों के प्रति कितनी नासमझी थी. ऑस्कर की समिति साहब बीवी और गुलाम का मर्म ही नहीं समझ पाई.

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