Amitabh Bachchan: हिंदी की मसाला फिल्मों के फार्मूलों की आज नए सिरे से तलाश की जा रही है. ऐसे में निर्माता-निर्देशकों को मनमोहन देसाई खूब याद आ रहे हैं. उनकी फिल्म अमर अकबर एंथनी में वे सारे मसाले थे, जो किसी फिल्म को हिट बनाते हैं. सितारों के साथ-साथ इमोशन, एक्शन, ड्रामा, सस्पेंस और अच्छा डांस-म्यूजिक.
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Bollywood Films: आज जब बॉलीवुड फिल्में एक के बाद एक बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो रही हैं, तो निर्माता-निर्देशक-एक्टर मनमोहन देसाई को याद कर रहे हैं. देसाई की फिल्मों का अपना एक अंदाज था, जिसमें वह तर्क को एक तरफ रखकर सिर्फ मसालों पर ध्यान देते थे. उनका अपना फार्मूला था. उन्हें लगता था कि कहानी में चाहे जो उतरा-चढ़ाव हों, उन्हें ऐसा होना चाहिए, जो दर्शकों को कहानी से इमोशली कनेक्ट कर दें. उनकी फिल्मों की सफलता का राज यही था कि वह दर्शकों की भावनाओं से खेलते थे. जिसमें परिवार का एक-दूसरे से प्यार, मिलना-बिछुड़ना और ईश्वरीय शक्ति का सहारा लिया करते थे. उनकी ऐसी ही फिल्मों में एक शानदार फिल्म थी, अमर अकबर एंथोनी.
राज कपूर ने की शिकायत
कहा जाता है कि एक समय मनमोहन देसाई अपने दौर के चार शीर्ष सितारों के साथ, चार बड़े बजट की फिल्मों की शूटिंग एक ही समय में कर रहे थे. ये थीं: अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, धर्मवीर और चाचा भतीजा. इन फिल्मों की शूटिंग मुंबई के चेंबूर इलाके में स्थित आरके स्टूडियो में चल रही थी. नतीजा यह कि दूसरी फिल्मों के लिए शूटिंग की कोई जगह नहीं बची थी. स्टूडियो के मालिक राज कपूर ने खुद इस बात की शिकायत की कि वह अपनी फिल्म की शूटिंग देसाई की वजह से नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन चारों फिल्मों की कहानियां बचपन में बिछड़े भाइयों पर आधारित हैं. देसाई ने अपनी इन फिल्मों की कहानियों के बारे में उस समय किसी को नहीं बताया था.
शुरुआत प्रोडक्शन की
अमर अकबर एंथोनी में तीन भाइयों को एक पिता (प्राण) एक बगीचे में छोड़ जाता है क्योंकि हत्यारे उसके पीछे लगे हैं. परंतु जब लौटता है तो पाता है कि तीनों बच्चे गायब हैं. ये बच्चे वहां बिछुड़ जाते हैं और अलग-अलग लोग इन्हें अलग-अलग धर्मों में पालते हैं. फिल्म में इन भाइयों की मां (निरुपा रॉय) भी है. पूरा परिवार शुरू में बिखरता है और अंत में सालों बाद सब मिल जाते हैं. खलनायक को उसके किए की सजा मिलती है. अमर अकबर एंथोनी को 1975 में रिलीज होना था, परंतु उस साल लगी इमरजेंसी के बाद इसे रोक दिया गया. अंततः यह 1977 में रिलीज हो पाई. दस फिल्में डायरेक्ट करने के बाद मनमोहन देसाई पहली बार इस फिल्म में प्रोड्यूसर थे. इस फिल्म को इतनी बड़ी सफलता मिली कि आगे उन्होंने नसीब, कुली, मर्द, अल्ला-रक्खा और तूफान जैसी फिल्में बनाईं. इस फिल्म के लिए पहली बार अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था. बाद में य फिल्म तेलुगु में राम रॉबर्ट रहीम (1980) और मलयालम में जॉन जाफर जनार्दन (1982) नाम से रीमेक की गई. फिल्म तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर उलब्ध है. इसे आप वूट सिलेक्ट, अमेजन प्राइम या एमएक्स प्लेयर पर देख सकते हैं. फिल्म यूट्यूब पर भी उपलब्ध है.
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